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कालेधन पर मोदी का बम

अनुपम त्रिवेदी राजनीतिक-आर्थिक विश्लेषक कालेधन पर किये गये वादों को लेकर किरकिरी झेल रही मोदी सरकार ने 8-9 नवंबर की रात ऐसी ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ की, कि पूरा देश हतप्रभ रह गया. एक झटके में सरकार ने कालेधन, भ्रष्टाचार, जाली नोट और आतंकवाद को जबरदस्त चोट पहुंचायी. सरकार के इस कदम की हर ओर तारीफ हो […]

अनुपम त्रिवेदी
राजनीतिक-आर्थिक विश्लेषक
कालेधन पर किये गये वादों को लेकर किरकिरी झेल रही मोदी सरकार ने 8-9 नवंबर की रात ऐसी ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ की, कि पूरा देश हतप्रभ रह गया. एक झटके में सरकार ने कालेधन, भ्रष्टाचार, जाली नोट और आतंकवाद को जबरदस्त चोट पहुंचायी. सरकार के इस कदम की हर ओर तारीफ हो रही है. हालांकि विरोध करनेवाले भी कम नहीं है. पर हतप्रभ सभी हैं.
सोच रहे हैं कि सरकार ने यह निर्णय अचानक क्यों लिया?
दरअसल, यह कोई जल्दबाजी में लिया निर्णय नहीं है. इस पर विगत 10 महीने से भी ज्यादा समय से तैयारी चल रही थी. विदेशों से कालाधन लाने का चुनावी वादा पूरा कर पाने में विफल रही मोदी सरकार यह जानती थी कि असली कालाधन तो देश में ही है. इसलिए एक व्यवस्थित तरीके से पहले कालेधन पर एसआइटी का गठन किया गया, फिर लोगों को अघोषित आय जाहिर करने का मौका दिया गया. जब एमनेस्टी स्कीम जारी थी, प्रधानमंत्री ने बार-बार अपने भाषणों में चेताया कि इस स्कीम के बाद सरकार भ्रष्टाचारियों को छोड़ेगी नहीं. लेकिन, शायद लोगों ने संकेत नहीं समझा. अब जबकि प्रधानमंत्री ने 8 तारीख की देर शाम यह बम गिराया, तो कालेधन के जमा-खोरों को संभलने का मौका ही नहीं मिला.
आज हमारे देश में कालेधन की समस्या एक ऐसे नासूर की तरह है, जिसका सिर्फ ऑपरेशन ही हो सकता है, इलाज नहीं. एक अध्ययन के अनुसार देश में करीब 30 लाख करोड़ रुपये का कालाधन है, जिसमें से 17 लाख करोड़ कैश के रूप में है और बाकी सोने और जमीन-जायदाद में लगा हुआ है. देश में रोज 80 प्रतिशत ट्रांजैक्शन कैश में होता है, जिसमें 500 और 1000 के लगभग 84 प्रतिशत नोट हैं. जाली नोटों में अधि‍कतर ये बड़े नोट ही हैं. मोदी सरकार ने एक झटके में ऑपरेशन कर कालेधन और जाली नोटों से लबरेज यह 84 प्रतिशत मुद्रा अर्थव्यवस्था से बाहर कर दी है.
अर्थशास्त्रियों का मानना है कि प्रारंभिक परेशानी के बाद देश को इस परिवर्तन से बहुत लाभ होगा. कालेधन पर अंकुश लगने से कैश ट्रांजेक्शन से होनेवाले भ्रष्टाचार पर रोक लगेगी. ब्लैकमनी व्हाइट हो जायेगी या फिर बेकार. प्रॉपर्टी, जमीन, आभूषण और घर खरीदने में कालेधन के कारण आयी कृत्रिम तेजी खत्म होगी और दाम घटेंगे. इससे आम आदमी के लिए घर लेना संभव हो पायेगा. मेहनत से कमाई रकम को फिर से वह सम्मान मिलेगा, जिसकी कि वह हकदार है. कालेधन की कमी से रिश्वतखोरी, अपहरण-उद्योग और आतंकवाद की फंडिंग पर भी रोक लगेगी. जाली नोटों का लेनदेन भी बंद होगा.
