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ऊंचे महल के लिए मजबूत नींव जरूरी

बीते 13 सालों में झारखंड में साक्षरता दर तो बढ़ी है, लेकिन केवल कागजों पर, सिर्फ दिखावे के लिए. वास्तविकता कुछ और ही है. मैट्रिक पास, इंटर पास और ग्रेजुएट तो बहुत हैं, लेकिन उनके पास केवल डिग्री है, ज्ञान कुछ नहीं है. इनमें से केवल 25 प्रतिशत ही किसी लायक हैं. इसकी मुख्य वजह […]

बीते 13 सालों में झारखंड में साक्षरता दर तो बढ़ी है, लेकिन केवल कागजों पर, सिर्फ दिखावे के लिए. वास्तविकता कुछ और ही है. मैट्रिक पास, इंटर पास और ग्रेजुएट तो बहुत हैं, लेकिन उनके पास केवल डिग्री है, ज्ञान कुछ नहीं है. इनमें से केवल 25 प्रतिशत ही किसी लायक हैं. इसकी मुख्य वजह है प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा की नींव कमजोर होना. झारखंड में प्राथमिक व मध्य विद्यालयों, उत्क्रमित हाई स्कूलों और राजकीयकृत हाई स्कूलों में औसतन तीन शिक्षक पदस्थापित हैं. राज्य के शिक्षा विभाग,ने 13 वर्षो में शिक्षकों की नियुक्ति नहीं के बराबर की है. ऐसे में शिक्षा का विकास कैसे संभव है?

वर्ष 2007 से अब तक मात्र 371 प्राथमिक शिक्षक, मात्र एक बार 1600 हाई स्कूल शिक्षक 2010 में, 1500 प्लस टू शिक्षक 2012 में नियुक्ति हुए हैं. हाई स्कूल शिक्षक नियुक्ति परीक्षा- 2009 में कुछ अभ्यर्थी पास हो चुके हैं (उत्तीर्णाक 50 प्रतिशत था). इसकी प्रतीक्षा सूची नहीं बनायी गयी थी. इनकी नियुक्ति का आदेश उच्च न्यायालय से दिया जा चुका है. लेकिन उक्त आदेश के बावजूद शिक्षा विभाग ने कोई कदम नहीं उठाया.

उत्क्रमित हाई स्कूलों में शिक्षक नियुक्ति के लिए शिक्षा विभाग ने जेपीएससी के माध्यम से फरवरी, 2010 में आवेदन आमंत्रित किये थे. जब जेपीएससी लगभग डेढ़ वर्ष बाद परीक्षा की प्रक्रिया शुरू करनेवाला था, ठीक उसी समय मई-जून 2011 में शिक्षा विभाग ने जेपीएससी से अधिसूचना वापस लेकर जैक को सौंप दी. जैक ने दोबारा उसी पद के लिए अक्तूबर 2011 में आवेदन आमंत्रित किया और अगस्त 2012 में परीक्षा ली. लेकिन चार साल बीत जाने के बावजूद उत्क्रमित शिक्षक नियुक्ति प्रक्रिया ठंडे बस्ते में पड़ी है. क्या ऐसे ही होगा शिक्षा का विकास?

अब्दुल कबीर, भवानीपुर, पाकुड़

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