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दवा दुकान और फार्मासिस्ट
पिछले सप्ताह मोदी सरकार ने ब्रिटिश काल से चले आ रहे उन कानूनों को समाप्त कर दिया, जो अनावश्यक या अप्रासंगिक हो चुके थे. किंतु अभी भी एक ऐसा कानून है, जो बिलकुल अनावश्यक है- दवा दुकान के लिए फार्मासिस्ट की वैधता. जब यह कानून बना था, तब चिकित्सा विज्ञान न इतना विकसित हुआ था, […]
पिछले सप्ताह मोदी सरकार ने ब्रिटिश काल से चले आ रहे उन कानूनों को समाप्त कर दिया, जो अनावश्यक या अप्रासंगिक हो चुके थे. किंतु अभी भी एक ऐसा कानून है, जो बिलकुल अनावश्यक है- दवा दुकान के लिए फार्मासिस्ट की वैधता. जब यह कानून बना था, तब चिकित्सा विज्ञान न इतना विकसित हुआ था, न ही पेटेंट दवाएं थीं.
फार्मासिस्ट द्वारा बनाये गये मिक्सचर और मलहम ही दवा दुकानों में बेचे जाते थे. किंतु अब, जब पेटेंट दवाएं हैं और दवा दुकानदार डाक्टरों के पुर्जे पर दवा बेचते हैं तो दवा दुकानों के लिए फार्मासिस्ट जरूरी नहीं रह गये हैं. फिर भी इस कानून को ढोया जा रहा है. अगर किसी को दवा दुकान खोलना है, तो किसी फार्मासिस्ट को अपने दुकान से संबद्ध करना होगा. फार्मासिस्ट इसके लिए कम-से कम 50,000 रुपये सालाना वसूलते हैं. आज के समय में इनका वहां बैठना न तो आवश्यक है, न ही तर्कसंगत. इसे अविलंब समाप्त करने के लिए पुनर्विचार करना चाहिए.
डॉ विनय कुमार सिन्हा,अरगोड़ा, रांची
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