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सियाराम मय सब जग जानी

बल्देव भाई शर्मा कल ‘विवाह पंचमी’ है, श्रीराम-सीता विवाह का शुभ दिन. हजारों हजार साल बीत गये परंतु यह दिन भारतीय लोकमानस में इस तरह समाया है कि आज भी अनेक घरों, मंदिरों व सार्वजनिक आयोजनों में पूरे हर्षोल्लास के साथ श्रीराम-सीता विवाहोत्सव मनाया जाता है. श्री सीताराम आदर्श दंपती हैं वे एक रूप हैं […]

बल्देव भाई शर्मा

कल ‘विवाह पंचमी’ है, श्रीराम-सीता विवाह का शुभ दिन. हजारों हजार साल बीत गये परंतु यह दिन भारतीय लोकमानस में इस तरह समाया है कि आज भी अनेक घरों, मंदिरों व सार्वजनिक आयोजनों में पूरे हर्षोल्लास के साथ श्रीराम-सीता विवाहोत्सव मनाया जाता है. श्री सीताराम आदर्श दंपती हैं वे एक रूप हैं उन्हें अलग करके देखा ही नहीं जा सकता. तुलसीदास ने लिखा है. ‘सियाराममय सब जग जानी/करहुं प्रणाम जोरि जुग पानी.’ सीता के प्रति राम का प्रेम अनन्य है, वह उन्हें कभी भी किसी भी प्रकार का दुख देने की सोच भी नहीं सकते. जब रावण सीता का हरण करके लंका ले जाता है और उन्हें अशोक वाटिका में रखकर त्रास देता है, तब सीता विह्वल हो जाती है कि कब राम आयें आैर उन्हें मुक्त करायें.

वहां उनकी देखभाल के लिए एक त्रिजटा नाम की राक्षसी है. राक्षसी होकर भी सीता के प्रति उसमें करुणा है. युद्ध में रावण को मरता न देखकर सीता विह्वल हो जाती है और त्रिजटा से पूछती है कि माता पूरे विश्व को त्रास देने वाला यह कैसे मरेगा? त्रिजटा कहती है- ‘प्रभु ताते उर हतई न तेही/एहि के हृदय बसति बैदेही’ अरे सीता, भगवान राम तो हमें क्षण भर में मार दें, लेकिन राम उसके हृदय में वाण इसलिए नहीं मार रहे कि रावण ने बैदेही यानी तुम्हें अपने हृदय में बसा रखा है. कहीं वह बाण उसके हृदय में लग कर सीता को चोंट न पहुंचा दे. उधर सीता का राम के प्रति प्रेम देखिए कि वह राम द्वारा वरण किये जाने के बाद सखियों के बार-बार कहने पर भी पति के चरण छूने से इसलिए डर रही हैं कि जैसे राम के चरणाें का स्पर्श पाकर गौतम ऋषि की पत्थर बनी पत्नी अहल्या तर गयी, वैसे ही राम के चरण छूते ही मैं भी कहीं मुक्ति को प्राप्त नहीं हो जाऊं और मुझे राम से अलग होना पड़े. सीता को मुक्ति नहीं चाहिए, राम चाहिए. तुलसीदास ने सीता की इस मनोदशा का बड़ा मार्मिक चित्रण किया है – ‘गौतम तकय गति सुरति करि नहिं परसति पग पानि/मन बिहंसे रघुवंसभानि प्रीति अलौकिक जानि.’ सीता के मन का ऐसा अलौकिक प्रेम जानकर राम मन ही मन प्रसन्न हो रहे हैं.

पुष्प वाटिका में भ्रमण करते हुए सीता राम की छवि देखकर पहली बार में ही मन में ऐसे बसा लेती हैं कि फिर वह कभी उनसे छिटक न सके. इस प्रथम दर्शन का मानस में तुलसी बाबा ने वर्णन करते हुए लिखा है – ‘लोचन मम रामहि उर आनी/दीने पलक कपाट सयानी.’ सीता ने आंखों के रास्ते राम को हृदय में उतार लिया और फिर बाहर न निकल जायें इसलिए चतुर सुजान जानकी ने आंखों के पलक कस कर बंद कर लिये. इस प्रथम दर्शन में ही सीता विह्वल हो जाती हैं इस उपशंका से कि कहीं राम नहीं मिले तो वह गौरी पूजन में प्रार्थना करती हैं.

