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स्वामी की विवादप्रियता
मौजूदा मीडियामुखी समय में, जब लोकप्रियता का एक पैमाना निरंतर सुर्खियों में बने रहना भी है, विवाद खड़ा करने में यों तो ज्यादातर नेता शामिल हैं, लेकिन कुछ ने इसमें महारत हासिल कर ली है. ऐसे नेता बिना बात के विवाद गढ़ सकते हैं और उसमें ऐसे तर्क भी जोड़ सकते हैं, जिनकी वैधता सिद्ध […]
मौजूदा मीडियामुखी समय में, जब लोकप्रियता का एक पैमाना निरंतर सुर्खियों में बने रहना भी है, विवाद खड़ा करने में यों तो ज्यादातर नेता शामिल हैं, लेकिन कुछ ने इसमें महारत हासिल कर ली है.
ऐसे नेता बिना बात के विवाद गढ़ सकते हैं और उसमें ऐसे तर्क भी जोड़ सकते हैं, जिनकी वैधता सिद्ध करना चाहो, तो पूरा जीवन बीत जाये. भाजपा के राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ऐसे ही राजनेताओं में एक हैं. विवादप्रियता को सार्वजनिक जीवन में एक सद्गुण की तरह बरतना कोई उनसे सीखे! वे अक्सर ऐसी बातें करते हैं, जो सार्वजनिक महत्व के नीतिगत पहलुओं की आलोचना कम, व्यक्ति राग-द्वेष से प्रेरित ज्यादा लगती हैं. पहले उन्होंने आरबीआइ गवर्नर विश्वप्रसिद्ध अर्थशास्त्री रघुराम राजन में यह खोट खोजने का ‘कमाल’ किया कि ग्रीनकार्ड-होल्डर (अमेरिका का वर्किंग परमिट) होने से उनका मानस भारतीय नहीं है, सो अगर राजन का कार्यकाल बढ़ता है, तो वे भारतीय हित में ठीक-ठीक फैसले नहीं ले पायेंगे.
हालांकि, राजन ने संयम और शिष्टता का पालन करते हुए जब खुद ही स्पष्ट कर दिया कि वे दूसरा कार्यकाल की जगह शिकागो की अपनी अकादमिक दुनिया में लौट जाना चाहेंगे, तो स्वामी ने अपने पुराने तर्क को असरदार जान उसका नये सिरे से इस्तेमाल किया है और निशाना बनाया है मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रह्मण्यन को. स्वामी का तर्क है कि अरविंद ग्रीनकार्ड होल्डर हैं और अमेरिका में नौकरी के दौरान उन्होंने दवाइयों के मामले में बनी अमेरिकी कांग्रेस की एक समिति को सलाह दी थी कि भारत चूंकि अमेरिका के अनुकूल आचरण नहीं कर रहा, सो अमेरिका विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में भारत को फार्मास्युटिकल्स के मामले में सबक सिखाये. इस आधार पर स्वामी चाहते हैं कि अरविंद मुख्य आर्थिक सलाहकार के पद से हटाये जायें. लेकिन, स्वामी भूल जाते हैं कि उनका यह तर्क आत्मघाती है.
अगर किसी व्यक्ति का ग्रीनकार्ड होल्डर होना या विदेश में काम करना ही उसे संदिग्ध बनाता है, तो भारत में निवेश करनेवाले एनआरआइ ही नहीं, बल्कि विदेशों में शिक्षा प्राप्त तमाम व्यक्ति भी एक झटके में अविश्वसनीय हो जायेंगे, जबकि विदेशों में ब्रांड इंडिया की साख इसी के सहारे है. राजन और अरविंद सुब्रमण्यन जैसों की योग्यता का सम्मान पूरी दुनिया करती है.
तेज आर्थिक बदलावों और मंदी की आशंकाओं के बीच से गुजरती दुनिया में ऐसे गुणी व्यक्तियों का देश के प्रमुख आर्थिक पदों पर होना भारत का सौभाग्य है. शायद यही वजह है, जो भाजपा ने स्वामी के बयानों से खुद को अलग करने की समझदारी दिखायी है. लेकिन, क्या इतना ही काफी है?
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