देश की अर्थव्यवस्था की बढ़वार की संभावनाओं को इंगित करते हुए अक्सर कहा जाता है कि हुनरमंद मानव संसाधन वैश्वीकरण के दौर में भारत की बहुत बड़ी ताकत है. इस समझ से भारतीय आइटी पेशेवरों के बारे में कहा जाता है कि क्षमता और गुणवत्ता के मामले में बेहतर होने के कारण विश्वभर में इनकी मांग है और मांग को पूरा करने के लिहाज से भारतीय आइटी कंपनियां और पेशेवर जगतजीत साबित हो सकते हैं.
लेकिन, हाल-फिलहाल के घटनाक्रम इस आशावाद पर सवाल खड़े करते प्रतीत होते हैं. खबरों के मुताबिक वैश्वीकरण की कामयाबी के एक चमचमाते प्रतीक सिंगापुर ने कुछ नयी शर्तें लगायी हैं, जिनकी वजह से सिंगापुर में कारोबार कर रही आइटी क्षेत्र की शीर्ष की कंपनियों के लिए हुनरमंद भारतीय पेशवरों को नौकरी पर रखना मुश्किल हो जायेगा. वर्ष 2016 के जनवरी महीने से सिंगापुर में नौकरी के तलबगार दूसरे देशों के हुनरमंद लोगों के लिए वीजा जारी नहीं किया जा रहा है.
कंपनियों को निर्देश मिले हैं कि नौकरी में वे स्थानीय लोगों को तरजीह दें. विशेषज्ञों के मुताबिक, सिंगापुर सरकार के ये निर्देश आर्थिक समझौतों के विपरीत हैं. भारतीय आइटी पेशेवरों के लिए अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों ने भी वीजा जारी करने के नियम सख्त किये हैं. अमेरिका ने एच-1बी वीजा में आइटी पेशेवरों की योग्यता का मानक पहले की तुलना में ज्यादा ऊंचा कर दिया है.
अब किसी दूसरे देश के पेशेवर के लिए यह वीजा हासिल करने के लिए अपने हुनर में दक्ष होना ही काफी नहीं, बल्कि नौकरी देनेवाली कंपनी को यह भी बताना होगा कि काम अतिविशिष्ट योग्यता की मांग करता है और इसी कारण उक्त व्यक्ति को अवसर दिया जा रहा है. मतलब साफ है कि अतिविशिष्ट योग्यता की मांग करनेवाली नौकरियों के लिए भले दूसरे देश के लोगों को कंपनियां नौकरी पर रखें, लेकिन मंझोले या सामान्य दर्जे के काम के लिए उन्हें नौकरी पर अमेरिकी नागरिक ही रखने होंगे. अमेरिकी विधि विभाग ने देश के कानून का हवाला देते हुए कंपनियों से कहा है कि नौकरी के अवसर, नियुक्ति और पद से हटाने के मामले में किसी अमेरिकी कामगार के साथ राष्ट्रीयता या नागरिकता के आधार पर भेदभाव नहीं होना चाहिए.
ब्रिटेन में भी दूसरे देश के पेशेवर लोगों और विद्यार्थियों के लिए जारी किये जानेवाले वीजा की संख्या कम करने की बहस जारी है. वीजा संबंधी विकसित मुल्कों की यह सख्ती सेवा और सामान की अबाधित आवाजाही के वैश्विक नियमों की मंशा के विपरीत है. भारत को राजनयिक प्रयास तेज करते हुए अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आवाज उठानी होगी, ताकि देश के आर्थिक हितों को चोट न पहुंचे.