पटना: आजादी के 66 साल बीत जाने के बाद भी विकास में क्षेत्रीय विषमता मौजूद है. गरीबी और बेरोजगारी मिटाना ही हर विकास के मूल में है. लेकिन, देश में ऐसा इसलिए नहीं हो पाया, क्योंकि नीतियों और उनको लागू करने में कहीं-न-कहीं कमी रह गयी.
बिहार समेत अन्य पिछड़े राज्यों को विशेष पैकेज की जरूरत है, ताकि वे आगे बढ़ सकें. ये बातें एएन सिन्हा समाज अध्ययन संस्थान में शुक्रवार से शुरू हुई इंडियन एसोसिएशन ऑफ सोशल साइंस इंस्टीट्यूशंस (आइएएसएसआइ) की 14वीं सालाना कॉन्फ्रेंस में उभरीं. दो दिवसीय इस कॉन्फ्रेंस का थीम ‘रीजनल पैटर्न ऑफ इंडियन डेवलपमेंट (भारतीय विकास का क्षेत्रीय प्रारूप)’ है. उद्घाटन सत्र के बाद तारलोक सिंह मेमोरियल लेक्चर व दो तकनीकी सत्र आयोजित किये गये.
जीडीपी के अनुपात में रोजगार भी बढ़े, जरूरी नहीं : मेमोरियल लेर में अर्थशास्त्री प्रो टीएस पपोला ने आर्थिक विकास और रोजगार में संबंधों का शानदार विेषण किया. उन्होंने कहा कि शुरुआत में श्रम को विकास का साधन माना जाता था. बाद में माना जाने लगा कि रोजगार के अवसर बढ़ने से सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) भी बढ़ता है. उन्होंने कहा कि रोजगार और जीडीपी ग्रोथ में संबंध है, लेकिन हमेशा ऐसा नहीं होता है कि जीडीपी ग्रोथ के अनुपात में रोजगार भी बढ़े. ऐसे में विेषण का आधार यह होना चाहिए कि जीडीपी ग्रोथ से लोगों के जीवन स्तर में कितना सुधार आया. पपोला ने अब तक की सभी पंचवर्षीय योजनाओं की संक्षिप्त जानकारी दी.
संतुलित विकास अब तक नहीं: अध्यक्षीय भाषण में आइएएसएसआइ के अध्यक्ष प्रो एसआर हाशिम ने कहा कि जीडीपी विकास का सूचक तो है, लेकिन पिछले 66 वर्षो में देश में संतुलित विकास नहीं हो सका. प्रो एसआर हाशिम ने कहा कि बुनियादी ढांचे का ठीक से विकास किये बिना भारत का जीडीपी बढ़ा. इसमें सर्विस और आइटी सेक्टर का योगदान रहा. बुनियादी ढांचे और निर्माण क्षेत्र की अनदेखी कर हम कृषि से सीधे आइटी सेक्टर पर पहुंच गये. गरीबी और विषमता बढ़ने की एक वजह यह भी है. इसके उलट चीन ने निर्माण क्षेत्र को अपनी जरूरतों के मुताबिक विकसित किया. बुनियादी ढांचे में भी वह आगे है. आइटी हार्डवेयर के निर्माण में आज चीन दुनिया में सबसे बड़ी चुनौती बन चुका है. हाशिम ने कहा कि भारत में बेरोजगारी के अलावा गुणवत्तापूर्ण रोजगार मुहैया कराना भी समस्या है.