हमारी सृष्टि का आधार सूर्य ही है. सूर्य के चारों ओर यह पृथ्वी नित्य भ्रमण कर रही है. इसी के आधार पर ऋतुओं का तथा दिन-रात का परिवर्तन होता है. वनस्पतियों का तथा औषधियों का भी सूर्य के बिना अस्तित्व समाप्त हो जाता है. सूर्य ऊर्जा का प्रतीक है. परमात्मा ने बहुत सोच-समझ कर इसका निर्माण किया होगा. सूर्य की शक्ति से ही विश्वभर में ऊर्जा का सागर लहरा रहा है. हम शरीर के जिस अंग के माध्यम से सूर्य से ऊर्जा ग्रहण करते हैं, हमारे उस अंग में शक्ति बढ़ जाती है.
उदाहरण के लिए, यदि आंख के माध्यम से सूर्य से ऊर्जा ग्रहण करते हैं, तो आंख की ज्योति बढ़ जाती है. इसी तरह खुले मैदान में जब हम व्यायाम करते हुए सूर्य की रोशनी को पीते रहते हैं, तो हमारे शरीर के एक-एक अंग में शक्ति आ जाती है और अंगों की चमक बढ़ने लगती है.
जो व्यक्ति इन प्रक्रियाओं के माध्यम से सूर्य ऊर्जा का सेवन करता है, वह कभी भी व्याधि ग्रस्त नहीं होता है और उसे किसी भी प्रकार की औषधि ग्रहण की आवश्यकता नहीं पड़ती है. इसीलिए माताएं अपने शिशु को धूप में सलाती हैं, ताकि उसके शरीर के सभी अंगों में सूर्य की रोशनी प्रचुर मात्रा में जा सके और उसकी अस्थियां मजबूत बन सकें.
– आचार्य सुदर्शन
