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दीर्घकालिक पहल हो

वैज्ञानिकों का आकलन है कि 2022 दुनिया के सर्वाधिक पांच गर्म वर्षों में एक हो सकता है. धरती के बढ़ते तापमान तथा जलवायु परिवर्तन का सबसे नकारात्मक प्रभाव जिन देशों पर पड़ रहा है, उनमें भारत भी शामिल है.

इस साल के पहले चार महीनों में तापमान का रिकॉर्ड स्तर तक पहुंचना यह इंगित करता है कि अगले दो-तीन महीने भारी पड़ सकते हैं. देश के कई हिस्सों में लू चल रही है. उल्लेखनीय है कि वैश्विक स्तर पर भी हालिया महीने सबसे अधिक गर्म साबित हुए हैं. वैज्ञानिकों का आकलन है कि 2022 दुनिया के सर्वाधिक पांच गर्म वर्षों में एक हो सकता है. पिछला वर्ष सातवां सबसे गर्म साल रहा था.

इतिहास में सबसे गर्म वर्षों में लगभग सभी साल पिछले और इस दशक से हैं. धरती के बढ़ते तापमान तथा जलवायु परिवर्तन का सबसे नकारात्मक प्रभाव जिन देशों पर पड़ रहा है, उनमें भारत भी शामिल है. इस साल यदि बढ़ते तापमान से राहत नहीं मिली, तो उत्तर, पश्चिम और पूर्वी भारत में बेहद गर्मी पड़ेगी और गर्म हवाएं चलेंगी. यदि मानसून आने में देरी होती है या कम बारिश होती है, तो गर्मी का मौसम लंबा हो सकता है.

इस समस्या के समाधान का एक पहलू तो जलवायु परिवर्तन की रोकथाम के लिए व्यापक स्तर पर सक्रिय होने तथा इस संबंध में राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय प्रयासों की गति बढ़ाने की आवश्यकता है. चुनौती का दूसरा आयाम यह है कि बढ़ती गर्मी के कुप्रभावों से बचाव कैसे हो. लू से बचने के लिए विद्यालयों और कार्यालयों में अवकाश दिया जा सकता है या उनका समय बदला जा सकता है, लेकिन बड़ी कामकाजी आबादी के पास घर में रहने या काम के दौरान गर्मी से बचने के विकल्प या उपाय नहीं होते.

इसी कारण लू लगने से मौतें होती हैं और लोग बीमार पड़ते हैं. गर्मी खेती के लिए भी नुकसानदेह है और इससे ऊर्जा व जल स्रोतों पर भी दबाव बढ़ता जा रहा है. यह तो निश्चित ही है कि निकट भविष्य में गर्मी का प्रकोप बढ़ता ही जायेगा, इसलिए कुछ ठोस नीतिगत पहलों पर ध्यान दिया जाना चाहिए. राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अनुसार, हमारे देश में 1991 और 2018 के बीच 24 हजार से अधिक लोगों की मौत लू लगने से हुई है. इससे कार्यक्षमता पर भी असर होता है. इसका एक असर जल संकट के रूप में हमारे सामने है.

हालांकि सरकारी स्तर पर पानी के बेहतर प्रबंधन की कोशिशें हो रही हैं, लेकिन ऐसे प्रयासों में स्थानीय समुदायों की समुचित सहभागिता नहीं है. यह कमी जंगली आग रोकने में भी बाधक बन रही है, जो तापमान बढ़ने का एक और खतरनाक नतीजा है.

हमें बढ़ती गर्मी को देखते हुए नीतियां भी बनानी चाहिए तथा लोगों में भी यह भावना भरनी चाहिए कि बहुत अधिक गर्मी समेत जलवायु परिवर्तन के अन्य प्रभाव ऐसे स्वास्थ्य मसले हैं, जिनका समाधान संभव है. उल्लेखनीय है कि गर्मी के मसले पर हमारे देश में हाल ही में शासकीय सक्रियता प्रारंभ हुई है. वर्ष 2015 में इसकी परिकल्पना हुई और 2018 में जलवायु परिवर्तन और मानवीय स्वास्थ्य पर राष्ट्रीय कार्ययोजना बनी. इस योजना के अमल पर सरकारों को ध्यान देना चाहिए.

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