आप इसलिए हैं, क्योंकि आपके माता-पिता ने आपको जन्म दिया है, और आप भारत के ही नहीं, विश्व की संपूर्ण मानवता के शताब्दियों के विकास का परिणाम हैं. आप किसी असाधारण अनूठेपन से नहीं जन्मे हैं, बल्कि आपके साथ परंपरा की पूरी पृष्ठभूमि है.
आप हिंदू या मुसलिम हैं. आप पर्यावरण-वातावरण, खानपान, सामाजिक और सांस्कृतिक परिवेशों और आर्थिक दबावों से उपजे हैं. आप अनेकों शताब्दियों का, समय का, द्वंद्वों का, दर्दों का, खुशियों का और लगाव-चाव का परिणाम हैं. आप में से हर कोई जब यह कहता है कि वह एक आत्मा है, जब आप कहते हैं कि आप शुद्ध ब्राह्मण हैं, तो आप केवल परंपरा का, किसी संकल्पना का, किसी संस्कृति, भारत की विरासत, भारत की सदियों से चली आ रही विरासत का ही अनुकरण कर रहे होते हैं. प्रश्न है कि जीवन में आपका ध्येय क्या हो?
तो पहले तो आपको अपनी पृष्ठभूमि को समझना होगा. यदि आप पंरपरा, संस्कृति को, समूचे परिदृश्य को नहीं समझते, तो आप अपनी पृष्ठभूमि से उपजे किसी विचार, मिथ्या अर्थ को मान लेंगे और उसे ही अपने जीवन का ध्येय कहने लगेंगे. माना कि आप हिंदू हैं और हिंदू संस्कृति में पले बढ़े हैं, तो आप हिंदूवाद से उपजे किसी सिद्धांत या भावना को चुन लेंगे और उसे अपने जीवन का ध्येय बना लेंगे. लेकिन, क्या आप हिंदू से अलग, बिल्कुल अलग तरह से सोच सकते हैं? यह जानने के लिए कि हमारे अंतर्तम की क्या संभावनाएं या हमारा अंतर्तम क्या गुहार लगा रहा है. यह जानने के लिए किसी व्यक्ति को इन सभी बाहरी दबावों से मुक्त होना ही होगा.
यदि मैं किसी चीज की जड़ तक जाना चाहता हूं, तो मुझे यह सब खरपतवार या व्यर्थ की चीजें हटानी होंगी, जिसका मतलब है मुझे हिंदू-मुसलमान होने से हटना होगा और यहां भय भी नहीं होना चाहिए, ना ही कोई महत्वाकांक्षा, ना ही कोई चाह. तब मैं कहीं गहरे तक पैठ सकता हूं, और जान सकता हूं कि हकीकत में यथार्थ संभावनाजनक, या सार्थक क्या है. लेकिन, इन सबको हटाये बिना मैं जीवन में सार्थक क्या है, इसका अंदाजा नहीं लगा सकता. ऐसा करना मुझे केवल भ्रम और दार्शनिक अटकलबाजियों में ही ले जायेगा.
– जे कृष्णमूर्ति