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अपना आचार-व्यवहार बदलें अधिकारी

भारतीय लोकतंत्र में ब्यूरोक्रेसी का सम्मान, उपयोगिता और योगदान बना रहे, इस पर स्वयं ब्यूरोक्रेसी को सजग रहना होगा.

कड़े परिश्रम और योग्यता के आधार पर ही प्रशासनिक सेवा में चयन हो पाता है. लेकिन जब-तब अधिकारियों के आचार-व्यवहार को लेकर निराशाजनक खबरें सामने आती हैं, तो सिर शर्म से झुक जाता है. नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के मुंबई जोन के डायरेक्टर समीर वानखेड़े आर्यन खान ड्रग्स केस को लेकर चर्चा में हैं. महाराष्ट्र सरकार में मंत्री और एनसीपी नेता नवाब मलिक ने वानखेड़े के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है.

शाहरुख खान के बेटे की गिरफ्तारी के कारण यह मामला शुरू से ही सुर्खियों में रहा. पर अब वानखेड़े खुद सवालों में घिरते नजर आ रहे हैं. इस केस के ही एक गवाह ने उन पर आठ करोड़ रुपये उगाही की कोशिश का आरोप लगाया है. समीर वानखेड़े को तेज तर्रार अफसर माना जाता है, पर अब एनसीबी ने इस केस से उन्हें अलग कर दिया है. मायानगरी मुंबई तो विचित्र है. यहां एक के बाद कई ऐसे मामले सामने आये हैं, जिनमें अधिकारी खुद सलाखों के पीछे चले गये हैं. कारोबारी मुकेश अंबानी के घर विस्फोटक मिलने के मामले में पुलिस के ‘एनकाउंटर स्पेशलिस्ट’ सचिन वझे खुद जेल चले गए.

सौ करोड़ वसूली के मामले ने ऐसा तूल पकड़ा कि महाराष्ट्र के तत्कालीन गृह मंत्री अनिल देशमुख को इस्तीफा देना पड़ा और अब वे खुद हिरासत में हैं. विवादों के बाद मुंबई के तत्कालीन पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह को पद से हटना पड़ा और वे लापता बताये जाते हैं.

अगस्त में हरियाणा के करनाल जिले में प्रदर्शन कर रहे किसानों पर हुए लाठीचार्ज में कई किसान गंभीर रूप से घायल हो गये थे. उस समय करनाल के एसडीएम आयुष सिन्हा का एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें उन्हें पुलिसकर्मियों को किसानों का सिर फोड़ने का आदेश देते हुए स्पष्ट सुना जा सकता था. छत्तीसगढ़ के सूरजपुर में भी कोरोना लॉकडाउन के नाम पर एक जिलाधिकारी रणवीर शर्मा ने एक नवयुवक के साथ बेजा हरकत की थी. नवयुवक ने उन्हें पर्ची दिखाते हुए बताया था कि वह दवा लेने मेडिकल स्टोर जा रहा था.

फिर भी उन्होंने नवयुवक को थप्पड़ जड़ दिया और कहा कि वह उनका वीडियो बना रहा था. इतना ही नहीं, युवक का मोबाइल पटकने और सुरक्षाकर्मियों से पिटवाने के बाद उन्होंने युवक के खिलाफ मामला दर्ज करने का आदेश भी दिया था. इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया. इसका संज्ञान लेते हुए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने जिलाधिकारी को तत्काल प्रभाव से हटाने के निर्देश दिये थे और कहा था कि किसी भी अधिकारी का शासकीय जीवन में ऐसा आचरण स्वीकार्य नहीं है. कोरोना काल के दौरान त्रिपुरा से भी एक ऐसा वीडियो आया था, जिसमें एक डीएम एक शादी समारोह में लोगों के साथ दुर्व्यवहार करते नजर आये थे. बाद में सरकार ने उन्हें निलंबित कर दिया था.

हाल में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने देश में नौकरशाही, विशेषकर पुलिस अधिकारियों के व्यवहार पर कड़ी आपत्ति जतायी थी. उन्होंने कहा था कि वे एक समय नौकरशाहों, विशेष रूप से पुलिस अधिकारियों के खिलाफ शिकायतों की जांच के लिए एक स्थायी समिति बनाने के बारे में भी विचार कर रहे थे. सीजेआइ रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हेमा कोहली की पीठ छत्तीसगढ़ के निलंबित अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक गुरजिंदर पाल सिंह की एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उन्होंने अपने खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों में सुरक्षा की मांग की थी.

मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि जब कोई राजनीतिक दल सत्ता में होता है, तो पुलिस अधिकारी एक विशेष दल के साथ होते हैं. फिर जब कोई दूसरी पार्टी सत्ता में आती है, तो सरकार उन अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू करती है. यह एक नया चलन है, जिसे रोकने की जरूरत है.

कोरोना काल में पुलिसकर्मियों का भारी योगदान रहा है. लॉकडाउन के दौरान झारखंड और अनेक राज्यों के थानों में रोजाना भोजन की व्यवस्था थी. तब पुलिसकर्मी पूरी शिद्दत से अपनी ड्यूटी में लगे हुए थे, जबकि लोगों ने घरों से निकलना बंद कर दिया था. इस दौरान जब लोग परेशानी में फंसे, तब उन्हें पुलिस प्रशासन से ही सहारा मिला था. लेकिन बावजूद इसके आम जन में पुलिस को लेकर अविश्वास का भाव है. पुलिस की छवि के साथ प्रताड़ना, अमानवीय व्यवहार और उगाही जैसे शब्द जुड़ गये हैं.

जिस आम आदमी को पुलिस के सबसे ज्यादा सहारे की जरूरत होती है, वह पुलिस से दूर भागने की हर संभव कोशिश करता है. यह बात कोई छुपी हुई नहीं है कि भारत में पुलिस बल के कामकाज में भारी राजनीतिक हस्तक्षेप होता है. जब भी किसी पहुंच वाले शख्स को पुलिस पकड़ती है, तो उसे छुड़वाने के लिए स्थानीय रसूखदार नेताओं के फोन आ जाते हैं. जब अपराधी खुद राजनीति में आ जाते हैं, तो मुश्किलें और बढ़ जाती हैं. सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बावजूद बाहुबलियों को लोकतांत्रिक प्रक्रिया से बाहर रखने में सफलता हासिल नहीं हुई है.

कुछ समय पहले पूर्व केंद्रीय मंत्री और मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने नौकरशाही को लेकर एक विवादित बयान दिया था. बाद में उनका स्पष्टीकरण भी सामने आया. उमा भारती का कहना था कि जब तक सरकार होती है, तब तक अधिकारी नौकर की तरह आगे पीछे घूमते हैं. उन्होंने एक किस्सा सुनाते हुए कहा कि 2000 में वे केंद्र में वाजपेयी सरकार में पर्यटन मंत्री थी, तब बिहार में तत्कालीन मुख्यमंत्री राबड़ी देवी और लालू यादव के साथ उनका पटना से बोधगया हेलीकॉप्टर से जाने का कार्यक्रम बना.

हेलिकॉप्टर में बिहार के एक वरिष्ठ आइएएस अधिकारी भी थे. लालू यादव ने अपने पीकदान में थूका और उस अधिकारी के हाथ में थमा कर उसको खिड़की के बगल में नीचे रखने को कहा. उस अधिकारी ने ऐसा ही किया. उमा भारती ने कहा कि 2005-06 में जब उन्हें बिहार का प्रभारी बनाया गया, तो उन्होंने बिहार के पिछड़ेपन के साथ पीकदान को भी मुद्दा बनाया. उन्होंने बिहार के अधिकारियों से अपील की कि आज आप इनका पीकदान उठाते हो, कल हमारा भी उठाना पड़ेगा. अपनी गरिमा को ध्यान में रखो और पीकदान की जगह फाइल और कलमदान पकड़ो.

उमा भारती ने ब्यूरोक्रेसी से अपील की कि आपको अपने पूर्वजों, माता-पिता, ईश्वर की कृपा और अपनी योग्यता से यह स्थान मिला है. आप शासन के अधिकारी व कर्मचारी हैं, किंतु किसी राजनीतिक दल के घरेलू नौकर नहीं हैं. देश के विकास और स्वस्थ लोकतंत्र के लिए गरीब आदमी तक पहुंचने के लिए आप इस जगह पर बैठे हैं. भारतीय लोकतंत्र में ब्यूरोक्रेसी का सम्मान, उपयोगिता और योगदान बना रहे, इस पर स्वयं ब्यूरोक्रेसी को सजग रहना होगा.

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