जब से दिल्ली में राष्ट्रवादी सोच की सरकार आयी, उसने इसके अधिकारों को कतरना शुरू कर दिया. यहां के माहौल को बिगाड़ने की कोशिश की गयी. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने का भरपूर प्रयास किया गया. अभी हाल में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने घोषणा कर 2017-18 सत्र के लिए एमफिल व पीएचडी में दाखिला लेने वालों की संख्या में 83% की कटौती किया है.
1408 सीट के स्थान पर केवल 242 विद्यार्थियों का दाखिला लिया जा रहा है. सरकार का तर्क है कि चूंकि अध्यापकों का 300 पद रिक्त है, इसलिए ऐसा किया जा रहा है. अगर ऐसा है, तो यह किसकी जिम्मेदारी है? पिछले तीन सालों में यह काम क्यों नहीं किया गया ? जेएनयू के गौरव को गिराने की साजिश तो नहीं!
जंग बहादुर सिंह, गोलपहाड़ी