कहावत है कि नाच न जाने आंगन टेढ़ा. अन्ना आंदोलन से निकली आम आदमी पार्टी का ध्येय व्यवस्था परिवर्तन, असली आजादी और भ्रष्टाचार मुक्त शासन देना ही था, जिससे प्रभावित होकर देश के युवा बड़ी आंख्या में अपने बड़े अच्छे रोजगार छोड़ कर इससे जुड़े थे. लेकिन हुआ क्या?
खोदा पहाड़ और निकली चुहिया और वह भी मरी हुई. उन बेचारों का जीवन तो बरबाद हो ही गया, मगर केजरीवाल और साथियों का क्या बिगड़ा? अब केजरीवाल का निशाना हमेशा प्रधानमंत्री मोदी ही होते हैं, जिसमें वे शब्दों की शालीनता और मर्यादा छोड़ कुछ भी कह डालते हैं.
अभी वे अपनी जान को ही खतरा बता रहे हैं जबकि उन्हीं की पार्टी की महिला कार्यकर्ता उनसे उचित न्याय न मिलने और पार्टी के भूखे सियारों से बुरी तरह प्रताड़ित होकर आत्महत्या ही कर रही हैं. सबसे पहले तो इन्होंने खुद अपने सम्मानित और संस्थापक सदस्यों को ही किस अश्लील भाषा के साथ पार्टी से निकाल बाहर किया, कोई कभी भूल नहीं सकता.
इन्हें तो उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया से ही भाषा की दृष्टि से कुछ सीख लेनी चाहिए. दिल्ली और केंद्र की सत्ता में बैठी इन दोनों पार्टियों को मिल कर अब जनता के जरूरी काम करने की जरूरत है, वरना तो जनता इन्हें माफ नहीं करेगी.
वेद मामूरपुर, ई-मेल से