मालिनी अवस्थी को भोजपुरी अकादमी का सांस्कृतिक राजदूत बनाये जाने पर हाल ही में विवाद खड़ा हो गया था. इस पर बिहार की प्रसिद्ध लोकगायिका शारदा सिन्हा ने प्रभात खबर को अपनी टिप्पणी भेजी है. पेश है उसकी पहली किस्त.
शारदा सिन्हा
पिछले कुछ दिनों से बिहार में लोक संस्कृति, विशेष कर भोजपुरी को लेकर अजीब किस्म का वाद-विवाद चल रहा है. मालूम हुआ कि गत माह बिहार सरकार द्वारा संचालित भोजपुरी अकादमी ने राजधानी पटना में अंतरराष्ट्रीय भोजपुरी महोत्सव जैसा कोई आयोजन कराया था, जिसमें देश व दुनिया के अलग-अलग मुल्कों से कुछ लोग सम्मानित होने पहुंचे थ़े.अपनी कला का प्रदर्शन करने भी इस आयोजन के बाद अकादमी ने गायिका मालिनी अवस्थी को भोजपुरी अकादमी का सांस्कृतिक राजदूत बनाने की घोषणा की मेरे चाहनेवालों ने इस प्रसंग में मेरे नाम को जोड़ दिया कि जब देश-दुनिया से भोजपुरी के कलाकारों, साहित्यकारों को सरकारी अकादमी के सौजन्य से पटना बुलाया जा रहा था, तो शारदा सिन्हा को क्यों उस मंच पर नहीं बुलाया गया.
मेरे चाहनेवालों ने यह मांग भी उठा दी कि शारदा सिन्हा से बेहतर कोई सांस्कृतिक राजदूत कैसे हो सकता है. वे तो वर्षो से बिना किसी तमगे के ही बिहार की ब्रांड अंबेसडर हैं, तो फिर भला किसी को यह दायित्व देने की बात थी, तो मेरे नाम को क्यों दरकिनार किया गया. मेरे चाहनेवाले मुझे बेपनाह मोहब्बत करते हैं, मान-सम्मान देते हैं, इसलिए उन्होंने अपने स्तर पर ये बातें उठायीं मीडिया से ही जानकारी मिली कि भोजपुरी के एक गायक व अभिनेता मनोज तिवारी, भरत शर्मा ने अकादमी की ओर से मिले सम्मान को इस कथन के साथ लौटाया कि मालिनी अवस्थी अवधि हैं, उन्हें क्यों ब्रांड अंबेसडर बनाया गया, शारदा सिन्हा को क्यों नहीं! बाद में पता चला कि मालिनी अवस्थी ने भी सांस्कृतिक राजदूत बनने से इनकार कर दिया. विवाद का एक अध्याय बंद हो चुका है, तो मैं अपनी बात कह रही हूं. मैं सच कहूं तो इस हालिया विवाद पर ही नहीं, बल्कि इसके पहले भी तमाम किस्म के विवाद चलते रहते हैं और मैं उसके बारे में जानकारी लेने में, रखने में, ज्यादा रुचि नहीं रखती.
मुझे यह सब मालूम भी नहीं होता. मैं अपने काम में व्यस्त रहती हूं. देश के कोने-कोने से लोग बुलाते हैं, मन मिलता है, मान मिलता है, तो जाती हूं. बिहार में भी जब बुलाया जाता है, जाने की कोशिश करती हूं. इस हालिया विवाद से मेरा कोई ताल्लुक नहीं था, लेकिन आखिरी में केंद्र में मैं आ गयी. मेरा नाम आया है, तो मैं लगातार इस विषय पर सोच रही हूं हैरत में हूं कि संस्कृति को लेकर हमारी चेतना अब भी इस कदर संकीर्ण दायरे में फंसी हुई है. बेशक, बिहार की धरती पर कोई आयोजन सरकार की ओर से हो रहा था, उसमें देश-दुनिया से लोग आ रहे थे, जिनमें अधिकतर से मेरा सीधे ताल्लुक है, तो उस मंच पर बुलाये जाने, रहने की उम्मीद तो मुझे करनी ही चाहिए थी और बिहारी होने के नाते मेरा यह अधिकार भी बनता है.
लेकिन, मुझे ऐसे तिरस्कारों का मलाल भी नहीं रहता हां, ऐसे आयोजनों में नहीं बुलाये जाने का दूसरा असर जरूर पड़ता है कि बिहार में सांस्कृतिक अस्मिता की संकीर्णता से देश भर के लोग अवगत होते हैं.लोग भले न पूछे, लेकिन यह तो जरूर धारणा बनाने लगेंगे कि कि शारदा सिन्हा को भले देश जाने, पूछे, बुलाये, मान-सम्मान दे, लेकिन अपने घर बिहार में ही उनकी वह कद्र नहीं है. सरकार तो पूछती तक नहीं. सच कह रही हूं कि अंतरराष्ट्रीय भोजपुरी महोत्सव आयोजन के बारे में मैं बहुत बाद में जान सकी थी. आयोजन हो जाने के बाद. अखबारों में पढ़ी थी़.
थोड़ा अटपटा जरूर लगा, दुख भी हुआ़ मैं उस मंच पर सम्मानित होने की आकांक्षा नहीं थी़ सच कहूं तो सम्मानित होने की बहुत आकांक्षा रखती भी नहीं हूं, लेकिन अच्छा लगता जब मैं खुद उस आयोजन में होस्ट की भूमिका में रहती और देश-दुनिया से अपने राज्य में आ रहे लोगों का मान-सम्मान करती मैं बिहार की ही हूं, यह मेरी पूरी पहचान भी है़ खैर! जिंदगी में बहुत उतार-चढ़ाव देखी हूं, इसलिए ज्यादा देर तक मलाल पाल कर नहीं रखती. (जारी..)
(लेखिका प्रसिद्ध लोकगायिका हैं)