पटना: केन्द्र सरकार अपनी योजनाओं के लिए भी पैसे देने में कंजूसी कर रही है. वर्तमान में बिहार में चलने वाली सेंट्रल प्लान स्कीम या केंद्रीय योजनागत योजना (सीपीएस) की संख्या करीब 15 है, लेकिन दूसरी तिमाही से अधिक समय बीतने के बाद भी महज पांच योजनाओं में ही केन्द्र ने 67 करोड़ 45 लाख रुपये दिये.
15 योजनाओं में करीब 347 करोड़ रुपये केंद्र को देने हैं. पांच योजनाओं में चालू वित्त वर्ष के दौरान रुपये जारी करने का बजट में जितना अनुमान या आकलन रखा गया था, उसका करीब 32 फीसदी ही प्राप्त हुआ है. इससे इन योजनाओं की क्या स्थिति होगी और योजनाएं कितनी कारगर साबित होंगी. इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है.
10 योजनाओं में नहीं मिला एक भी रुपया : चालू वित्त वर्ष में सात महीने (अप्रैल 2014 से अब तक)से ज्यादा समय बीतने के बाद भी सीपीएस के तहत करीब 10 योजनाएं ऐसी हैं, जिनमें एक रुपये भी केन्द्र ने नहीं दिया है. इसमें अनुसूचित जातियों के कल्याण की योजना, बीड़ी श्रमिकों के गृह निर्माण की योजना, विकलांग व्यक्तियों के कल्याण की योजना, आतंकवाद, सांप्रदायिक तथा नक्सली हिंसा के पीड़ितों की सहायता योजना, पॉलिटेकनिकों की स्थापना एवं उन्नयन की योजना समेत अन्य प्रमुख योजनाएं शामिल हैं.
इस साल से कला-संस्कृति विभाग के तहत लोक अभिलेख, पांडुलिपि , दुर्लभ पुस्तकों के संरक्षण की नयी योजना शुरू की गयी है. इसके लिए 18 लाख रुपये आवंटन का लक्ष्य है, लेकिन इसमें अभी तक एक रुपया भी नहीं मिला है.
जिनमें मिला वह भी काफी कम : जिन पांच सीपीएस में रुपये मिले भी हैं, वे काफी कम हैं. बेघर गरीबों को आवास मुहैया कराने के उद्देश्य से जोर-शोर से शुरू की गयी राजीव आवास योजना में अब तक महज 59 लाख रुपये मिले हैं. कृषि में बीज गुणवत्ता, वनस्पति संरक्षण समेत अन्य कई कार्यो के लिए करीब 12 करोड़ रुपये आवंटन का लक्ष्य है, लेकिन मिले सिर्फ तीन करोड़ 39 लाख रुपये. पशु गणना की योजना के लिए 34 करोड़ में सिर्फ चार करोड़ प्राप्त हुए हैं.
बाढ़ नियंत्रण पर ध्यान नहीं : केन्द्र सरकार ने बाढ़ नियंत्रण की विभिन्न परियोजनाओं में अलग से एक अरब 78 करोड़ रुपये देने की घोषणा की थी. ये रुपये अन्य सीपीएस योजना से अलग हट कर थे. इसमें गंगा नदी को छोड़ कर अन्य नदियों का कटाव रोकने के लिए निरोधक योजना शामिल हैं. नेपाल से लगे सीमावर्ती क्षेत्र में नदी प्रबंधन कार्य करना सबसे प्रमुख है,लेकिन अभी तक इस मद में 51 करोड़ 27 लाख रुपये ही मिले हैं.
केंद्र पर बिहार का साढ़े 15 हजार करोड़ बकाया
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार पर बिहार का 15564 करोड़ रुपये बकाया है. विभिन्न विकास मद के इन पैसों के नहीं मिलने से राज्य का विकास बाधित हो रहा है. मनरेगा के काम बंद हैं. प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के पैसों के बिना ग्रामीण सड़कों का निर्माण ठप-सा हो गया है. बाढ़ से क्षतिग्रस्त पुल-पुलिये एवं सड़कों के पुनर्निर्माण के लिए केंद्र पैसे नहीं दे रहा है. सिंचाई योजना को लागू करने के लिए राज्य का करीब 1429.11 करोड़ रुपये बकाया चल रहा है, जिसको लेकर राज्य सरकार ने कई बार केंद्र को स्मारित कराया है. नेशनल हाइवे की मरम्मत के मद का हजार करोड़ रुपये के लिए राज्य सरकार गुहार लगा रही है. केंद्र के समक्ष त्वरित सिंचाई योजना के 1213.62 करोड़ रुपये बकाया हैं. इनके अतिरिक्त अन्य सिंचाई योजनाओं के करीब 215.49 करोड़ रुपये भी केंद्र को बिहार को देना है. इन पैसों के लिए हाल ही में मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को याद दिलायी है. नेशनल हाइवे की मरम्मत पर राज्य सरकार ने अपने खजाने से करीब हजार रुपये खर्च कर दिया, जबकि कई बार अनुरोध करने के बाद भी राज्य सरकार को पैसे वापस नहीं मिल पाये हैं. केंद्र की अनदेखी के चलते प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाइ) के तहत 20 हजार किलोमीटर ग्रामीण सड़कों के निर्माण के कार्य में सुस्ती आ गयी है. केंद्र सरकार पर इस मद के लिए स्वीकृत की गयी राशि का 11 हजार करोड़ रुपये बकाया हैं. हालांकि अब तक यह राशि जारी नहीं की गयी है. इस वर्ष बाढ़ के कारण राज्य की करीब 300 किलोमीटर ग्रामीण सड़कें क्षतिग्रस्त हो गयी है. इसकी राशि अब तक नहीं मिली है.
उन्होंने बताया कि साथ ही राज्य में बाढ़ के कारण ही करीब 250 पुल-पुलिये क्षतिग्रस्त हो गये हैं. इनके निर्माण नहीं होने से आवागमन बाधित होने की आशंका है.
मनरेगा के मामले में राज्य में भ्रम की स्थिति बनी हुई है. अभी तक मनरेगा मद की करीब 700 करोड़ रुपये की राशि बाकी है. अगर राशि जारी नहीं की गयी, तो यह राशि दिसंबर तक बढ़ कर 1335 करोड़ 54 लाख हो जायेगी. ग्रामीण विकास विभाग ने इस संबंध में 17 सितंबर को केंद्र सरकार को विस्तृत पत्र भी भेजा है. अब तक इस दिशा में कोई निर्णय नहीं हुआ है.