इसके अतिरिक्त सरकार को एक लाख करोड़ रुपये का अतिरिक्त टैक्स मिलने की संभावना है. कालेधन की समाप्ति और साथ ही जीएसटी लागू होने से, देश की सकल आय में भी वृद्धि की पूरी संभावना है. जरूरत की सभी चीजों की कीमत घटेगी और नौकरीपेशा लोगों के हाथ में ज्यादा पैसा होगा. लोगों की क्रय-शक्ति बढ़ेगी, जिससे बाजार में मांग और औद्योगिक उत्पादन बढ़ेगा और रोजगार में वृद्धि होगी. साथ ही बैंकों से आसान और सस्ता लोन मिलेगा तथा ब्याज दरों में कमी आयेगी. देश की अर्थव्यवस्था के लिए यह किसी संजीवनी से कम नहीं होगा.
लेकिन, जहां यह सब सुनने में अच्छा लग रहा है, वहीं जमीनी हकीकत कुछ और भी बयां कर रही है. अचानक और तुरंत प्रभाव से किये गये मोदी सरकार के इस निर्णय से पूरे देश में पिछले 36 घंटे से हाहाकार मचा हुआ है.
छोटे व्यापारियों, दिहाड़ी मजदूर, छात्रों और निम्न-मध्यम वर्ग का बहुत बड़ा तबका ऐसा है जो अचानक हुए इस परिवर्तन से खासा नाराज है. आम हो या खास, हर शख्स इस निर्णय से प्रभावित हुआ है. जो यात्रा पर निकले हैं, उनकी परेशानी तो अकल्पनीय है. रेलवे और बस स्टेशनों पर परेशान लोगों की भीड़ नजर आ रही है. ऑटो वाले बड़े नोट लेने से मना कर रहे हैं. ढाबे और चायवाले इन बड़े नोटों को वापस लौटा रहे हैं. सब्जी और अनाज मंडियों में कोहराम है, जहां सारा कारोबार नकद में होता है.
हालांकि, परेशानी के बावजूद लोग सरकार के निर्णय से सहमति जता रहे हैं. हां, बहुत से लोग निर्णय की टाइमिंग पर अपनी नाराजगी जाहिर कर रहे हैं. अभी-अभी दीवाली बीती है, लोगों के पास नकदी है. देश के बड़े हिस्से में धान की फसल की खरीद-बिक्री हो रही है, जो लगभग पूरी तरह से नकद में होती है. शादी का सीजन शुरू हो गया है. जो लोग बड़े समय से शादी की तैयारी के लिए पैसा जमा कर रहे थे, अचानक उनका रुपया अनुपयोगी हो गया है. बैंक में जमा करेंगे तो एक हफ्ते में 20 हजार से ज्यादा वापस नहीं निकाल पायेंगे. अब कैसे करेंगे बेटी की शादी?
मितव्ययिता और बचत की परंपरावाले इस देश में हर घर में गृहिणियां रोज के खर्चे से बचा कर परिवार की सुरक्षा के लिए पैसे इकट्ठे करती हैं. एक ही झटके में देश के लाखों घरों के पिग्गीबैंक टूट कर जमीन पर आ गये हैं. जिनके बैंक-एकाउंट हैं, जायज पैसा है और कोई परिचय-पत्र है, वो तो आसानी से बैंक से नयी मुद्रा बदल सकेंगे, पर समस्या उन गरीब महिलाओं, दिहाड़ी मजदूरों और रोज पेट काट कर पैसे बचानेवाले मजदूरों की है, जिनके पास न बैंक एकाउंट है और न कोई पहचान पत्र. अब जीवन भर की जमा पूंजी को कैसे बचाएं और कैसे ठौर लगाएं, यह उनकी समझ से परे है.
प्रधानमंत्री ने 8 तारीख को घोषणा करते हुए आशा व्यक्त की थी कि कालाधन, भ्रष्टाचार और आतंक से लड़ने के लिए लोग कुछ दिनों की कठिनाई सहन कर लेंगे. उन्होंने कहा कि अगर भारत की जनता को भ्रष्टाचार और थोड़ी असुविधा में से एक को चुनना होगा, तो बेहिचक वे असुविधा को चुन लेगी.
बिलकुल सच है प्रधानमंत्री जी. देश आपके साथ है. बस एक कार्य और कर दीजिए और वह है राजनीतिक दलों की फंडिंग को पारदर्शी बनाने का. असली भ्रष्टाचार की गंगोत्री तो वही है. अगर इस पर अंकुश नहीं लगा, तो कालाधन फिर से पैदा होने लगेगा और हम वापस वहीं आ जायेंगे, जहां पहले थे. आशा है आप इसे भी संज्ञान में लेंगे.

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