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बागियों की विधायकी खत्म करने का मामला : स्पीकर के फैसले को हाइकोर्ट में दी चुनौती

पटना : बिहार विधानसभा की सदस्यता रद्द किये जाने के स्पीकर उदय नारायण चौधरी के कोर्ट के फैसले को जदयू से निष्कासित बागियों ने पटना हाइकोर्ट में चुनौती दी है. चारों निवर्तमान विधायकों ज्ञानेंद्र सिंह ज्ञानू, नीरज कुमार सिंह, राहुल शर्मा व रवींद्र राय की ओर से अधिवक्ता शशिभूषण कुमार मंगलम ने सोमवार को हाइकोर्ट […]

पटना : बिहार विधानसभा की सदस्यता रद्द किये जाने के स्पीकर उदय नारायण चौधरी के कोर्ट के फैसले को जदयू से निष्कासित बागियों ने पटना हाइकोर्ट में चुनौती दी है. चारों निवर्तमान विधायकों ज्ञानेंद्र सिंह ज्ञानू, नीरज कुमार सिंह, राहुल शर्मा व रवींद्र राय की ओर से अधिवक्ता शशिभूषण कुमार मंगलम ने सोमवार को हाइकोर्ट में रिट दायर की. इन नेताओं ने अपनी याचिका में अपने साथ अन्याय होने की बात कही है. स्पष्ट किया है कि शनिवार को उनकी विधायकी खत्म की गयी. तर्क दिया गया कि जून में हुए राज्यसभा उपचुनाव में दल विरोधी काम और स्वत: दल का परित्याग किया है.

लेकिन, उन्हें पार्टी से रविवार को निष्कासित किया गया. अगर उन्होंने जून में ही दल का स्वत: परित्याग कर दिया था, तो नवंबर में क्यों निष्कासित किया गया? यानी दल का परित्याग करने के बाद भी वे पार्टी में बने हुए थे. जदयू से निष्कासित निवर्तमान विधायकों ने अपनी याचिका में जदयू की विधायक अन्नु शुक्ला, रेणु कुशवाहा और पूनम यादव के मामलों का जिक्र किया है. हाइकोर्ट को बताया गया है कि जिस 10 वीं अनुसूची पैरा 2 (1)(क) का हवाला देकर उनकी विधायकी खत्म की गयी है, वह उनके मामले नहीं, बल्कि अन्नु शुक्ला, रेणु कुशवाहा और पूनम यादव के मामलों में लागू होता है. लालगंज से जदयू विधायक अन्नु शुक्ला ने लोकसभा चुनाव में खुद दल की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे कर पार्टी प्रत्याशी के खिलाफ मैदान में उतरी थीं. वहीं, बिहारीगंज की विधायक रेणु कुशवाहा ने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव के खिलाफ उतरे अपने पति व भाजपा उम्मीदवार विजय कुमार सिंह कुशवाहा के लिए वोट मांगा था. साथ ही भाजपा नेताओं के साथ मंच भी साझा किया था.

उधर, खगड़िया विधायक पूनम यादव ने भी पार्टी प्रत्याशी के खिलाफ राजद प्रत्याशी अपनी बहन लिए वोट मांगा था. ये तीनों मामले 10वीं अनुसूची पैरा 2 (1)(क) के तहत आते हैं और उसका उल्लंघन है. बावजूद इसके विधानसभा अध्यक्ष ने अन्नु शुक्ला व रेणु कुशवाहा की दो सुनवाई के बाद आज तक आगे की तारीख नहीं दी है. इससे स्पष्ट है कि पिक एंड चूज के आधार पर कार्रवाई की गयी.

याचिका के तथ्यों की जानकारी जदयू से निष्कासित बागी रवींद्र राय ने दी. उन्होंने बताया कि स्पीकर ऐसा एकतरफा फैसला कैसे ले सकते हैं? वह कानून की व्याख्या अपने मन से कैसे कर सकते हैं? किसी की सदस्यता रद्द करने पर मन मुताबिक फैसला कैसे कर सकते हैं? स्पीकर कोर्ट के खिलाफ दाखिल याचिका में उन्हें पटना हाइकोर्ट से न्याय मिलेगा. नीरज कुमार सिंह बबलू भी ने भी स्पीकर कोर्ट के अन्याय को हाइकोर्ट में न्याय मिलने की उम्मीद जतायी है.

