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कोसी त्रासदी छह साल बाद, अब भी आंखों में है ‘प्रलय’ के आंसू

सुपौल: ‘थमते-थमते थमेंगे आंसू, रोना है कुछ हंसी नहीं’ मशहूर शायर मीर की ये पंक्तियां वर्ष 2008 की कुसहा त्रसदी के पीड़ितों के लिए आज भी प्रासंगिक हैं. कोसी ने लगभग साढ़े पांच वर्ष पहले 18 अगस्त, 2008 को जो विनाश का काला इतिहास लिखा था, उसकी चपेट में आये लोगों का दर्द वक्त के […]

सुपौल: ‘थमते-थमते थमेंगे आंसू, रोना है कुछ हंसी नहीं’ मशहूर शायर मीर की ये पंक्तियां वर्ष 2008 की कुसहा त्रसदी के पीड़ितों के लिए आज भी प्रासंगिक हैं. कोसी ने लगभग साढ़े पांच वर्ष पहले 18 अगस्त, 2008 को जो विनाश का काला इतिहास लिखा था, उसकी चपेट में आये लोगों का दर्द वक्त के साथ गहराता ही जा रहा है. सुपौल, अररिया, मधेपुरा व सहरसा की लगभग 30 लाख आबादी अपने घर छोड़ने को मजबूर हुए, तो 300 से अधिक लोगों की जानें गयीं.

हजारों घर जल प्रलय में विलीन हो गये, तो कई हजार बेजुबान पशुओं की भी मौत हुई. केवल सुपौल जिले की 83,403 हेक्टयर कृषि योग्य भूमि में बालू की मोटी चादर बिछ गयी. राज्य सरकार ने इसे महाप्रलय कहा, तो केंद्र सरकार ने इसे राष्ट्रीय आपदा घोषित किया. लेकिन, बिडंबना यह है कि अब तक कुसहा के कसूरवार की शिनाख्त नहीं हुई. राहत में गैरबराबरी व विलंब से पीड़ितों की भावनाएं आहत हैं और उनमें क्षोभ है.

आंखों के सामने कलेजे के टुकड़े ने तोड़ा दम : छातापुर के रामदत्तराम और मनोरमा देवी को 2 सितंबर की तारीख ताउम्र टीस देती रहेगी, जब आंखों के सामने ही बोट से उतरने के क्रम में बेटे अश्विनी (30 वर्ष) की डूब कर मौत हो गयी. बुढ़ापे का सहारा छिन जाने के बाद अब बेटे की तसवीर ही सहारा है. दर्द इस बात का है कि बेटे की लाश भी नहीं खोज पाये. सवालिया लहजे में कहते हैं कि ‘क्या कुसहा के दोषियों को सजा मिलेगी’.

काश, कन्यादान के लिए बाबूजी मौजूद होते : छातापुर की रंजना की शादी अगले माह होने वाली है. पिता कुशेश्वर साह की मौत तब आंखों के सामने हुई थी जब सुरक्षित स्थान की तलाश में पूरा परिवार नाव से त्रिवेणीगंज की ओर जा रहा था. पिता की मौत के बाद अब तक की जिंदगी गरीबी और अभाव के साये में कटती रही है. वे अपनी लाडली के हाथों में मेहंदी और पैरों में भहावर लगे देख भी नहीं सके. भरी आंखों से कहती हैं-काश, कन्यादान के लिए बाबूजी मौजूद होते.

कहां है पुनर्वास, पता नहीं : प्रमिला देवी के पति राजेंद्र गिरि पेशे से पुजारी थे और नाव दुर्घटना में कोसी की भेंट चढ़ गये. लाचार प्रमिला ने तब से बच्चों के साथ मंदिर को ही स्थानीय निवास बना लिया. कहती है ‘कहां है पुनर्वास योजना मुङो नहीं मालूम’. हम तो ऐसे ही मंदिर में टिके हुए हैं. अब लगता है, भगवान के दर तक जाने तक अपना घर नहीं मिलेगा. किसी को सब कुछ और किसी के मुह में नमक तक नहीं.

होनहार बह गया, नि:शक्त के सहारे जिंदगी : प्रतापगंज की रीता सिंह (65 वर्ष) के पति वर्षो से मानसिक रूप से कमजोर हैं और एक बेटा भी जन्मजात नि:शक्त है.

