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सात दशक की यात्रा

वंचना के लंबे अरसे के बाद भारत की आत्मा को मिली स्वतंत्र अभिव्यक्ति के 69 बरस. नियति के साथ करार के नव-संकल्प के साथ आधुनिक राष्ट्र के रूप में संपन्न और सार्थक भविष्य की ओर यात्रा के 69 बरस. देश और देश के लोगों की प्रगति के प्रति प्रतिबद्धता के साथ वृहत मानवता के उद्देश्यों […]

वंचना के लंबे अरसे के बाद भारत की आत्मा को मिली स्वतंत्र अभिव्यक्ति के 69 बरस. नियति के साथ करार के नव-संकल्प के साथ आधुनिक राष्ट्र के रूप में संपन्न और सार्थक भविष्य की ओर यात्रा के 69 बरस. देश और देश के लोगों की प्रगति के प्रति प्रतिबद्धता के साथ वृहत मानवता के उद्देश्यों के प्रति गौरवपूर्ण समर्पण के 69 बरस. लोकतंत्र की अबाध गति तथा प्राचीन संस्कृति और अर्वाचीन मूल्यों के उदात्त संतुलन के साथ शांति, विकास और एकता को सशक्त बनाते जाने के अहर्निश संघर्ष के 69 बरस. सात दशकों की यह यात्रा न केवल भारत और भारतीयों के लिए, अपितु समूचे संसार के लिए उपलब्धियों का महासमुच्चय है.
विविधताओं का महापुंज यह देश आंतरिक खींचतान से ग्रस्त रहा है, बाह्य आक्रमणों से जूझता रहा है, अस्थिर करने के प्रत्यक्ष प्रयासों और अपरोक्ष षड्यंत्रों का भुक्तभोगी रहा है, पर लोकतांत्रिक विधान से संचालित सत्ता पर कोई ऐसी शक्ति हावी न हो सकी जो जनता द्वारा निर्वाचित न हो. अलग-अलग विचारधाराओं और नीतिगत असहमतियों के होते हुए भी शासनाधिकार के लिए हिंसक संघर्ष नहीं हुए. संविधान के मार्गदर्शन में विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका अपने उत्तरदायित्वों का निर्वहन करते रहे हैं. सेनाएं सरहदों की सुरक्षा में तत्पर रही हैं. यदि हम अपने पड़ोसी देशों, एशिया के अन्य हिस्सों, अफ्रीकी और लैटिन अमेरिका के देशों के समकालीन इतिहास को खंगालें, तो हम अपने लोकतांत्रिक व्यवस्था के महत्व को बड़ी आसानी से समझ सकते हैं.
इन दशकों में प्रगति की आकांक्षाओं को पूरा करने के क्रम में सरकारों ने समय-समय पर ऐसी नीतियों और कार्यक्रमों को लागू किया जिनसे हमारी राष्ट्रीय यात्रा को नयी राह और शक्ति मिली. स्वतंत्रता के प्रारंभिक वर्षों में मिश्रित अर्थव्यवस्था आवश्यक थी, तो उस लिहाज से नीतियां बनीं. बाद में राष्ट्रीयकरण पर जोर बढ़ा, तो 1990 के दशक में प्रवेश करते हुए आर्थिक उदारीकरण की प्रक्रिया शुरू की गयी.
वर्ष 1991 से चली आ रही इस प्रक्रिया में उत्तरोत्तर सुधारों के साथ आज हम विश्व की सबसे तेज गति से बढ़ रही अर्थव्यवस्थाओं की पंक्ति में खड़े हैं. आर्थिक समृद्धि और अवसरों की बहुलता के नये-नये द्वार खुल रहे हैं. संप्रभु राष्ट्रों की कतार में राजनीतिक रूप से भारत प्रारंभ से ही एक महत्वपूर्ण राष्ट्र रहा है, पर आज हम एक आर्थिक महाशक्ति के रूप में भी अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य पर उपस्थित हैं.
वर्ष 1991 में आंतरिक और बाह्य कारकों के कारण देश के पास बहुत थोड़ा विदेशी मुद्रा भंडार बचा था, भुगतान संतुलन के संकट के साथ निवेश की संभावनाएं न के बराबर थीं और अर्थव्यवस्था शिथिल पड़ चुकी थी. राजनीतिक अस्थिरता ने स्थिति को और भी विकट बना डाला था. पर एक राष्ट्र के रूप में हमारे जीवट और लोकतांत्रिक साहस का ही परिणाम था कि इस हताशा भरे ठहराव की जकड़ का रास्ता निकाल ही लिया गया.
इन ढाई दशकों में सकल घरेलू उत्पादन 5.86 लाख करोड़ रुपये से बढ़ कर 136 लाख करोड़ रुपये के आसपास पहुंच चुका है. देश के आर्थिक जीवन में अधिक लोगों की भागीदारी है और जीवन स्तर बेहतर हुआ है. उदारीकरण ने आर्थिक वातावरण के साथ सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन में भी सकारात्मक बदलाव किया है. लेकिन, इस पावन अवसर पर सात दशकों की यात्रा और बीते ढाई दशकों की उपलब्धियों के उत्सव में हमें अपनी कमियों और विफलताओं पर भी विचार करने की आवश्यकता है. डॉ राम मनोहर लोहिया ने कहा था कि उस राजनीतिक दर्शन का कोई अर्थ नहीं है जिसकी सोच के केंद्र में लोगों का हित और उनकी समस्याएं नहीं हैं.
महात्मा गांधी ने स्वराज में विकास के बहुलतावादी और सतत गतिमान होने की बात कही थी. बाबा साहेब आंबेडकर ने आर्थिक और सामाजिक विषमता को दूर करने का संदेश दिया था और चेतावनी दी थी कि ऐसा नहीं हुआ तो राजनीतिक लोकतंत्र खतरे में पड़ जायेगा. देश की बड़ी आबादी तक समृद्धि और विकास के लाभ नहीं पहुंच सके हैं. गरीबी, बीमारी और अशिक्षा के साये में करोड़ों लोग जीवन जीने के लिए अभिशप्त हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि संकट भीषण रूप ले चुका है और शहर प्रबंधन और अवसरों के अभाव में अनेक समस्याओं से त्रस्त हैं.
देश के अनेक हिस्सों में हिंसा का माहौल है. समाज में व्यक्तिगत स्वतंत्रता की अवहेलना की प्रवृत्ति का निरंतर बढ़ते जाना देश की एकता और अखंडता तथा भविष्य की आकांक्षाओं के लिए बेहद नुकसानदेह है. लोकतांत्रिक देश के रूप में सफल होने के लिए नागरिकों में एका और अधिकारों के प्रति परस्पर सम्मान की भावना मूलभूत शर्त है.
बलिदान हुए देशभक्तों, महान राष्ट्र निर्माताओं तथा लोकतांत्रिक भारत को सशक्त करनेवाले नेताओं और विभिन्न कार्यों में संलग्न होकर अथक मेहनत और मेधा से इसे आगे ले जाने वाले अनगिनत लोगों के प्रति श्रद्धा के भाव के साथ हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि विषमता, अन्याय और शोषण की समाप्ति में हम हरसंभव योगदान करेंगे, और परस्पर मेलजोल की भावना के साथ एक-दूसरे का हाथ थामे राष्ट्र की महायात्रा के सहभागी बनेंगे.

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