दो विधायक चौथी बार पहुंचे विधानसभा सरफराज आलम ने कायम रखी अपनी विरासत, तो विजय मंडल को जनता का मिला प्यार प्रतिनिधि, अररिया विधानसभा चुनाव 2015 के परिणाम ने जिले में एनडीए गंठबंधन को बड़ा झटका दिया है. 2010 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने यहां की चार सीट नरपतगंज, रानीगंज, फारबिसगंज व सिकटी में जीत दर्ज की थी, जबकि भाजपा की साथी रही जदयू जोकीहाट विधानसभा से जीत दर्ज कर पाने में कामयाब रही थी. 2010 में राजद व लोजपा ने साथ मिल कर चुनाव लड़ा था. अररिया में जाकिर अनवर ने लोजपा का खाता खोल था, लेकिन विधानसभा चुनाव 2015 में पासा बिल्कुल पलट गया. जिले की छह में से चार सीट महागंठबंधन के खाते में चली गयी, जबकि दो सीट भाजपा के खाते में रही. भाजपा ने फारबिसगंज व सिकटी सीट को बचा लिया, जबकि नरपतगंज व रानीगंज की सीट उसके हाथ से निकल गयी. जनता ने तीन नये चेहरों को दिया मौका2015 के चुनाव में तीन नये चेहरों को जनता ने मौका दिया. इसमें फारबिसगंज विधानसभा क्षेत्र से भाजपा के विद्यासागर उर्फ मंचन केसरी, रानीगंज से महागंठबंधन में जदयू के अचमित ऋषिदेव व अररिया विधानसभा से महागंठबंधन के कांग्रेस से आबिदुर्रहमान शामिल हैं. हालांकि अररिया विधानसभा से विजेता रहे कांग्रेस प्रत्याशी आबिदुर्रहमान के पिता स्वर्गीय मोइदुर्रहमान की राजनीतिक पृष्ठभूमि रही है. वे राज्य सरकार में मंत्री भी रहे थे. जिले में जदयू की टिकट पर दोबारा मैदान में उतारे गये जदयू विधायक सरफराज आलम पर जनता ने फिर से भरोसा जताया, जबकि दो पूर्व विधायक विजय कुमार मंडल व अनिल यादव को जनता ने फिर से मौका दिया है. हालांकि विजय कुमार मंडल को भाजपा के सहारे नैया पार करने का मौका मिला तो अनिल यादव को एक बार फिर राजद की नाव ने मझधार पार कराया. दो दिग्गज चौथी बार करेंगे विधानसभा में शिरकत जिले के दो दिग्गज विजय कुमार मंडल व सीमांचल के गांधी माने जाने वाले वर्तमान सांसद मो तसलीमउद्दीन के पुत्र मो सरफराज आलम जीत दर्ज कर चौथी बार विधानसभा में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में कामयाब रहे. सरफराज से पूर्व अपने राजनीतिक कैरियर का शुरू करने वाले विजय कुमार मंडल ने 1995 में बिहार पीपुल्स पार्टी के बिहार में एकलौते विधायक बने थे. बाद में उन्होंने जनता दल की सदस्यता ले ली थी, लेकिन 2000 में उन्हें जनता दल से टिकट नहीं मिला, तो वे निर्दलीय चुनाव लड़े और जीते. सरकार में वे राज्य मंत्री बने. 2005 में वे पुन: चुनाव हार गये. 2009 में हुए उपचुनाव में वे लोजपा के टिकट पर फिर से विधायक बने. 2010 में परिसीमन के बाद सिकटी से चुनाव लड़ते हुए उन्हें एक बार फिर हार का मुंह देखना पड़ा. इसके बाद वे जदयू में शामिल हो गये. 2014 में वे जदयू के टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़े, लेकिन हार गये. 2015 के विधानसभा चुनाव में उन्हें पहली बार सिकटी के प्रतिनिधित्व का मौका मिला. और जीत दर्ज कर वे चौथी बार विधानसभा पहुंचे. चौथी बार जीत कर विरासत पाने का दिखाया माद्दा सरफराज आलम ने अपने राजनीति पारी की शुरुआत अपने पिता की राजनीतिक पृष्ठभूमि वाले क्षेत्र जोकीहाट विधानसभा से की. 1996 के उप चुनाव में सरफराज आलम राजद के टिकट पर जोकीहाट से पहली बार विधायक चुने गये. यह सीट उनके पिता मो तसलीमउद्दीन के सांसद बनने के बाद खाली हुई थी. राजद के ही टिकट पर 2000 में वे दोबारा विधायक बने. इसी वर्ष उन्हें भूमि सुधार राजस्व राज्य मंत्री का पदभार मिला, लेकिन 2005 के दोनों विधानसभा चुनाव में सरफराज आलम को हार का मुंह देखना पड़ा. 2010 में वे जदयू के टिकट पर तीसरी बार विधायक बने. 2015 में चौथी बार जीत दर्ज कर विधायक बने.
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दो विधायक चौथी बार पहुंचे विधानसभा
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