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25 लाख की आबादी हुई प्रभावित

अररिया : जिले के सभी नौ प्रखंड इस बार बाढ़ की चपेट में आ गये. बाढ़ से 25 लाख से अधिक की आबादी प्रभावित हुई. चौदह लाख लोगों को विस्थापित होना पड़ा. सिकटी, जोकीहाट, कुर्साकांटा, पलासी प्रखंड़ों का संपर्क जिला मुख्यालय से पूरी तरह भंग हो गया. संचार सेवाएं डगमगा गयी और सड़क व रेलवे […]

अररिया : जिले के सभी नौ प्रखंड इस बार बाढ़ की चपेट में आ गये. बाढ़ से 25 लाख से अधिक की आबादी प्रभावित हुई. चौदह लाख लोगों को विस्थापित होना पड़ा. सिकटी, जोकीहाट, कुर्साकांटा, पलासी प्रखंड़ों का संपर्क जिला मुख्यालय से पूरी तरह भंग हो गया. संचार सेवाएं डगमगा गयी और सड़क व रेलवे तंत्र को इससे बड़ा नुकसान उठाना पड़ा. राहत व बचाव के लिये सेना, वायुसेना व प्रशासनिक अधिकारियों को कड़ी मशक्कत करनी पड़ी. कई महत्वपूर्ण बैठकें आयोजित हुई.

रस्म अदायगी के रूप में प्रधानमंत्री ने क्षेत्र का हवाई सर्वेक्षण किया. तो मुख्यमंत्री ने क्षेत्र का दौरा कर इस मुश्किल घड़ी में लोगों को साथ खड़े होने का भरोसा दिलाया. लेकिन समस्या के स्थायी समाधान का प्रश्न इस सब के बीच कहीं गुम हो कर रह गया. दरअसल जिले में आने वाली बाढ़ व इसके बाद राहत को लेकर मारामारी एक स्थायी आयोजन बन चुका है.

इसमें आम आदमी भले डूबे या पार उतर आये. लेकिन अफसर व नेताओं को तो इस बहाने बहुत कुछ कमाने का मौका मिल जाता है. हर साल राहत के नाम पर बड़े पैमाने पर लूट होती है. इसके बाद भी प्रशासन व सरकार का जोर पीड़ितों को राहत उपलब्ध कराने पर होता है.

स्थायी समाधान के लिए किये जा सकते हैं कई उपाय- सिंचाई व बाढ़ राहत विशेषज्ञों के मुताबिक बाढ़ की समस्या के स्थायी समाधान की दिशा में कई संरचनात्मक और गैरसंरचनात्मक उपाय किये जा सकते हैं. इसमें भंडारण, रिजर्वेयर, बाढ़ तटबंध, ड्रेनेज चैनल, शहरी संरक्षण निर्माण कार्य, बाढ़ पूर्वानुमान व बंद पड़े नालियों और पुलों को खोलना प्रमुख है.
जिले से होकर गुजरने वाली अधिकांश नदियों का उद्गम नेपाल का तराई है. विशेषज्ञों के मुताबिक तराई इलाकों में होने वाली भारी बारिश के बाद नदियां उफना कर जिले में भयंकर तबाही लाती है. बाढ़ का पानी कोशी, नुनथर, बराहक्षेत्र, शीशापानी के रास्ते निकटवर्ती जिले में पहुंचती है. ऐसे में इन जगहों पर डेम का निर्माण बाढ़ के स्थायी समाधान की दिशा में महत्वपूर्ण हो सकता है. शहरों का कचरा ढोते-ढोते नदियों की गहरायी भी काफी कम हो चुकी है. ऐसे में नदियों के गाद को साफ करना जरूरी हो चुका है.
आम जिलावासी भी बाढ़ के लिए कम जिम्मेदार नहीं : बाढ़ की समस्या के लिए बहुत हद आम जिलेवासी जिम्मेदार हैं. पिछले कुछ दशकों से नये मानव बस्तियों का अंबार लगता जा रहा है. कई बस्तियां तो नदियों के बहाव क्षेत्र में ही बस चुकी है. इसके अलावा बसावट व अपने अन्य उपयोग के लिए जिले वासियों ने वन संपदा को भी व्यापक नुकसान पहुंचाया है.
गांव के ताल-पोखर व जल निकासी के अन्य प्राकृतिक स्त्रोतों को नुकसान पहुंचाया गया. मालूम कि वनस्पति युक्त धरती को तेजी से सोखती है. नदियों के तलहटी में जमा गाद जल प्रवाह की गति को रोकने लगी है. जंगलों की कमी के प्रभाव है कि बरसात में पानी का बहाव सौगुणा बढ़ जा रहा है.
बाढ़ से हर साल करोड़ों की फसल होती है बर्बाद
जिले के जोकीहाट, पलासी, सिकटी, कुर्साकांटा प्रखंड का औसतन चालीस प्रतिशत हिस्सा हर साल बाढ़ से प्रभावित होता है. इसके अलावा अररिया, फारबिसगंज, रानीगंज, नरपतगंज, भरगामा जैसे प्रखंड के 20 से 25 प्रतिशत हिस्से हर साल बाढ़ की चपेट में होते हैं. खास ये कि जिले के अत्यधिक बाढ़ प्रभावित प्रखंड कृषि उत्पादकता के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण हैं. इन चार प्रखंडों के कुल 41 हजार 781 हेक्टेयर खेतीहर इलाका है. बाढ़ की वजह से हर साल इन प्रखंडों के 16 हजार 712 हेक्टेयर में लगी फसल पर बर्बादी का संकट बरकरार रहता है.
इसके अलावा बाढ़ से कम प्रभावित पांच प्रखंडों में 57 हजार 779 हेक्टेयर खेतीहर भूमि में 11 हजार 555 हेक्टेयर भूमि पर लगी फसल को भी हर साल बाढ़ से गंभीर क्षति उठानी पड़ती है. लिहाजा जिले का 28 हजार 267 हेक्टेयर भूमि पर लगी फसल हर साल बाढ़ के कारण बर्बाद होती है. मुख्य फसल धान की ही बात करें तो प्रति हेक्टेयर उत्पादन के हिसाब से 70 हजार 667 क्विंटल धान हर साल बाढ़ के कारण बर्बाद होती है. सरकारी समर्थन मूल्य के हिसाब से जिसकी कीमत 98 करोड़ 93 लाख 45 हजार है. इसके अलावा सैकड़ों एकड़ भूमि हर साल नदी के कटान की भेंट चढ़ जाता है. तो कई एकड़ क्षेत्र मरूस्थल में तब्दील होते जा रहे हैं.

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