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लोक आस्था का ही नहीं सामाजिक समता का पर्व है छठ : डा दिलीप

लोक आस्था का ही नहीं सामाजिक समता का पर्व है छठ : डा दिलीप फोटो 16 केएसएन 5विधान पार्षद डा दिलीप कुमार जायसवाल.प्रतिनिधि, किशनगंज हमारे सामाजिक जीवन में उत्सव आनंद का संदेशवाहक होते हैं. रोजमर्रा की उथल-पुथल के बीच हम उत्सव के क्षणों को सहेज कर जीते है. लोक आस्था का महापर्व छठ पर्व जो […]

लोक आस्था का ही नहीं सामाजिक समता का पर्व है छठ : डा दिलीप फोटो 16 केएसएन 5विधान पार्षद डा दिलीप कुमार जायसवाल.प्रतिनिधि, किशनगंज हमारे सामाजिक जीवन में उत्सव आनंद का संदेशवाहक होते हैं. रोजमर्रा की उथल-पुथल के बीच हम उत्सव के क्षणों को सहेज कर जीते है. लोक आस्था का महापर्व छठ पर्व जो आदि और वर्तमान दोनों में उतना ही प्रयोजन मूलक है. उक्त बातें विधान पार्षद सह एमजीएम कॉलेज के निदेशक डा दिलीप कुमार जायसवाल ने कही. श्री जायसवाल ने कहा कि हमारे प्रदेश का लोक जीवन सामाजिक और धार्मिक खांचो में बंटा हुआ है. लेकिन इन सब के बीच उत्सवधर्मिता से माना जाता हो लेकिन इसका एक और पहलू है जो शायद अब तक नेपथ्य में ही रहा है. धार्मिक आस्था का यह पर्व सामाजिक समता का सबसे बड़ा सूत्रधार भी है. श्री जायसवाल ने कहा कि चार दिनों तक चलने वाला यह पर्व सामाजिक रूप से हर तबके को आपस में करीब लाता है. पर्व की खासियत ही यही है कि कर्मकांडों की जटिलता से यह उपर है. नदी या तालाब के किनारे बने छठ घाटों पर समाज के हर तबके को करीब लाते है. यही एक ऐसा पर्व है जहां पूरी तरह से रूढ़िवादी मान्यताएं खत्म हो जाती है छठ व्रती पूरी तरह से अपने आप को एक अति सामान्य मानते है और व्रतियों के प्रति लोगों का आदर असमान्य होता है वह चाहे किसी जाति या आर्थिक स्तर का हो. सामाजिक समता इन चार दिनों में हर कोने में नजर आती है. श्री जायसवाल ने व्रतियों से नम्रता पूर्वक निवेदन करते हुए कहा कि छठ मइया से विश्वशांति व अमन चैन कायम रखने की दुआ अवश्य मांगे.

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