आंदोलनों और विद्रोहों की नींव पर झारखंड राज्य की परिकल्पना की गयी. अलग राज्य की स्थापना के लिए कई ऐतिहासिक संघर्ष हुए. 13 वर्षो पूर्व उन संघर्षो के सुफलस्वरूप अलग झारखंड राज्य बना. लगा कि मानो जनकल्याण और सामाजिक विकास की उम्मीदों को पंख लग गये. लेकिन विगत कुछ वर्षो की राजनीतिक अस्थिरता ने उन उम्मीदों के परों को जैसे काट सा दिया है. विडंबना यह है कि जिन उद्देश्यों को फलीभूत करने हेतु इस राज्य की नींव रखी गयी, आज वे उद्देश्य कहीं धूमिल से हो गये हैं. गठनोपरांत सूबे ने कई सरकारें देखीं, लेकिन विकास के परिप्रेक्ष्य में कमोबेश समान स्थिति ही दृष्टिगत हुई. खनिज संपदा से परिपूर्ण इस राज्य ने ऐसे विकास की संकल्पना नहीं की थी. अतुल्य झारखंड की अवधारणा माननेवाला हृदय अब कराह कर कहता है- हे झारखंड! यह दुर्भाग्य तुम्हारा.
महेंद्र कुमार महतो, नावागढ़