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एनजीओ पर जरूरी फैसला

देश में सरकारी सहायता हासिल करनेवाले गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) की संख्या करीब 33 लाख है, पर केवल तीन लाख एनजीओ ही आय-व्यय का लेखा संबंधित विभागों को सौंपते हैं. इस विसंगति को देखते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार से अनुदानों के खर्च का हिसाब समय पर न देनेवाले संगठनों के खाते का हिसाब करने का […]

देश में सरकारी सहायता हासिल करनेवाले गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) की संख्या करीब 33 लाख है, पर केवल तीन लाख एनजीओ ही आय-व्यय का लेखा संबंधित विभागों को सौंपते हैं.
इस विसंगति को देखते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार से अनुदानों के खर्च का हिसाब समय पर न देनेवाले संगठनों के खाते का हिसाब करने का निर्देश दिया है. सरकारी कोष से मिलनेवाली रकम जनता का ही धन है और इसके पाई-पाई का हिसाब-किताब साफ होना चाहिए. कोई संस्था स्वयंभू तौर पर समाज सेवा में जुटी है, तो इसका मतलब यह नहीं कि उद्देश्य की पवित्रता की ओट में वित्तीय लेन-देन की वैधानिक जवाबदेहियों से वह अपने को ऊपर माने. बहुधा नागरिक संगठन की भूमिका का निर्वाह कर रहे एनजीओ ही पारदर्शिता की मांग को मुखर करने में सबसे आगे रहते हैं.
ऐसे में किसी एनजीओ का सार्वजनिक निधि के जमा-खर्च का हिसाब बाकी किसी भी संस्था से कहीं ज्यादा साफ-सुथरा होना चाहिए, अन्यथा उनके मकसद पर सवाल उठेगा और ‘पर उपदेश कुशल बहुतेरे’ का आरोप मढ़ा जायेगा. बहरहाल, यह मानना भी ठीक नहीं होगा कि ज्यादातर एनजीओ नेताओं, नौकरशाहों, प्रसिद्ध या ताकतवर लोगों की जेबी संस्था के रूप में पसरे हैं और ऐसे संगठनों का इस्तेमाल निजी हित को साधने या बेईमानी से कमाये गये धन को खपाने में हो रहा है. अदालत ने स्पष्ट किया है कि जमा-खर्च का हिसाब सौंपने को लेकर बने नियम की पर्याप्त जानकारी गैर-सरकारी संगठनों को नहीं है और सरकार को चाहिए कि उनके लिए वित्तीय पारदर्शिता से संबंधित दिशा-निर्देश जारी करे.
एनजीओ को दिये जानेवाले धन के हिसाब को लेकर किसी नियमन के न होने पर इस फैसले में सरकार की खिंचाई भी की गयी है. इस आदेश के बाद एक बड़ी तब्दीली यह आयी है कि अब वित्तीय अनियमितता की शिकायत के आधार पर अब किसी एनजीओ पर दीवानी या फौजदारी मुकदमा चलाया जा सकता है. अभी तक सरकार ऐसे मामलों में एनजीओ को काली सूची में रखती आयी है.
पिछली और मौजूदा सरकार के रवैयों से यह भी संकेत मिलता है कि सरकारें एनजीओ की भूमिका पर सहज नहीं हैं. कभी इन्हें विदेश के इशारों पर काम करनेवाला बताया जाता है, तो कभी देश के आर्थिक विकास को नुकसान पहुंचानेवाला. लेकिन, यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि जीवंत लोकतंत्र के लिए विचारक नागरिक संगठनों को अत्यंत जरूरी बताते हैं. जितना जरूरी वित्तीय पारदर्शिता है उतना ही जरूरी है गैर सरकारी संगठनों द्वारा उठाये गये आवाज का नहीं दबना.

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