पटना: स्वास्थ्य विभाग में हुए दवा घोटाले में तीन ब्लैक लिस्टेड कंपनियों में से दो कंपनी मेडी पॉल (11.24 करोड़) व लेवोरट (8.36 करोड़) की दवा खरीदी गयी थी.
जिसके बाद उनको पेमेंट भी किया, लेकिन जांच रिपोर्ट के मुताबिक मेडिपॉल फार्मा इंडिया के द्वारा समर्पित बीड पेपर में हेरा-फेरी की गयी है और इस बात को लेकर भी चर्चा है कि कमेटी के किसी एक सदस्य के परिजन का ही कंपनी का सीएनएफ है. रिपोर्ट के मुताबिक मेडी पॉल फार्मा का तकनीकी निविदा खुलने के बाद बीड पेपर के प्रथम पृष्ठ पर मात्र तीन सदस्यों का हस्ताक्षर ही अंकित था.
संभव है यह भी फर्जी हो: टेक्नीकल इवेल्यूशन कमेटी के अन्य सदस्यों का हस्ताक्षर अंकित नहीं है. कई अन्य कंपनियों के बीड पेपर के प्रथम पृष्ठ पर टेक्नीकल इवेल्यूशन कमेटी के सभी सदस्यों का हस्ताक्षर अंकित पाया गया. इसी कारण से मो. शहनवाज अली ने मेडिपॉल फार्मा इंडिया के बीड पेपर में हेराफेरी का आरोप लगाया है. आरोप पत्र में कहा है कि टेक्नीकल इवेल्यूशन कमेटी के 19 जुलाई,13 की कार्रवाई ने समिति के सदस्यों का हस्ताक्षर बैठक के पूर्व की तिथि 27 जुलाई अंकित है. इसे अनियमितता करार दिया जा सकता है.
रिपोर्ट के छठे पेज में अंकित बातें : जांच समिति के सदस्यों के द्वारा पाया गया है कि एनआइटी के शर्तो एवं 25 अप्रैल 2013 को हुई टेक्नीकल इवेल्यूशन कमेटी की कार्रवाई में उल्लेखित की कंडिका में स्पष्ट है कि ब्लैक लिस्टेड प्रोडेक्ट के तथ्यों को छुपाने के आरोप में इसे टेक्नीकली अयोग्य घोषित किया जाना चाहिए था जो की नहीं किया गया. साथ ही उच्च न्यायालय के अंतिम आदेश के आलोक ने ही मेडिपॉल का फाइनेसियल बीड खोला गया पर उच्च न्यायालय के अंतिम आदेश की प्रतीक्षा किये गिना आपूर्ति आदेश देना नियमानुकूल प्रतीत नहीं होता है.