पटना: मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि हिरासत में होने वाली मौत के मामले में बिहार देश भर में 14वें स्थान पर है, लेकिन यह कोई संतोष का विषय नहीं है. अब समय बदल चुका है. कानून का राज है और सुशासन में ऐसी मौतों की कोई जगह नहीं है. हमें ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए कि एक भी व्यक्ति की मौत हिरासत में न हो. उन्होंने बिहार मानवाधिकार आयोग की स्थापना की पांचवीं वर्षगांठ पर अभिलेख भवन में हुई संगोष्ठी में सुझाव दिया कि हिरासत में होने वाली मौतों पर मुआवजे की राशि में एकरूपता होनी चाहिए. यह न हो कि हिरासत में मरने वाले लोगों के परिजनों को मुआवजे की अलग-अलग राशि दी जाये.
मौके पर छत्तीसगढ़ के पूर्व राज्यपाल डीएन सहाय, राज्य मानवाधिकार आयोग के पूर्व अध्यक्ष न्यायमूर्ति एसएन झा, राज्य के लोकायुक्त न्यायमूर्ति सीएम प्रसाद, बगहा गोलीकांड जांच आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति राजेंद्र प्रसाद और आयोग के वर्तमान कार्यकारी अध्यक्ष नीलमणि ने भी संबोधित किया.
इसके पहले मुख्यमंत्री ने राज्य मानवाधिकार आयोग के कामकाज की सराहना करते हुए कहा कि सरकार को इसके अध्यक्ष के चयन में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. दरअसल, प्रावधानों के अनुसार राज्य मानवाधिकार आयोग का अध्यक्ष उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश स्तर के न्यायाधीश को बनाना है, लेकिन इस स्तर के न्यायाधीश की उपलब्धता कम होने के कारण सरकार को कठिनाई होती है.
मुख्यमंत्री ने कहा कि आने वाले दिनों में आयोग के अध्यक्ष व अन्य सदस्यों के सभी रिक्त पदों पर मनोनयन का काम पूरा कर दिया जायेगा. यह पहला मौका था जब राज्य मानवाधिकार आयोग ने विभिन्न जिलों के पुलिस अधिकारियों, मानवाधिकार के लिए काम करने वाले गैर सरकारी संगठनों के प्रतिनिधियों और अन्य अधिकारियों के लिए इस तरह की संगोष्ठी का आयोजन किया.