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सदाचार की दृष्टि

वैदिक आदेशानुसार आततायी छह प्रकार के होते हैं- पहला विष देनेवाला, दूसरा घर में अग्नि लगानेवाला, तीसरा घातक हथियार से आक्रमण करनेवाला, चौथा धन लूटनेवाला, पांचवां दूसरे की भूमि हड़पनेवाला तथा छठा परायी स्त्री का अपहरण करनेवाला. ऐसे आततायियों का वध करना सामान्य व्यक्ति को शोभा दे सकता है किंतु अर्जुन सामान्य व्यक्ति नहीं है. […]

वैदिक आदेशानुसार आततायी छह प्रकार के होते हैं- पहला विष देनेवाला, दूसरा घर में अग्नि लगानेवाला, तीसरा घातक हथियार से आक्रमण करनेवाला, चौथा धन लूटनेवाला, पांचवां दूसरे की भूमि हड़पनेवाला तथा छठा परायी स्त्री का अपहरण करनेवाला. ऐसे आततायियों का वध करना सामान्य व्यक्ति को शोभा दे सकता है किंतु अर्जुन सामान्य व्यक्ति नहीं है.

वह स्वभाव से साधु है, अत: वह उनके साथ साधुवत व्यवहार करना चाहता था. किंतु इस प्रकार का व्यवहार क्षत्रिय के लिए उपयुक्त नहीं है. यद्यपि राज्य के प्रशासन के लिए उत्तरदायी व्यक्ति को साधु प्रकृति का होना चाहिए, कायर नहीं. उदाहरणार्थ, भगवान राम इतने साधु थे कि आज भी लोग रामराज्य में रहना चाहते हैं, किंतु उन्होंने कभी कायरता प्रदर्शित नहीं की. रावण आततायी था, इसलिए राम ने उसे ऐसा पाठ पढ़ाया जो विश्व-इतिहास में बेजोड़ है.

अर्जुन के प्रसंग में विशिष्ट प्रकार के आततायियों से भेंट होती है, इसलिए अर्जुन ने विचार किया कि उनके प्रति यह सामान्य आततायियों जैसा कटु व्यवहार न करे. इसके अतिरिक्त, साधु पुरुषों को तो क्षमा करने की सलाह दी जाती है. साधु पुरुषों के लिए ऐसे आदेश किसी राजनीतिक आपातकाल से अधिक महत्व रखते हैं. इसलिए अर्जुन ने विचार किया कि राजनीतिक कारणों से स्वजनों का वध करने की अपेक्षा धर्म तथा सदाचार की दृष्टि से उन्हें क्षमा कर देना श्रेयस्कर होगा. अत: क्षणिक शारीरिक सुख के लिए इस तरह वध करना लाभप्रद नहीं होगा.

स्वामी प्रभुपाद

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