पटना: अब अर्थदंड की सजा होते ही मुखिया और मेयर की कुरसी छीन ली जायेगी. राज्य निर्वाचन आयोग ने शुक्रवार को इस आशय की अधिसूचना जारी की. इसके तहत की निर्वाचित प्रतिनिधि को अगर जमाखोरी, मुनाफाखोरी, खाद्य पदार्थ या दवा में मिलावट का दोषी पाया जाता है और आर्थिक दंड लगाया जाता है, तो ऐसे मामले आयोग में उठाये जाने पर न सिर्फ उस पर आयोग विचार करेगा, बल्कि निर्वाचित सदस्यों की सदस्यता समाप्त हो जायेगी.
राज्य निर्वाचन आयोग ने लिली थामस बनाम भारत सरकार एवं अन्य और लोक प्रहरी बनाम भारत सरकार एवं अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आलोक में नया प्रावधान बनाया है. पूर्व में अर्थदंड को लेकर निर्वाचित सदस्यों को अयोग्य नहीं माना जाता था. अब किसी भी निर्वाचित वार्ड सदस्य, मुखिया, पंचायत समिति सदस्य, मुखिया, जिला पर्षद सदस्य, जिला पर्षद अध्यक्ष, पंच, सरपंच, नगरपालिका के निर्वाचित सदस्यों में वार्ड सदस्य और मेयर पर अर्थदंड की सजा अयोग्यता का कारण बनेगी.
आयोग ने स्पष्ट किया है कि कोई भी व्यक्ति प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स एक्ट, 1955, कस्टम एक्ट 1962, अनलॉफुल एक्टिविटी (प्रीवेंशन) एक्ट 1967, फॉरेन एक्सचेंज (रेगूलेशन) एक्ट 1973, नार्कोटिक ड्रग्स एंड साइकोथ्रोपिक सब्सटांस एक्ट 1985, टेरोरिस्ट एंड डिसरप्टिव एक्टिविटी (प्रीवेंशन) एक्ट 1987, रिलिजियश इंस्टीट्यूशन (प्रीवेंशन ऑफ मिसयूज) एक्ट 1984, आरपी एक्ट 1951, धार्मिक स्थल (स्पेशल व्यवस्था) एक्ट 1991, प्रीवेंशन ऑफ इनसल्ट टू नेशनल ऑनर एक्ट 1971, कमीशन ऑफ सती (प्रीवेंशन) एक्ट 1987, प्रीवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट 1988 और प्रीवेंशन ऑफ टेरोरिस्म एक्ट 2002 के तहत दोषी पाये जाने पर अगर सिर्फ अर्थदंड की सजा होती है, तो सजा की तिथि से छह वर्ष तक निर्वाचन या निर्वाचित पद धारण के योग्य नहीं होंगे. अगर जेल की सजा होती है, तो दोषी पाये जाने की तिथि से कोई व्यक्ति निर्वाचन के अयोग्य हो जायेगा. उसकी अयोग्यता जेल से मुक्त होने की तिथि से छह वर्ष तक लागू होगी.
इसी तरह कोई जमाखोरी, मुनाफाखोरी कानून में दोषी पाया जाता है, खाद्य पदार्थ एवं औषधि में मिलावट का दोषी पाया जाता है, दहेज निरोधक अधिनियम 1961 के प्रावधानों के तहत दोषी पाया जाता है और छह माह की सजा होती है, तो वह दोषी पाये जाने की तिथि से निर्वाचन या पद धारण करने के अयोग्य हो जायेगा. यह अयोग्यता जेल से मुक्त होने की तिथि से अगले छह वर्ष तक लागू रहेगी. आयोग ने इस तरह के मामले उठाने के लिए भी अपना दरवाजा खोल दिया है.