जिंदगी का सहारा होनहार बेटा पन्ना सिंह (25 वर्ष) कोसी की धारा में बह गया. कहती है ‘क्या यही भगवान का न्याय है. कुसहा त्रसदी के लिए जिम्मेवार लोगों के लिए भगवान कहां हैं’. कैसे कोई यह कह दे कि यहां न्याय होता है. न्याय होता तो कुसूरवार को सजा मिलती.

बेटे ने बुढ़ापे में साथ छोड़ा : भवानीपुर दक्षिण की रहमती खातून (63 वर्ष) का बेटा मो हसरूद्दीन बुढ़ापे में साथ छोड़ कोसी के साथ चला गया. कहती हैं ‘कुछ नय मिलल, कोय नय बनल सहारा’ . टेकुना के मो जमील की जिंदगी अब बोङिाल हो गयी है. दर्द इस बात का है कि आंखों के सामने डूब रहे बेटे समशुद्दीन (27 वर्ष) को नहीं बचा सके. कहते हैं ‘सुनलिए जांच भय रहल छै, किछु नतीजा निकलत कि सब फारस छिऐ’. हमरा सभक त भगवाने बेइमान भ गेलै, तखन लोकक की कथा. देखा चाही ऐ बेरुक की होई छै. दोहाय कोसी मैया के जे सभके नियाय मिलतै.’

प्रेमचंद का जिंदा होरी छातापुर में : छातापुर के किसान लक्ष्मण राम का दो एकड़ खेत अब गड्ढे और बालू की खान में तब्दील हो चुका है, जहां कृषि संभव नहीं है. दूर-दूर तक केवल रेत. इसको देख कर कोई कह नहीं सकता कि कभी यह जमीन सोना उगलती थी.

साल भर एक परिवार का पेट पलता था. सभी अपने मन के राजा थे. शादी में लोग छक कर भोज खाते थे. अब ऐसा कुछ भी नहीं. धरती का मोह है, तो जिंदा हैं. वैसे यह जीना भी कोई जीना है. कहते हैं ‘मुआवजा और पुनर्वास बिचौलिये की भेंट चढ़ गया. जांच रिपोर्ट का हश्र भी हम जानते हैं. बेहतर कोसी का आज भी हमे इंतजार है’.

कुसहा बांध टूटने की जांच रिपोर्ट सरकार को सौंपी
कोसी नदी के कुसहा तटबंध टूटने के कारणों की जांच कर रहे न्यायाधीश जेएस बालिया ने अपनी जांच रिपोर्ट सोमवार को मुख्य सचिव अशोक कुमार सिन्हा को सौंप दी. आदर्श आचार संहिता के कारण रिपोर्ट में शामिल किये गये तथ्यों के बारे में जस्टिस बालिया ने खुलासे से इनकार किया. मुख्य सचिव श्री सिन्हा ने भी इस संबंध में कुछ बताने से इनकार करते हुए कहा कि मुङो दो सूटकेस दस्तावेज मिला है. इसका अध्ययन कर ही कुछ कहा जा सकता है. इधर, कोसी जांच आयोग के सूत्र से मिली जानकारी के अनुसार, कोसी के इस तटबंध की टूट के लिए नेपाल सरकार की ओर से पूरी मदद नहीं मिलने के कारणों को नोट किया गया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रशासनिक गंभीरता की कमी के कारण तटबंध को समय पर मरम्मत नहीं किया जा सका, जिसके कारण तटबंध टूटा. 18 अगस्त, 2008 को कुसहा तटबंध टूटने से कोसी के इलाके में भीषण बाढ़ आयी थी. इसके कारण सहरसा, सुपौल, मधेपुरा, पूर्णिया और अररिया में जहां व्यापक जान-माल की क्षति हुई थी. इन जिलों की जमीन पर कोसी की बालू आने से खेत बंजर हो गया. सरकार की जांच में कम से कम सवा लाख घर तबाह हो गये थे. एक साल तक लोगों मेगा कैंप में रहना पड़ा था. आज भी के क्षेत्र में राहत और पुनर्वास का कार्य जारी है.

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