भारतीय क्रिकेट टीम की न्यूजीलैंड में जो दुर्दशा हो रही है, उस पर टिप्पणी करने की कोई खास वजह नहीं अब इसलिए नहीं कि हमारे खिलाड़ी यह साबित कर चुके हैं कि वह तभी तक शेर है जब तक अपने घर में. और अपने घर में तो सभी शेर होते हैं.
वैसे क्रिकेट में ज्यादातर खेलने वाले देशों का यही हाल है. जहां तक हार-जीत के लेखा-जोखा का सवाल है. बस एक ऑस्ट्रेलिया ही इसमें अपवाद है. वैसे भी क्रिकेट ही जीत हार में खेल से ज्यादा पिच और हुनर से ज्यादा हालात की भूमिका होती है. वह बहुत हद तक राजनीति की तरह है. यानी चांस पर निर्भर.
मगर इस दौरे की एक खास बात यह है कि न्यूजीलैंड की टीम इंडिया की धुनायी कर रही है और उस टीम की जिसके बारे में बड़ी-बड़ी बातें बहुत ज्यादा बढ़ा कर कही जाती रहीं. जैसे कि महेंद्र सिंहधौनी सर्वश्रेष्ठ कप्तान हैं अब तक के. और यह टीम सर्वश्रेष्ठ है अब तक की. यदि इतिहास पर दृष्टि डालें तो पिछले बारह दौरों में टीम इंडिया ने एक भी टेस्ट मैच विदेशी धरती पर नहीं जीता है. यह भी काबिले गौर है कि भारतीय क्रिकेट को विदेशी धरती पर जीत का स्वाद चखाने वाले देशों में न्यूजीलैंड की बड़ी भूमिका रही है. यानी वहां की धरती पर ज्यादा जीतें मिली हैं भारत की पूर्व की टीमों को. तो फिर यह तो बात वही है कि नाम बड़े और दर्शन छोटे.
नाम तो इतना बड़ा है कुछ प्रबंधन के बड़े संस्थान धौनी की नेतृत्व शैली पर शोध करने लगे. शोध से ज्यादा शोध का प्रचार करने लगे. जैसे कि धौनी जी की कप्तानी में हारना संभव ही नहीं. पता नहीं यह किसकी शोध है, लेकिन अब तो ऐसा लग रहा है कि धोनी जी की कप्तानी में जीत संभव नहीं. दरअसल, मामला न धौनी का है और न उनकी टीम का. मामला तो उस महिमा मंडन का है जो हमारे देश में बहुत तेजी से होता है.
वैसे उसी तेजी से महिमा खंडन भी होता है. मगर सोचने वाली बात यह है कि कहीं यह अत्यधिक महिमा मंडन ही तो महिमा खंडन का कारण नहीं है, क्योंकि भारतीय मानस में सफलता बहुत तेजी से दिमाग में घुसती है. शायद ऐसी ही कुछ सोच मशहूर हास्य कवि बेधड़क बनारसी की इन पंक्तियों के पीछे रही होगी –
वह जमाना कब आयेगा जब
पैदा होते ही मातमपुरसी होगी
और आदमी के ऊपर बैठी कुरसी होगी
स्थिति भी ऐसी ही है. आजकल आदमी कुरसी पर बैठते ही संतुलन खो देता है. और नतीजा होता है कि वह नीचे हो जाता है और कुरसी ऊपर. सफलता भी तो एक तरह की कुरसी ही है. और पावर भी. खैर, तो बात क्रिकेट की. तो क्रिकेट एक खेल है जिसमें हार-जीत के पीछे बहुत से कारक होते हैं, और खिलाड़ी या कप्तान उन बहुत से कारकों में से एक होता है. बेहतर हो यदि हर सफलता-विफलता को इसी नजरिये से देखा जाये. शायद इससे सफलता भी अधिक स्थायी रहेगी, क्योंकि दिमाग ठिकाने रहेगा.
।। डॉ प्रमोद पाठक ।।