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कविताई पर नयी बहस

प्रभात रंजन कथाकार इन दिनों हिंदी कविता को लेकर सोशल मीडिया पर जबरदस्त बहस छिड़ी हुई है. ‘पोएट्री मैनेजमेंट’ नामक कविता को इस साल सर्वश्रेष्ठ हिंदी कविता का पुरस्कार क्या मिला, कविता को लेकर हिंदी में अभूतपूर्व बहस छिड़ गयी है. इससे पहले भी कविताओं को लेकर बहसें हुई हैं, लेकिन वे बहसें आम तौर […]

प्रभात रंजन
कथाकार
इन दिनों हिंदी कविता को लेकर सोशल मीडिया पर जबरदस्त बहस छिड़ी हुई है. ‘पोएट्री मैनेजमेंट’ नामक कविता को इस साल सर्वश्रेष्ठ हिंदी कविता का पुरस्कार क्या मिला, कविता को लेकर हिंदी में अभूतपूर्व बहस छिड़ गयी है. इससे पहले भी कविताओं को लेकर बहसें हुई हैं, लेकिन वे बहसें आम तौर पर गंभीर बनाम लोकप्रिय कविता को लेकर होती रहती हैं. मंचीय कविता बनाम वैचारिक को लेकर बहसें होती रही हैं.
इस तरह की बहसें हुई हैं कि श्रेष्ठ कविता क्या होती है? कविता के मानक क्या होते हैं? लेकिन इस बार बहस का विषय और स्तर बहुत अलग है.
इस बार गंभीर कविता, साहित्यिक मानी जानेवाली कविताओं को लेकर कवियों में बहस छिड़ी हुई है कि आखिर कविता क्या होती है? कविता की भाषा क्या होती है? यह कैसी होनी चाहिए? किस तरह की कविता को कविता कहा जाना चाहिए? असल में इस बहस को थोडा और गहराई से समझने की जरूरत है. सोशल मीडिया जब से हिंदी वालों में लोकप्रिय हुई है, कविता धीरे-धीरे हिंदी की केंद्रीय विधा बनती जा रही है.
सोशल मीडिया के माध्यम फेसबुक पर कोई भी अपनी टाइमलाइन को अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम बना सकता है. इसके माध्यम से सबसे अधिक कवि पैदा हो रहे हैं, कविता पैदा हो रही है! लेकिन, इन तमाम कविताओं के बावजूद कविता में कुछ नवोन्मेष नहीं हो रहा है. ज्यादातर कवि ‘बड़े’ माने जानेवाले कवियों को पढ़ते हैं और उनकी तरह लिखना शुरू कर देते हैं. कुछ कविता पाठ के आयोजनों में हिस्सा ले लेते हैं और कवि की कविता के ऊपर मुहर लग जाती है.
मेरे एक व्यंग्यकार मित्र का कहना है कि गूगल हिंदी इनपुट ने जब से फोन में हिंदी टाइप करना आसान बना दिया है, तब से हिंदी में कविता और कवियों की बाढ़ आ गयी है. मनोहर श्याम जोशी ने सोशल मीडिया के आगमन से बहुत पहले कहा था कि हिंदी में इतने अधिक कवि हैं कि कविता विधा को ही गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकाॅर्ड्स में शामिल किये जाने की अनुशंसा की जानी चाहिए.
कविता की विधा को अभिव्यक्ति का श्रेष्ठ रूप मना जाता है. यह माना जाता है कि कविता अभिव्यक्ति की सबसे सच्ची विधा है, क्योंकि वह सीधा हृदय से निकलती है. मुझे ओरहान पामुक के उपन्यास ‘स्नो’ का पात्र ओरहान बे याद आता है, जिसके ऊपर कविता उतरती थी. उर्दू गजल की लोकप्रियता के पीछे भी यही कारण माना जाता है कि वह सीधे दिल से निकलती है, इसीलिए एक शे’र कहे जाने के बरसों बाद भी लोगों के दिलों को छूती रहती है.
हिंदी के फिलहाल कविता आच्छादित परिदृश्य में कविता अपने आप में सहूलियत की विधा बन कर रह गयी है. कवि-कवयित्री अपने किसी प्रिय कवि जैसी पंक्तियां, भाव लिख कर पहचान बनाने में लगे हुए हैं. यह ‘क्लोन कविता’ का दौर है. ‘पोएट्री मैनेजमेंट’ कविता ऐसी कविताओं, ऐसे कवियों के ऊपर ही तंज करती है. इसी कारण उसको पुरस्कार मिलने की घोषणा क्या हुई कि हिंदी कवियों-लेखकों-पाठकों की कई पीढ़ियां कविता को लेकर बहस में शामिल हो गयीं. सोशल मीडिया ‘पोएट्री मैनेजमेंट’ को लेकर एक अभूतपूर्व बहस शुरू हुई है.
कविता सोशल मीडिया के माध्यम से लोकप्रिय हो रही है, यह अच्छी बात है. इसके कारण यह मिथक टूट रहा है कि हिंदी में कविता के पाठक नहीं हैं. लेकिन, यह सवाल बना ही रह जाता है कि किस तरह की कविताओं को हिंदी कविता की पहचान होना चाहिए? क्या कविता महज शब्दों का खेल है या सच्ची अभिव्यक्ति का श्रेष्ठ रूप, जिसमें बौद्धिकता के साथ-साथ भावना का सुंदर संतुलन हो. बहरहाल, कविताई पर नयी बहस जारी है!

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