हाल ही में जल दिवस और पर्यावरण दिवस मनाया. सरकारी और गैर-सरकारी स्तर पर तो हम ऐसे दिवस मना ही लेते हैं और अवसर के हिसाब से खानापूर्ति भी कर दी जाती है़ इस बार भी कमोबेश ऐसा ही हुआ़ लेकिन वक्त आ गया है कि हम अब चेत जायें. बढ़ती गरमी और जल संकट का सामना तो हम कर ही चुके हैं, जो प्रकृति और पर्यावरण के प्रति हमारी लापरवाही को बयां करता है. अब हमें यह स्थिति सुधारने के लिए खुद से कोशिश करनी होगी़
चंद्रेश्वर प्रसाद, बोकारो