10वीं अनुसूची की हुई गलत व्याख्या : ज्ञानू

जदयू से निष्कासित ज्ञानेंद्र सिंह ज्ञानू ने कहा कि उन लोगों के खिलाफ असंवैधानिक निर्णय हुआ है. हाइकोर्ट से उन्हें न्याय मिलेगा, इसलिए स्पीकर कोर्ट के खिलाफ याचिका दाखिल की है. उन चारों नेताओं की विधायकी खत्म करने में 10वीं अनुसूची की गलत व्याख्या की गयी है. कहा गया है कि राज्यसभा उपचुनाव में किसी दूसरे को वोट देने पर आपत्ति नहीं है, बल्कि निर्दलीय प्रत्याशी का प्रस्ताव बनने पर कार्रवाई की गयी है. अगर कोई प्रस्तावक ही नहीं बनेगा, तो निर्दलीय प्रत्याशी कैसे खड़ा होगा? प्रत्याशी खड़ा करना वोटिंग और चुनाव का ही हिस्सा होता है. ज्ञानू ने कहा कि अगर वोटिंग नहीं प्रस्तावक बनने पर ही कार्रवाई हुई है, तो विधायक गजानन शाही उर्फ मुन्ना शाही, दाउद अली व रेणु कुशवाहा पर भी कार्रवाई होने चाहिए थी, क्योंकि वे भी निर्दलीय प्रत्याशियों के प्रस्तावक बने थे. पर, इन्हें नोटिस भी नहीं दिया.

बरखास्तगी के बाद नहीं दी जाती पेंशन : शाही

पटना : जदयू के चार बागी विधायकों पर विधानसभा अध्यक्ष के कोर्ट के फैसले को इस मामले में जदयू के परामर्शी और वन एवं पर्यावरण मंत्री पीके शाही ने कानून सम्मत करार दिया है. सोमवार को पार्टी ऑफिस में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में श्री शाही ने कहा कि चारों बागियों की विधानसभा की सदस्यता रद्द करने और उन्हें पूर्व विधायक की सुविधाएं नहीं देने का स्पीकर कोर्ट ने फैसला सुनाया है. उन्हें 15वीं विधानसभा का कोई लाभ नहीं दिया जायेगा. जिस प्रकार सेवा से बरखास्तगी के बाद किसी को पेंशन नहीं दी जाती है, उसी प्रकार सदस्यता खत्म होने के बाद उन्हें इस विधानसभा में पूर्व विधायक होने का लाभ नहीं मिलेगा. अगर कोई 14वीं या उससे पहले कीविधानसभा में सदस्य रहा है, तो उसका पूर्व विधायक का लाभ मिलेगा. बरखास्त किये गये विधायकों को जब पूर्व सदस्य कहलाने का अधिकार नहीं है, तो उन्हें लाभ कैसे दिया जा सकता है? श्री शाही ने कहा कि चारों विधायकों के खिलाफ संविधान की 10वीं अनुसूची के पैरा 2 (1)(क) के तहत कार्रवाई की गयी है.

विधानसभा अध्यक्ष ने शिकायतकर्ता श्रवण कुमार समेत बागियों को पूरा समय दिया. सभी की गवाही हुई. उसके बाद तथ्यों के आधार पर फैसला दिया. स्वेच्छा से दल के परित्याग पर कानून की व्याख्या 1992 में रवि नाम के केस में सुप्रीम कोर्ट ने की थी. इसमें कहा गया है कि स्वेच्छा से दल का परित्याग का मतलब यह नहीं कि कोई नेता लिखित या मौखिक रूप से कहे कि वह पार्टी छोड़ रहा है. अगर पार्टी में उसका आचरण, कृत्य, आस्था और अनुशासन सही नहीं रहता है, तो वह दल का परित्याग होगा. चारों बागियों पर इसी मामले में शिकायत की गयी थी. हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि यदि हाइकोर्ट चाहे तो स्पीकर के फैसले पर रोक लगा सकता है.

अन्य बागियों का किया बचाव

मंत्री पीके शाही ने जिन आठ बागियों पर कार्रवाई चल रही है, उनके अलावा अन्य बागियों का बचाव किया. उन्होंने कहा कि दल के सदस्य कभी-कभी ऐसा आचरण व कृत्य करते हैं और वे बाद में दल में आस्था व्यक्त करते हैं, तो यह दल का अधिकार है कि उन पर कार्रवाई करे या न करे. ऐसे में दल यह देखता है कि किसके आचरण से पार्टी पर असर पड़ रहा है. अगर कोई नेता अपनी गलती रियलाइज कर लेता है, तो उस पर कार्रवाई जरूरी नहीं.

हाइकोर्ट को सीमित न्यायिक समीक्षा का अधिकार

श्री शाही ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 226 के अनुसार हाइकोर्ट का अधिकार है कि स्पीकर के कोर्ट के फैसले पर सीमित न्यायिक समीक्षा करे. हाइकोर्ट यह देखेगा कि विधायकी बरखास्त कर उनके साथ अन्याय तो नहीं हुआ है. अगर हाइकोर्ट को लगा कि फैसले में त्रुटि है, तो इस पर रोक लग सकती है.

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