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खेल, परिवार और भ्रष्टाचार का मेल!

देश की लोकतांत्रिक राजनीति में व्याप्त वंशवाद की सार्थक आलोचना अकसर होती है, पर अर्थव्यवस्था के भीतर पैठा वंशवाद नजरों में आने से रह जाता है. विदेशी बैंकों में जमा लाखों करोड़ का कालाधन जैसे भारतीय अर्थव्यवस्था का एक कड़वा सच है, उसी तरह एक सच यह भी है निजी क्षेत्र के प्रमुख उद्योग और […]

देश की लोकतांत्रिक राजनीति में व्याप्त वंशवाद की सार्थक आलोचना अकसर होती है, पर अर्थव्यवस्था के भीतर पैठा वंशवाद नजरों में आने से रह जाता है. विदेशी बैंकों में जमा लाखों करोड़ का कालाधन जैसे भारतीय अर्थव्यवस्था का एक कड़वा सच है, उसी तरह एक सच यह भी है निजी क्षेत्र के प्रमुख उद्योग और सिनेमा-टीवी सरीखे व्यवसाय के शीर्ष पर थोड़े से परिवारों के लोग ही पदस्थ हैं.

यह प्रकट रूप से किसी नियम के उल्लंघन का परिणाम भले न हो, पर यह संकेत तो मिलता ही है कि देश की ज्यादातर धनलक्ष्मी और राजलक्ष्मी चंद परिवारों की देहरियों के भीतर कैद है. यह एक प्रमाण है कि भारतीय लोकतांत्रिक राजव्यवस्था समतामूलक नहीं है. यह हमारी राजव्यवस्था में लगे उस गहरे रोग का परिचायक है, जिसे हाल की राजनीतिक गोलबंदियों के बीच हमने भ्रष्टाचार के रूप में एक ढीला-ढाला सा नाम दे दिया है. भारतीय अर्थव्यवस्था पर हावी वंश और परिवार के दबदबे का प्रमाण खेलों की दुनिया में भी नजर आता है.

दुनिया के सर्वाधिक धनी क्रिकेट बोर्ड में शुमार भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के अध्यक्ष एन श्रीनिवासन हैं और यही आइपीएल की टीम चेन्नई सुपरकिंग्स के मालिक भी हैं. श्रीनिवासन साहब के दामाद गुरुनाथ मय्यपन चेन्नई सुपरकिंग्स के आला अधिकारियों में शुमार हैं. बात यहीं नहीं रुकती. विवादों से घिरे भारतीय ओलिंपिक संघ के लिए हाल में चुनाव हुए तो अध्यक्ष बने एन रामचंद्रन, श्रीनिवासन साहब के भाई हैं. रामचंद्रन साहब पर फिलहाल कोई आरोप नहीं है, पर मैच-फिक्सिंग की जांच के लिए गठित जस्टिस मुकुल मुद्गल समिति ने मय्यपन को मैच से जुड़ी निर्णायक सूचनाएं लीक करने का दोषी पाया है.

क्रिकेट में ‘मैच-फिक्सिंग’ विश्वव्यापी घटना है, पर संभवतया यह पहली दफा है जब मैच-फिक्सिंग के आरोप खिलाड़ी पर नहीं, टीम के मालिक, अधिकारी और अध्यक्ष पर लगे हैं. मुद्गल समिति की रिपोर्ट आने के बाद श्रीनिवासन या मय्यपन के साथ हमारी न्याय व्यवस्था चाहे जो सलूक करे, पर उससे न तो खेल-भावना को लगी ठेस की भरपाई हो पायेगी और न भारतीय अर्थव्यवस्था पर हावी परिवारवाद का कुछ बिगड़ पायेगा, क्योंकि व्यवस्थागत दोषों का निदान हर बार व्यवस्था के भीतर से नहीं निकलता.

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