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शासन का ‘गुजरात मॉडल’

आकार पटेल कार्यकारी निदेशक, एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया कुछ समाचार चैनल अक्सर मुझसे केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रियों के प्रदर्शन का आकलन करने के लिए कहते हैं. वे कुछ मंत्रियों की उपलब्धियों पर एकाध पैरा भेजते हैं, जिसके आधार पर उन्हें ग्रेड देने के लिए कहा जाता है. जब शो प्रसारित होता है, तभी मैं यह […]

आकार पटेल
कार्यकारी निदेशक, एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया
कुछ समाचार चैनल अक्सर मुझसे केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रियों के प्रदर्शन का आकलन करने के लिए कहते हैं. वे कुछ मंत्रियों की उपलब्धियों पर एकाध पैरा भेजते हैं, जिसके आधार पर उन्हें ग्रेड देने के लिए कहा जाता है. जब शो प्रसारित होता है, तभी मैं यह देख पाता हूं कि दूसरे समीक्षकों ने किस मंत्री को क्या ग्रेड दिये हैं.
मोदी मंत्रिपरिषद के हालिया विस्तार से पहले चार मंत्रियों- पीयूष गोयल (बिजली, कोयला एवं नवीकरणीय ऊर्जा), निर्मला सीतारमण (वाणिज्य एवं उद्योग), धर्मेंद्र प्रधान (पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस) और प्रकाश जावड़ेकर (पर्यावरण)- को लगातार ऊंची रैंकिंग मिलती रही थी. इनके बारे में असाधारण बात यह है कि ये सभी राज्यमंत्री थे, यानी वे कनिष्ठ मंत्री थे और उनके पास कैबिनेट दर्जा नहीं था.
यह तथ्य मोदी मंत्रिपरिषद के हाल में हुए विस्तार में भी नहीं बदला है. कई नये चेहरे मंत्रिपरिषद में लाये गये हैं और कैबिनेट का आकार भी बहुत बड़ा हो गया है. लेकिन, सिर्फ एक मंत्री- प्रकाश जावड़ेकर- को राज्यमंत्री से कैबिनेट मंत्री के रूप में पदोन्नत किया गया है. उन्हें प्रोन्नति तो मिली, लेकिन साथ में उनका मंत्रालय भी बदल दिया गया. उन्हें शिक्षा मंत्रालय की जिम्मेवारी सौंपी गयी है, जिसे मानव संसाधन विकास मंत्रालय भी कहा जाता है.
पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन के नये मंत्री अनिल माधव दवे हैं. प्रकाश जावड़ेकर की तरह ही वे भी राज्यमंत्री हैं. मेरा मानना है कि यह सब गुजरात का मुख्यमंत्री बनने के बाद से बीते डेढ़ दशक में अपनाये गये नरेंद्र मोदी के तौर-तरीके का ही जारी रहना है.
वे अपनी पसंद के कुछ विभागों को चुनते हैं और उनकी जिम्मेवारी वरिष्ठ नेताओं को नहीं देते हैं. ऐसे मंत्रालयों की जिम्मेवारी कनिष्ठ मंत्रियों को ही सौंपी जाती है, जो सीधे-सीधे नरेंद्र मोदी को या उनके साथ काम करनेवाले नौकरशाहों की एक छोटी टीम को रिपोर्ट करते हैं. मैंने इस कार्यशैली को पहली बार गुजरात में लक्षित किया था, जहां वे मुख्य रूप से दो मंत्रियों- सौरभ पटेल और अमित शाह- के साथ काम करते नजर आते थे.
