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‘संघ-मुक्त भारत’ की सदिच्छा
रविभूषण वरिष्ठ साहित्यकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्लोगन ‘कांग्रेस-मुक्त भारत’ के बाद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ‘संघ-मुक्त भारत’ का स्लोगन दिया है. यह नीतीश कुमार की सदिच्छा है या अन्य राजनीतिक दलों से उनके द्वारा किया गया आह्वान? ‘संघ-मुक्त भारत’ से अभिप्राय उस भारत से है, जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रभाव, दबाव […]
रविभूषण
वरिष्ठ साहित्यकार
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्लोगन ‘कांग्रेस-मुक्त भारत’ के बाद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ‘संघ-मुक्त भारत’ का स्लोगन दिया है. यह नीतीश कुमार की सदिच्छा है या अन्य राजनीतिक दलों से उनके द्वारा किया गया आह्वान? ‘संघ-मुक्त भारत’ से अभिप्राय उस भारत से है, जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रभाव, दबाव और प्रभुत्व से मुक्त हो. क्या यह संभव है? इसे संभव बनानेवाले भाजपा-विरोधी दल कौन हैं? अखिल भारतीय स्तर पर संघ को चुनौती देनेवाला संगठन कौन है? कहां है?
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारत की कम्युनिस्ट पार्टी- दोनों का जन्म एक ही वर्ष (1925) में हुआ था. नब्बे वर्ष के बाद आज संघ क्यों दनदना-फनफना रहा है और कम्युनिस्ट दल टूट-बिखर कर किस हालत में हैं?
केशव बलिराम हेडगेवार ने विजया दशमी के दिन (27 सितंबर, 1925) राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की. वे हिंदू राष्ट्रवादी विनायक दामोदर सावरकर से प्रभावित थे. जिन्ना के पहले सावरकर ने हिंदू महासभा का अध्यक्ष रहते हुए द्विराष्ट्र सिद्धांत की बात की थी. ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवाद’ की अवधारणा उन्होंने प्रस्तुत की. इस राष्ट्रवाद को केएन पणिक्कर ने ‘संप्रदायवाद की शब्दावली’ कहा है, जिसे सावरकर ने ‘हिंदुत्व’ और एमएस गोलवलकर ने ‘बंच ऑफ थॉट्स’ में परिभाषित किया है. संघ की विचारधारा सावरकर-गोलवलकर की है. गोलवलकर 33 वर्ष (1940-1973) सर संघ चालक रहे.
संघ के सिद्धांतकार के साथ उसके विकास-प्रसार में उनकी सर्वाधिक भूमिका रही है. गुरु गोलवलकर से परामर्श के बाद श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 21 अक्तूबर 1951 को भारतीय जनसंघ की स्थापना की. आपातकाल के बाद जनता पार्टी में भारतीय जनसंघ ने अपना विलय किया और पुन: अटल-आडवाणी ने भारतीय जनता पार्टी बनायी. ‘राष्ट्रीय’ और ‘भारतीय’ का उनके यहां वह अर्थ नहीं है, जो सामान्य जनता ग्रहण करती है.
गोलवलकर अंगरेजों से लड़ाई के पक्ष में नहीं रहे. राष्ट्रीय स्वाधीनता-आंदोलन में संघ की कोई भूमिका नहीं है. गोलवलकर ने ब्रिटिश विरोधी राष्ट्रवाद को ‘प्रतिक्रियावादी विचार’ कहा था. संघ ने आरंभ में भारतीय संविधान को मान्यता नहीं दी, क्योंकि उसमें ‘मनुनियम’ (मनुस्मृति का) नहीं था.
महात्मा गांधी की हत्या के बाद 4 फरवरी, 1948 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर पहला प्रतिबंध लगा था, दूसरा आपातकाल में और तीसरा बाबरी मसजिद ध्वंस के समय. संघ की विचारधारा को समझने में कांग्रेसियों और समाजवादियों ने कम भूलें नहीं की हैं. नेहरू के समय 1963 में गणतंत्र दिवस की परेड में संघ के स्वयंसेवकों को आमंत्रित किया गया था. भारत-पाक युद्ध के समय लालबहादुर शास्त्री ने सरसंघ चालक गोलवलकर को एक सर्वदलीय बैठक में आमंत्रित किया था. जयप्रकाश नारायण ने जिन युवाओं को लेकर आंदोलन आरंभ किया था, उसमें अभाविप के युवा अच्छी संख्या में थे.
जयप्रकाश नारायण ने अपने एक भाषण में भारतीय जनसंघ को फासिस्ट कहे जाने पर आपत्ति प्रकट की थी और यह कहा था कि अगर जनसंघ फासिस्ट है, तो उन्हें भी फासिस्ट कहा जाना चाहिए. कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं ने जनसंघ, अकाली दल और अन्य दलों के साथ संयुक्त मोर्चा बनाया था. 1967 की संविद सरकारें, 1977 की जनता पार्टी, संयुक्त मोर्चा की देवगौड़ा-गुजराल की सरकारों को देखा जा चुका है. क्या कोई एक क्षेत्रीय दल या भारत के सभी क्षेत्रीय दल एक साथ मिल कर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को चुनौती देने में सक्षम है?
प्रश्न विचारधारा का है. आज संघ की विचारधारा को केवल वामपंथी-समाजवादी ही चुनौती दे सकते हैं, पर वे बुरी तरह बिखरे हैं. चुनाव जीत कर सरकार बनाना एक बात है और विचारधारा के स्तर पर चुनौती देना भिन्न बात है.
संघ के आनुषंगिक संगठनों और उनके क्रियाकलापों की सही जानकारी राजनीतिक दलों को नहीं है. भाजपा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से नाभिनालबद्ध है. अन्य राजनीतिक दल किस विचारधारा से नाभिनालबद्ध हैं? संघ और उसके आनुषंगिक संगठनों की सदस्य-संख्या लगभग 7-8 करोड़ है. देश भर में इसकी 51,355 से अधिक शाखाएं हैं. असम में यह 1946 से सक्रिय था, वहां सैकड़ों शाखाएं थीं. परिणाम आज सामने है.
फिलहाल ‘संघ-मुक्त भारत’ कठिन है, लेकिन असंभव नहीं. इसके लिए वामपंथियों-समाजवादियों को एक होना पड़ेगा. वही स्वप्न सार्थक होते हैं, यथार्थ बनते हैं, जिसके लिए हम अपना प्रत्येक क्षण और सर्वस्व समर्पित कर दें.
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