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शिखर बैठक से कुछ हासिल नहीं

पुष्परंजन ईयू-एशिया न्यूज के नयी दिल्ली संपादक सोमवार को हांगचो में जी-20 शिखर बैठक की समाप्ति के बाद चीन इस पर गदगद है कि दुनिया भर में उसका डंका बज गया और एक झटके में ही उसने अमेरिकी चौधराहट को एयरपोर्ट पर ही उतार दिया. रूस के राष्ट्रपति ब्लादीमिर पुतिन का सर फख्र से ऊंचा […]

पुष्परंजन

ईयू-एशिया न्यूज के नयी दिल्ली संपादक

सोमवार को हांगचो में जी-20 शिखर बैठक की समाप्ति के बाद चीन इस पर गदगद है कि दुनिया भर में उसका डंका बज गया और एक झटके में ही उसने अमेरिकी चौधराहट को एयरपोर्ट पर ही उतार दिया. रूस के राष्ट्रपति ब्लादीमिर पुतिन का सर फख्र से ऊंचा है कि इस बार जी-20 में चीन ने उनका रेड कारपेट वेलकम किया और उनके मुकाबले अमेरिकीरा ष्ट्रपति बराक ओबामा की लकीर छोटी कर दी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी प्रसन्न हैं कि उन्होंने जी-20 के मंच पर पाकिस्तान को दक्षिण एशिया का एक मात्र आतंकवादी देश घोषित कर दिया. दक्षिण कोरिया, चीन से बन रही धुरी के कारण फुले नहीं समा रहा कि इस बहाने उत्तर कोरिया के सुप्रीम लीडर किम जोंग उन की कूटनीति कमजोर होगी.

सवाल यह है कि क्या जी-20 का निर्माण इन्हीं उद्देश्यों के लिए हुआ था?

लगता है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यह संकल्प कर हांगचो गये थे कि इस बार जी-20 हो या ब्रिक्स, पाकिस्तान की बखिया उधेड़नी है और उन्होंने उधेड़ा भी. हांगचो में इस बार कूटनीति की ऐसी थाली परोसी गयी, जिसमें चाउमिन, मोमो, ढोकला, खिचड़ी, पापड़, पित्जा, सूशी सब कुछ एक साथ सूतने के लिए उपलब्ध था. आगामी 17-18 अक्तूबर, 2016 को गोवा ब्रिक्स की शिखर बैठक से पहले चीन उसका एजेंडा हांगचो में तय कर लेना चाहता था.

महीना भर पहले चीन जब जी-20 बैठक के मुद्दे सुनिश्चित कर रहा था, उस समय चीनी कूटनीतिक ला यीफान का बयान आया था कि विकासशील देशों में क्या कुछ तरक्की हुई है, इसी को फोकस करता हुआ हांगचो में यह शिखर सम्मेलन होगा. मगर, हांगचो में ‘स्कोर सेटल’ करने के अतिरिक्त कुछ हुआ क्या? शायद कुछ भी नहीं.

साल 1988 में लेमान ब्रदर्स की वजह से पूरी दुनिया में जो आर्थिक भूचाल आया था, जी-20 की उत्पत्ति उसे संभालने के वास्ते हुई थी.

जी-20 देशों की परिधि में दुनिया की दो तिहाई आबादी आती है. साल 1999 में बने इस संगठन में विश्व के 19 ताकतवर देश व यूरोपीय संघ सदस्य हैं. मगर, अपने गठन के सत्रह साल बाद भी जी-20 के पास अपना सचिवालय तक नहीं है. साल 2010 में फ्रांस के तत्कालीन राष्ट्रपति निकोला सारकोजी ने सोल, या पेरिस में जी-20 मुख्यालय बनाने का प्रस्ताव दिया था, जिसका जापान और इटली ने विरोध किया था. अफसोस यह कि हांगचो शिखर बैठक में ‘साइबर सचिवालय’ पर भी चर्चा नहीं हुई, जिसके बारे में दक्षिण कोरिया ने प्रस्ताव दिया था.

जी-20 जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठन में चार-चार देशों के पांच ग्रुप बने हुए हैं, जो बारी-बारी से शिखर बैठकों की साल में एक बार मेजबानी करते हैं. ‘दुनिया की अस्सी फीसदी आबादी का प्रतिनिधित्व जी-20 संगठन के नेता कर रहे हैं’, ऐसी नारेबाजी से सीना 56 इंच का हो जाता है.

लेकिन, सच तो यह है कि जी-20 जैसे आर्थिक फोरम में अब जबरदस्त गुटबाजी चल रही है, जो हांगचो में साफ दिख रहा था. चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को इस बार प्रधानमंत्री मोदी ने अच्छा-खासा आईना दिखाया है. ऐसी खरी-खरी सुना कर प्रधानमंत्री मोदी ने यह संदेश तो दिया कि पाकिस्तान से राजनीतिक प्रतिबद्धता के नाम पर राष्ट्रपति शी जिस तरह आतंकवाद को समर्थन दे रहे हैं, दहशतगर्दों की पीठ ठोक रहे हैं, पीओके में अधोसंरचना बना रहे हैं, उसे भारत मूक दर्शक की तरह नहीं देखता रहेगा. यही नहीं, एनएसजी में चीन की अड़ंगेबाजी को भी प्रधानमंत्री मोदी रेखांकित कर गये.

चीन ने जी-20 बैठक से महीना भर पहले ‘30 एक्शन प्लान’ को मूर्त रूप देने की बात की थी, उसमें पर्यावरण एक प्रमुख अजेंडा था. अब इसे विडंबना कहिये कि जिस हांगचो में यह सम्मेलन हुआ, वह कारखानों की वजह से चीन का सबसे अधिक प्रदूषित शहर है. कार्बन उत्सर्जन से वहां आकाश का रंग बदल जाता है.

चीन ने हफ्ता दिन पहले से हांगचो के कारखानों को बंद करा दिया था. चीन पर्यावरण प्रदूषित करनेवाले देशों में दूसरे नंबर पर है. उसके यहां 7.4 ‘पर कैपिटा टन’ (इपीसीटी) कार्बन का उत्सर्जन होता है. दुनियाभर को ज्ञान बांटनेवाला अमेरिका सबसे अधिक 16.6 इपीटीसी कार्बन निकाल कर वातावरण दूषित कर रहा है.

1.7 प्रति व्यक्ति टन कार्बन उत्सर्जित करनेवाले भारत पर यह दबाव है कि 1990 में ग्रीन हाउस गैस का जो स्तर था, उससे भी चालीस प्रतिशत कम स्तर पर गैस उत्सर्जन को 2030 तक ले आयें. यदि ऐसा नहीं होता है, तो दुनिया के उन तमाम देशों पर टैक्स लादा जा सकता है.खैर! हांगचो में जो कुछ हुआ, उससे एक कहावत याद आती है, ‘आये थे हरि भजन को, ओटन लगे कपास.’

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