नरेंद्र मोदी के गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में 12 वर्षों के कार्यकाल में सौरभ पटेल के जिम्मे उद्योग, खनन एवं खनिज, पेट्रोकेमिकल्स, बंदरगाह तथा ऊर्जा मंत्रालय थे. ये बहुत महत्वपूर्ण मंत्रालय हैं, खासकर गुजरात जैसे राज्य में, जो कि औद्योगिक रूप से देश के सर्वाधिक विकसित राज्यों में शामिल है. सौरभ पटेल के विभाग पांच बड़ी कंपनियों के व्यापारिक हितों से संबद्ध थे- टाटा, एस्सार, अदानी, अंबानी और टोरेंट. तब गुजराती मीडिया मजाकिया लहजे में अकसर कहा करता था कि नरेंद्र मोदी की चुनौती महाभारत की द्रौपदी की तरह है, जिसे पांच पतियों को खुश रखना पड़ता था.
यदि सौरभ पटेल के विभाग महत्वपूर्ण थे, जो कि स्पष्ट है, तो उन्हें कैबिनेट रैंक क्यों नहीं दिया गया? क्योंकि, मेरी राय में, नरेंद्र मोदी इन मंत्रालयों के निर्णय लेने की प्रक्रिया पर पूरा नियंत्रण अपने पास रखना चाहते थे.
यह भी सच है कि गुजरात में सभी मंत्री नरेंद्र मोदी को ही रिपोर्ट करते थे, जैसा कि आज दिल्ली में होता है. परंतु, यह भी तथ्य है कि कैबिनेट रैंक रोकने का मतलब है कि संबद्ध मंत्री को बड़े निर्णयों पर कैबिनेट की मंजूरी से पहले मोदी के कार्यालय से मशविरा करना होता है.
इसी तरह, समर्पित भाव से वर्षों तक नरेंद्र मोदी की सेवा करनेवाले अमित शाह को भी गुजरात मंत्रिपरिषद में कभी कैबिनेट रैंक नहीं दिया गया. नियुक्ति से लेकर विवादों के कारण हटाये जाने तक अमित शाह राज्यमंत्री ही रहे थे. उनके पास पुलिस विभाग की जिम्मेवारी थी, और यह समझना मुश्किल नहीं है कि क्यों नरेंद्र मोदी इस विभाग के कामकाज पर नजर रखना चाहते थे.
जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने थे, तब ही मैंने यह अनुमान लगाया था कि वे सभी मंत्रालयों पर सिर्फ राज्यमंत्रियों की नियुक्ति के जरिये उसी तरह का नियंत्रण रखेंगे. और, ऐसा ही हुआ है.
हालांकि गृह मंत्रालय में भी ऐसा ही होने का मेरा अनुमान गलत साबित हुआ. इस मंत्रालय के मंत्री राजनाथ सिंह कैबिनेट रैंक के हैं. जब मैंने इस बारे में एक वरिष्ठ नौकरशाह से बात की, तो उसने बताया कि केंद्र में गृह मंत्रालय की प्रकृति भिन्न है. पुलिस पर इसका नियंत्रण नहीं होता है, क्योंकि यह विषय राज्य के तहत आता है और इस लिहाज से केंद्र सरकार में यह बहुत कम महत्वपूर्ण मंत्रालय है, हालांकि इसे तीन सबसे महत्वपूर्ण मंत्रालयों में गिना जाता है.
जहां तक अन्य मंत्रालयों का सवाल है, खासकर, ऊर्जा, खनन, पेट्रोलियम, कोयला और उद्योग, तो वे नरेंद्र मोदी के ‘विकास’ के मंत्र से गहरे जुड़े हुए हैं. पर्यावरण मंत्रालय महत्वपूर्ण है, क्योंकि एक एक्टिविस्ट मंत्री विकास की परियोजनाओं को रोक सकता है. नरेंद्र मोदी का मानना है कि उन्हें इन क्षेत्रों पर कामकाजी नियंत्रण बनाये रखना चाहिए तथा नीतियों में जो बदलाव वे चाहते हैं, वे बिना प्रतिरोध के लागू होने चाहिए. यही कारण है कि इन महत्वपूर्ण विभागों के मंत्रियों को प्रतिभावान होने के बावजूद कैबिनेट रैंक नहीं दिया गया है.
इसी कड़ी में यह दिलचस्प है कि सौरभ पटेल को नरेंद्र मोदी के बाद गुजरात में कैबिनेट मंत्री बनाया गया. संभव है कि इन मंत्रालयों के मंत्रियों को आखिरकार कैबिनेट रैंक दे दिया जाये. लेकिन, फिलहाल मेरी स्पष्ट समझ है कि नरेंद्र मोदी दिल्ली में कमोबेश शासन के ‘गुजरात मॉडल’ का ही अनुसरण कर रहे हैं.

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