किसी भी देश या समाज की आर्थिक उन्नति में वहां उपलब्ध ढांचागत सुविधाओं की अहम भूमिका होती है. बिहार या झारखंड के परिप्रेक्ष्य में भी यही सही है. पर, बिहार लंबे समय से इस मामले में उपेक्षित रहा है. तमाम साधन-संसाधन के बावजूद. इसके कई कारण हैं. सामाजिक व राजनीतिक कारण प्रमुख हो सकते हैं. अब समय आ गया है कि लोग अतीत की कमियों-गलतियों का रोना न रोकर आगे बढ़ें.
सूबे के बेहतर भविष्य के लिए नयी संभावनाएं तलाशें. इसके लिए बिहारवासी अपने ही बीच के उन युवा उद्यमियों को रोल मॉडल मान सकते हैं, जो आगे की राह दिखा रहे हैं. तमाम मुश्किलों व प्रतिकूलताओं के बीच भविष्य गढ़ने की प्रतिबद्धता के साथ आगे बढ़ने का प्रयास कर रहे हैं. सफल भी हैं. बिहार इंटरप्रेन्योरशिप समिट 2014 के मौके पर एक से एक सुझाव आये हैं. सूबे में कल-कारखानों की कैसी तसवीर बन सकती है, इस पर उद्योग जगत के विशेषज्ञों ने जो राय रखी है, उसके आलोक में सरकार, समाज व उद्यमियों को आगे बढ़ना होगा.
बेशक, इस मामले में आगे बढ़ने के क्रम में बिहार की भौगोलिक तथा सामाजिक स्थिति का ध्यान रखना होगा. शुरुआती दौर में तो बिहार की स्थानीय जरूरतों का ध्यान रखते हुए अगर उद्योगों का विकास किया जाये, तो भी गाड़ी काफी दूर निकल जायेगी. दृश्य काफी बदल जायेगा. बिहार के दृष्टिकोण से कृषि के अतिरिक्त शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यटन, यातायात और ऊर्जा आदि क्षेत्रों में तो असीम संभावनाएं हैं. अच्छी बात है कि पिछले कुछ वर्षो में सूबे का सरकारी तंत्र जिम्मेवार बना है. कानून-व्यवस्था की स्थिति बदली है. रोड नेटवर्क सुधरा है. ये तत्व उद्योगों के विकास के लिए अहम हैं.
सबसे महत्वपूर्ण यह है कि सूबे के युवा अब भविष्य को लेकर काफी गंभीर हैं. उद्योग-धंधे में भी किसी से पीछे नहीं रहना चाहते. कोई कचरे से बिजली बनाने की बात कर रहा है, तो कोई शिक्षा के क्षेत्र में परिवर्तन का अग्रदूत बनना चाहता है. इन युवा उद्यमियों में कोई सूबे के मानव संसाधन को तराश रहा है, तो कोई आइटी के क्षेत्र में नये प्रतिमान गढ़ रहा है. इस तरह युवाओं में उद्योग के क्षेत्र में आगे बढ़ने का जो रुझान दिख रहा है, उससे निश्चित तौर पर बिहार के सुंदर व सुरक्षित भविष्य का आश्वासन तो मिल ही रहा है.