पार्वती उनको आश्वस्त करती है. ‘पूजहि मनकामना तुम्हारी’ कहती है कि राम सबके मन की बात जानते हैं, वह परमब्रह्म हैं. मेरा भी तप देखकर उन्होंने ही शिव को मुझसे विवाह करने को प्रेरित किया. इसलिए सीता चिंता मत करो – ‘सो बरु मिलहिं जाहिं मन राचा’ तुमने मन में जिसे बसा लिया है वही वर तुम्हे मिलेगा अर्थात राम तुम्हे अवश्य मिलेंगे. राम पर भरोसा तो हो यही महत्वपूर्ण है मन के ऊहापोह या संकल्प-विकल्प के बीच राम नहीं ठहरते. रहीम ने भी लिखा है- ‘टेढ़े मिले न राम’ जिंदगी की चाल टेढ़ी हो, छल-प्रपंच हो तो रमा नहीं मिलते. ऋषि वाल्मीकि और राम के संवाद का वर्णन करते हुए तुलसीदास कहते हैं कि जब श्रीराम वाल्मीकि से पूछते हैं कि मुझे जानकी और लक्ष्मण सहित कहां रहना चाहिए तब वाल्मीकि उनसे वह स्थान बताते है जो राम का निवास हो- ‘जिनके कपर दंभ नहिं माया/तिन्हके हृदय बसहु रघुराया.’ काम क्रोध मद मान न मोहा/लोभ न छोभ न राग न द्रोहा. तुमहि छांड़िं गति दूसरी नाहीं/राम बसहुं तिनके मन माही. वस्तुत: सीता वह मन है जो इन बुराइयों-विकारों से मुक्त है, इसे छोड़कर राम कहीं नहीं जा सकते. ऐसे पवित्र मन का जब राम वरण कर लेते हैं तो वहीं बस जाते हैं. राम मिल गये तो मानो जग मुट्ठी में आ जाता है. राम को छोड़ कर जगत के भोग विलास के पीछे भागोगे तो कभी चैन से नहीं बैठ पाओगे. वह सब पाकर भी अवसाद, तनाव, अकेलापन, क्लेश ही पल्ले पड़ेगा. राम का अर्थ है मानवीय गुणों-संवेदनाओं को अपनाना और दुर्गुणों का त्याग. इसीलिए वाल्मीकि ने राम को विग्रहवान धर्म कहा है यानी धर्म का मूर्त रूप है राम. माता सीता ने उन्हें पूरे मन से अपना लिया है.

ब्रज में एक लोकगीत है सीता-राम विवाह का, उसमें सीता अपनी सखियों से कहती है ‘सुंदर श्याम सुजान सिरोमनि मो मन में रमि राम रहा है.’ मेरे मन में तो राम रम गये हैं, और सीता संकल्प व्यक्त करती है ‘चाप निगोड़ो अबै जरि जाउ/ तनौ तो कहा न तनौ तो कहा है. रीति पतिव्रत राखि चुकी/पुनि भखि चुकी अपनौ दुलहा है.’ मैंने तो राम को अपना दूल्हा मान लिया, उनके नाम पर पति व्रत धारण कर लिया, अब धनुष टूटे या न टूटे, मुझे कोई परवाह नहीं. जब मन राम से इस कदर जुड़ जाता है तो राम छोड़ कर जा ही नहीं सकते. केवल पूजा-पाठ के भ्रम में राम नहीं फंसते, वे सब समझते हैं कि बाहर से हम भक्ति का जो दिखावा कर रहे हैं वह अंदर कितना है हमारे जीवन में और मन में. इसीलिए पार्वती सीता को समझाती है कि चिंता मत करो, तुमने राम को मन में बसा लिया है तो राम तुम्हें जरूर मिलेंगे क्योंकि राम मन के भाव को खूब जानते-समझते हैं, उन्हें कोई धोखा नहीं दे सकता-‘करुणा निधान, सुजान सीलु सनेहु जानत सबरो.’ सीता बैदेही है यानी मिथिला नरेश राजा जनक की पुत्री जो विदेह कहे जाते हैं.

संसार के राजसी ठाठ-बाट के बीच भी अलिप्त रह कर त्यागपूर्ण जीवन जीने वाला विदेह कहलाता है. सीता का स्मरण मन का विदेह हो जाना है. स्वामी विवेकानंद ने कहा है कि सीता विश्व की स्त्री जाति का आदर्श है. तुलसीदास ने सीता के बारे में लिखा है-‘सुजसू सुकृत सुख सुंदरता को समेट कर विधाता ने सीता के रूप में अद्भभुत रचना की है. इसीलिए तुलसीदास सीता-राम विवाह का वर्णन करते हुए लिखते हैं-‘सोहत सीय राम की जोरी/छवि सिंगारू मनहुं एक ठोरी.’ सीता-राम की जोड़ी ऐसी शोभायमान हो रही है मानो सौंदर्य और श्रृंगार एक हो गये हों.आज भी भारतीय मानस विवाहित जोड़ों में वही छवि तलाशता है क्योंकि यह संबंध परस्पर प्रेम, भक्ति, विश्वास और साहचर्य का है. विवाह कोई अनुबंध या लिव इन रिलेशन नहीं है जिससे इस हाथ ले, उस साथ दे और हिसाब बराबर’ जैसी सोच हो. यह एक सांस्कृतिक अनुष्ठान है जो मात्र स्त्री-पुरुष समानता या दैहिक सुख की नहीं, बल्कि परस्परता पूरकता यानी एक के बिना दूसरा अधूरा की संकल्पना को व्यक्त करता है.

यही अर्द्धनारीश्वर का स्वरूप है जहां ‘ईगो क्लैश’ या ‘प्राइवेसी’ अथवा दूसरे से अलग अपने लिए स्पेस तलाशते लड़ते-मरते पति-पत्नी का अवसाद या तनाव नहीं है. विवाह परिवारिक संकल्पना का आधार है ओर विश्व को भारत की अनुपम देन. इसीलिए दूल्हा-दुल्हन की सप्तपदी शुरू होते ही आज भी महिलाएं गाती हैं-‘सिया रघुवर जी के संग पड़ने लागीं भावदियां.’ यानी हर जोड़े में सीता-राम की छवि देख कर मानो आशीर्वाद दिया जा रहा है कि पति-पत्नी के रूप में उसी संयुक्त भाव से जिओ जैसे सीता और राम है.

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