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तेलंगाना पर बढ़ा कांग्रेस का संकट

।। शशिधर खान ।।(वरिष्ठ पत्रकार) जैसा कि पहले से ही कयास था, तेलंगाना को अलग राज्य का दरजा देनेवाले आंध्र प्रदेश पुनर्गठन बिल को राज्य विधानसभा ने रद्द करके राष्ट्रपति को लौटा दिया है. कांग्रेस शासित आंध्र के मुख्यमंत्री किरण कुमार रेड्डी ने इस मुद्दे पर पार्टी आलाकमान और केंद्र से सीधा पंगा लेने का […]

।। शशिधर खान ।।
(वरिष्ठ पत्रकार)

जैसा कि पहले से ही कयास था, तेलंगाना को अलग राज्य का दरजा देनेवाले आंध्र प्रदेश पुनर्गठन बिल को राज्य विधानसभा ने रद्द करके राष्ट्रपति को लौटा दिया है. कांग्रेस शासित आंध्र के मुख्यमंत्री किरण कुमार रेड्डी ने इस मुद्दे पर पार्टी आलाकमान और केंद्र से सीधा पंगा लेने का फैसला लिया. रेड्डी शुरू से ही अपनी पार्टी के केंद्रीय नेताओं को अपने तथा तेलंगाना क्षेत्र को छोड़ राज्य के शेष कांग्रेसी सांसदों-विधायकों के विरोध से अवगत कराते रहे हैं.

इस साल लोकसभा चुनाव के अलावा आंध्र विधानसभा का चुनाव भी होना है. इससे पहले के दो चुनाव कांग्रेस तेलंगाना को अलग राज्य का दरजा देने के वायदे कर जीती है. कांग्रेस आलाकमान को जब लगा कि इस बार वोट लेने के बाद ‘विचार-विमर्श’ वाले आश्वासन से बात नहीं बनेगी, तो अंतिम समय में अफरातफरी मची. उसी का परिणाम है तेलंगाना राज्य के गठन के लिए आंध्र प्रदेश पुनर्गठन बिल का मसौदा आनन-फानन में तैयार कर राष्ट्रपति कार्यालय के जरिये विधानसभा को विचार के लिए भेजना. संविधान के अंतर्गत केंद्र को अलग तेलंगाना राज्य गठित करने का अधिकार है और राष्ट्रपति इसे मंजूरी देने के लिए विधानसभा से पारित कराने की औपचारिकता से बंधे नहीं हैं. संविधान विशेषज्ञों की राय भी ले ली गयी थी कि तेलंगाना राज्य गठन पर कोई संवैधानिक अड़चन नहीं है. पर कांग्रेस के केंद्रीय नेताओं ने यह नहीं सोचा था कि उनके मुख्यमंत्री और विधायक ही इस तरह विरोध करेंगे कि सरकार के लिए तेलंगाना के गठन की प्रक्रिया को आगे बढ़ाना कठिन हो जायेगा. विधानसभा की राय जानने के लिए इस बिल को भेजने के विधायी और संवैधानिक औचित्य पर स्वयं मुख्यमंत्री ने ही सदन में सवाल उठाया. बिल पर विधानसभा में वोटिंग नहीं हो सकती थी, क्योंकि वोटिंग नियमत: बहस के बाद होती है. विधानसभा में इस पर विचार की जगह सिर्फ हंगामा हुआ और दोनों सदनों में ध्वनिमत से बिल रद्द हो गया.

अब अगले सप्ताह शुरू होनेवाले संसद के विस्तारित शीत सत्र में यह बिल पेश होना है और वहां से पास होने के बाद राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजा जायेगा. आंध्र कांग्रेस में तेलंगाना को लेकर कई अभूतपूर्व संकट देखने को मिले हैं. उनमें से कुछ संकट तो ऐसे हैं, जिसका अंदेशा कांग्रेेस नेताओं को पहले से था, लेकिन ज्यादा ऐसे हैं जो बिल राष्ट्रपति को वापस भेजने की निर्धारित अवधि बीतने की अंतिम तारीख करीब आने के समय हुआ. इससे कई संवैधानिक सवाल उठ खड़े हुए हैं, जिनका जवाब संसद में देना कांग्रेस के लिए कठिन होगा. ज्यादातर सवाल आंध्र प्रदेश के कांग्रेसी सांसदों द्वारा ही उठाये जाने की संभावना है. तेलंगाना विरोधी ये सांसद रायलसीमा और तटीय आंध्र क्षेत्र से हैं, जिन्होंने दिसंबर में शीत सत्र में अपनी ही सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश कर कांग्रेस को अजीबोगरीब असमंजस में डाल दिया था. ये वही कांग्रेसी सांसद हैं, जो 17 जनवरी को दिल्ली में अखिल भारतीय कांग्रेस कमिटी की बैठक में तेलंगाना पर चरचा चाहते थे, लेकिन उन्हें आयोजन स्थल पर प्रवेश ही नहीं करने दिया गया. ये वही सांसद हैं, जिन्हें तेलंगाना विरोधी तख्तियां लिए हुए हंगामा करने के कारण मॉनसून सत्र में स्पीकर मीरा कुमार ने पूरे सत्र के लिए निलंबित कर दिया था.

मुख्यमंत्री किरण कुमार रेड्डी रायलसीमा से आते हैं. रायलसीमा और तटीय आंध्र से कांग्रेस के टिकट पर जीते लोकसभा तथा विधानसभा सदस्यों की संख्या तेलंगाना क्षेत्र से ज्यादा है. इसलिए कांग्रेस ह्विप जारी नहीं कर सकती थी. तेलंगाना क्षेत्र की 119 विधानसभा सीटों में सभी इस बिल के समर्थन में वोट डालते, इसकी गारंटी नहीं थी. यहां से कांग्रेस के मात्र 56 विधायक हैं. विपक्षी नेता चंद्रबाबू नायडू की तेलुगु देसम पार्टी के 35 विधायकों के तेलंगाना समर्थन पर भी बात नहीं बनती. रायलसीमा और तटीय आंध्र के 175 विधायकों का सर्वसम्मति से विरोध निश्चित था. इससे बिल स्वत: गिर जाता. इसलिए सबकुछ जानते-समझते हुए भी अपने मुख्यमंत्री के खिलाफ कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई करने की स्थिति में कांग्रेस आलाकमान नहीं है. इससे पार्टी का तीसरा फाड़ होने की संभावना है. वाइएसआर कांग्रेस नेता जगनमोहन रेड्डी पहले से ही कांग्रेस को तटीय-रायलसीमा में पटखनी देने की तैयारी कर चुके हैं.

आंध्र मामलों के प्रभारी कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने कहा है कि आंध्र विधानसभा द्वारा नामंजूर किये जाने के बावजूद यह बिल संसद में पेश किया जायेगा. अगर मान लिया जाये कि यह बिल संसद से पारित हो गया और राष्ट्रपति ने मंजूरी दे भी दी, तो भी तेलंगाना के मतदाताओं को वह सब कुछ मिलना आसान नहीं है, जिसके एवज में कांग्रेस वोट मांगेगी. मुख्यमंत्री ने ही इसे प्रशासनिक व आर्थिक दृष्टि से अव्यावहारिक बताया है. ऐसे में राज्य के बहुसंख्यक मतदाताओं पर जबरन नया राज्य थोपने से कांग्रेस को सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ सकता है.

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