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एक पैर से खींच ली जिंदगी की गाड़ी

हिम्मत की जीत : किशोर प्रसाद ने रिक्शा के सहारे अपने बच्चों को बनाया काबिल पटना : अक्सर ऐसा कहा जाता है कि यदि हौसला बुलंद हो, तो जीवन की कोई राह मुश्किल नहीं रह जाती. कई लोगों को लगता है कि यह सिर्फ किताबी बातें हैं, ऐसा असल जिंदगी में कुछ होता नहीं. लेकिन […]

हिम्मत की जीत : किशोर प्रसाद ने रिक्शा के सहारे अपने बच्चों को बनाया काबिल

पटना : अक्सर ऐसा कहा जाता है कि यदि हौसला बुलंद हो, तो जीवन की कोई राह मुश्किल नहीं रह जाती. कई लोगों को लगता है कि यह सिर्फ किताबी बातें हैं, ऐसा असल जिंदगी में कुछ होता नहीं. लेकिन लोगों की इस बात को गलत साबित किया है दानापुर निवासी किशोर प्रसाद ने. किशोर प्रसाद की उम्र 55 साल की है. उनका एक पांव भी नहीं है. इसके बावजूद वे एक पैर से ही रिक्शा चला कर अपना और परिवार का पेट भर रहे हैं.

वर्षो पूर्व किशोर ने गांधी मैदान के समीप घटी एक सड़क दुर्घटना में अपना एक पांव गंवा दिया था. दुर्घटना के पूर्व वे एक छोटी-सी दुकान पर मिस्त्री का काम करते थे तथा अपने परिवार का पेट पालते थे, किंतु दुर्घटना के बाद उन्हें अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा. इसके बाद उन्होंने अंडे बेचना शुरू किया, पर ज्यादा लाभ नहीं मिला. वर्ष 1987 में उन्होंने रिक्शा चला कर कमाना शुरू किया. उनके एक पांव से रिक्शा चलाने के निर्णय से उनकी पत्नी और रिश्तेदार चिंतित थे. दुर्घटना की आशंका से उन्होंने मना भी किया, लेकिन किशोर इतने संकल्पित थे कि वे पीछे नहीं हटे. परिवार का पेट भरने के लिए उनके पास इसके सिवा और कोई उपाय नहीं था.

किशोर की पत्नी उनके घर से निकलते वक्त उनकी सलामती की दुआ मांगती है. उनके तीन बच्चे हैं. रिक्शा चला कर कमाये पैसों से किसी तरह उन्होंने तीनों की शादी भी कर दी है. आज किशोर के बेटे के दो बच्चे हैं, लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ नहीं होने की वजह से उन्हें न तो तन ढकने के लिए पर्याप्त कपड़े नसीब हो रहे हैं और न ही ठीक प्रकार से उनका पेट भर पा रहा है. किशोर कहते हैं कि उन्हें मदद की जरूरत, तो है, लेकिन इसके लिए वे किसी के सामने हाथ नहीं फैलाते. वे एक पांव से रिक्शा चला कर परिवार पालने की पूरी कोशिश कर रहे हैं. बकौल किशोर, यदि हमने जन्म लिया है, तो हमारे कंधों पर जिम्मेवारियां आयेंगी ही.

इन जिम्मेवारियों को निभाने में दिक्कतें, तो आती ही हैं, लेकिन यह हम पर निर्भर करता है कि हम किस तरह इनसे संघर्ष करते हुए भी आगे बढ़ते जाते हैं. मेरा एक पांव नहीं है, लेकिन दूसरा पांव सही-सलामत है और उसी से रिक्शा चला कर परिवार का पेट भर कर मुङो इस बात का संतोष मिलता है कि मैं अपनी जिम्मेवारियों को पूरी निष्ठा से निभा रहा हूं.

(प्रस्तुति: पूजा तिवारी, बीएमसी थर्ड इयर, पटना कॉलेज)

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