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जल संरक्षण पर उदासीनता

डॉ सय्यद मुबीन जेहरा शिक्षाविद् चिलचिलाती धूप के दिनों में पानी और प्यास का किस्सा छेड़ने का मकसद यह है कि आप को पानी की अहमियत का अहसास हो सके. दुख की बात है कि हमारे समाज को जितना ही जल संरक्षण को लेकर जागरूक बनाने की कोशिशें की जाती हैं, समाज उतना ही उपेक्षा […]

डॉ सय्यद मुबीन जेहरा
शिक्षाविद्
चिलचिलाती धूप के दिनों में पानी और प्यास का किस्सा छेड़ने का मकसद यह है कि आप को पानी की अहमियत का अहसास हो सके. दुख की बात है कि हमारे समाज को जितना ही जल संरक्षण को लेकर जागरूक बनाने की कोशिशें की जाती हैं, समाज उतना ही उपेक्षा की चादर तान कर सोने में विश्वास रखता है.
हम जानते हैं कि पानी हमारे लिए कितना जरूरी है, लेकिन इसके बावजूद हम पानी बरबाद कर रहे हैं. हो सकता है कि बड़े बाजार जो संसाधनों का संकट खड़ा करके उसे बेचते हैं, वे पानी की बरबादी में इसलिए आगे हों, ताकि जीवन के लिए जरूरी इस संसाधन से अपनी तिजोरियां भर सकें.
हम लोग अपना शासक चुनने की अक्ल रखते हैं. फिर यह जानते हुए भी कि ‘जल है तो कल है’, हम पानी की बरबादी न सिर्फ होने देते हैं, बल्कि बरबादी में भरपूर भूमिका भी निभाते हैं. पानी जीवन के लिए महत्वपूर्ण है, किंतु इसके बावजूद हम इतने लापरवाह कैसे हो सकते हैं कि इसके संरक्षण की चिंता ही न करें. पीने के पानी की कमी की समस्या दुनिया के कुछ बड़े मुद्दों में से एक है. घरों और औद्योगिक इकाइयों से निकलनेवाली गंदगी और तेजाब भूमिगत जल स्रोतों को बरबाद कर देते हैं. लेकिन, केवल अपने लाभ की चिंता में डूबे लोग इस ओर से आंख मूंदे हुए हैं. क्या हमारा समाज इतनी सी बात नहीं जानता कि पानी क्यों आवश्यक है.
यह बात तो जानवर और पक्षी तक भी जानते हैं कि जीवन के लिए पानी क्यों जरूरी है और वे जंगलों में रहते हुए पेयजल के स्रोतों के आसपास गंदगी करने से बचते हैं. हम इंसान ‘जल है तो कल है’ जैसे नारों के साथ कोई आंदोलन क्यों नहीं चला सकते? बिना सिर-पैर की बातों पर हम एक-दूसरे की जान ले लेते हैं, किंतु जिससे जान जुड़ी हुई है, उसको लेकर हम चुप हैं. कितनी बड़ी विडंबना है कि हम सब कुछ जानते-समझते हुए भी खुद ही अपनी कब्र खोदने में लगे हुए हैं.
पेय जल हो या सांसों के लिए जरूरी हवा, इन सब को दूषित करने के लिए कोई अन्य ग्रह से तो नहीं आता है, बल्कि हम ही इसके जिम्मेवार हैं. आज 1.8 अरब लोग पीने के पानी के लिए मल से दूषित स्रोतों का उपयोग करने को मजबूर हैं. इसलिए वे हैजा, पेचिश, टाइफाॅइड और पोलियो जैसी बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं. पिछले दिनों कहीं पढ़ा था कि देश में लगभग 60 प्रतिशत लोगों ने दूषित पानी को लेकर अपनी चिंता व्यक्त की थी.
डर है कि अगर इसी तरह उद्योगों से निकलनेवाले प्रदूषण पर ध्यान नहीं दिया गया, तो अगले एक दशक में साफ पानी की समस्या और खतरनाक हो जायेगी. एक रिपोर्ट के अनुसार, पानी की उपलब्धता से जूझ रहे देशों में हम तीसरे नंबर पर हैं. पहले नंबर पर मेक्सिको और दूसरे पर कोलंबिया है.
हमने जितनी प्रगति की है, समस्याएं भी उतनी ही पैदा की हैं. तेज विकास की अंधी दौड़ ने मानव जीवन के लिए बेहद जोखिम पैदा कर दिये हैं. कुछ लोग संसाधनों को केवल अपने तक ही सीमित रखने की कोशिश में कई अन्य समस्याओं को बढ़ा रहे हैं. अब पीने का पानी बड़ा मुद्दा बनता जा रहा है. कहा जाता है कि अब विश्व युद्ध पानी के लिए ही होगा.
वैसे भी हम अपने कई राज्यों के बीच पानी के बंटवारे को लेकर खींच-तान देख ही रहे हैं. कई एेसे क्षेत्र हैं, जहां पहले पीने का पानी आसानी से उपलब्ध था, लेकिन अब वहां भूमिगत जल स्तर नीचे होता जा रहा है. कई शहरों में पानी के टैंकर माफिया भी सक्रिय हैं.
लेकिन, ये बहुत छोटे खिलाड़ी हैं. असल खिलाड़ी तो वे हैं, जो कोल्ड ड्रिंक के नाम पर पानी इतना बरबाद करते हैं कि अदालत को बीच में आना पड़ता है. पानी को लेकर यह उदासीनता और स्वार्थ आज हमारी दुनिया की समस्याओं की जड़ में है.
एक वाक्य है- ‘जिस देश में गंगा बहती है उस देश में पानी बिकता है’. पानी की बिक्री पर यदि हम रोक लगा दें, तो विश्वास मानिये कि जल संरक्षण बहुत आसान हो सकता है. भवन-निर्माण से जुड़ी गतिविधियों के कारण भी कई क्षेत्रों में जलाशयों को पाट कर उन पर ऊंची इमारतें खड़ी कर दी गयी हैं. बरसाती पानी के संरक्षण को लेकर भी हम जागरूक नहीं हैं. विभिन्न नदियों को जोड़ने की प्रक्रिया भी अभी संतोषजनक रूप नहीं ले पायी है. जब तक हमारा पूरा समाज जागरूक नहीं होगा, तब तक पानी की समस्या का समाधान संभव नहीं हो पायेगा. मेरे या आप के अकेले जाग जाने भर से समस्या का हल नहीं निकलेगा.
जरूरत इस बात की है कि पूरा समाज जागे और जल संरक्षण को लेकर गहराई से सोच-विचार करे. पानी हम सबकी जरूरत है. इस पृथ्वी के अस्तित्व के लिए भी और हमारे अस्तित्व के लिए भी. लेकिन, क्या हम इसके लिए तैयार हैं? जब पूरी दुनिया की करीब 12 प्रतिशत आबादी पानी की कमी की समस्या की शिकार हो और पानी की समस्या से होनेवाली बीमारियों से मृत्यु दर हर साल बढ़ रही हो, तब भी क्या हम नहीं जागेंगे? क्या दुनिया फिर किसी ‘कर्बला’ की तलाश में है?

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