मीडिया को बिकाऊ कह कर अरविंद केजरीवाल भले पलट गये हैं, लेकिन उनके बयान ने उनकी बिगड़ती मानसिक अवस्था को उजागर कर दिया है. आज राजनीति में नेतृत्व की स्थिति ठीक वैसी ही है जैसी मरुस्थल में पानी की होती है.
दूर से हर जगह पानी का ही आभास होता है, लेकिन वास्तव में वहां सिर्फ आभासी प्रतिबिंब होता है. संक्रमण के दौर से गुजर रहे भारतीय लोकतंत्र में सही नेताओं व नेतृत्वकर्ताओं की खोज में जनता की कुछ ऐसी ही अवस्था है. केजरीवाल की ओर टकटकी लगा कर बैठे आम आदमी को एक बार फिर गुमराह होना पड़ा है. भले ही केजरीवाल एक अच्छे और ईमानदार अफसर रहे हों, लेकिन जनता को स्वच्छ व मजबूत नेतृत्व देने में उनकी अक्षमता तथा विचारों का खोखलापन उनके बयानों व कृत्यों से स्पष्ट दिखायी पड़ते हैं.
अंशुमान भारती, कोलकाता