डॉ सुरेश कांत
वरिष्ठ व्यंग्यकार
बोलने की कला का विकास कर आदमी उसे इतनी ऊंचाइयों तक ले गया कि फिर उसे नीचे उतर कर चुप रहने की कला का विकास भी करना पड़ा. अब हालत यह है कि कोई बोलता है, तो बोलता ही रहता है, चुप ही नहीं होता. और कोई चुप होता है, तो बोलने का नाम नहीं लेता. कोई अपनी चुप्पी से ही सबको हरा देता है, यहां तक कि अपने साथ-साथ अपनी पार्टी को भी. और कोई सिर्फ अपने बड़बोलेपन के बल पर अपने साथ-साथ अपनी पार्टी को भी जिता कर ले आता है.
बोलने या चुप रहने की वजहें भी सबकी अलग-अलग होती हैं. कोई किसी वजह से चुप रहता है, कोई किसी वजह से बोलता है. कोई चुप रह कर ही बहुत-कुछ बोल जाता है, कोई बहुत-कुछ बोल कर भी कुछ नहीं कह पाता. किसी-किसी के बोलने या चुप रहने की वजह लोग बाद में ढूंढ़ा करते हैं. कोई-कोई अपनी खामोशी का बचाव इन शब्दों में करता है- हजारों जवाबों से अच्छी है मेरी खामोशी, न जाने कितने सवालों की आबरू रखी!
लेकिन कोई-कोई शख्स ऐसा भी होता है, जो एक वक्त जिस वजह से बोलता है, दूसरे वक्त उसी वजह से चुप हो जाता है. जैसे कि जगतबाबा रामदेव. योग का जितना उपयोग उन्होंने किया, खुद पतंजलि भी नहीं कर पाये. योग को कर्मों का कौशल कहनेवाले भगवान श्रीकृष्ण तक आश्चर्य में पड़ गये होंगे कि कोई योग को कर्मों के ऐसे व्यावसायिक कौशल में भी बदल सकता है.
पतंजलि के योग का सहारा लेकर पतंजलि के ही नाम से ऐसे-ऐसे प्रोडक्ट वे बनाने और बेचने लगे हैं कि अब लोग यह तक पूछने लगे हैं कि पतंजलि का हर्बल गुटका कब लांच होगा? या पतंजलि की बीयर कब आयेगी?
जब भी लोगों के मुंह लगे किसी अन्य कंपनी के प्रोडक्ट में कोई खोट प्रचारित होता है, लोग समझ जाते हैं कि अब पतंजलि का वैसा ही प्रोडक्ट लांच होगा. मैगी में कमी पायी गयी, तो पतंजलि आटा नूडल्स के नाम से पतंजलि की मैगी बाजार में आ गयी. अब डबलरोटी में कुछ कमी सामने आयी है, तो लोग कयास लगाने लगे हैं कि पतंजलि की ब्रेड लांच होनेवाली है.
चूंकि उनके प्रोडक्ट्स स्वदेशी हैं, इसलिए उनका इस्तेमाल करने मात्र से उपभोक्ता राष्ट्रीय भावना से भर उठता है और फलत: दूसरी जाति, धर्म, राष्ट्र वाले के साथ मरने-मारने पर उतारू हो जाता है. पतंजलि के प्रोडक्ट्स खरीद कर बंदा स्वस्थ रह सकता है और स्वस्थ न भी रहे, तो भी बिना किसी अतिरिक्त प्रयत्न के देश-सेवा में भागीदार तो हो ही सकता है.
पिछली सरकार के वक्त बाबा कालेधन पर इतना बोलते थे कि खुद कालाधन शर्म से और काला पड़ जाता था. कालेधन के बारे में उनके पास ऐसे-ऐसे तथ्य और आंकड़े थे, जैसे खुद कालाधन जमा करनेवाले विदेशी बैंकों के पास भी नहीं थे. भारत सरकार द्वारा कालाधन जमा करनेवाले भारतीयों की जानकारी मांगे जाने पर विदेशी सरकारें हैरत में पड़ जाती होंगी कि ये हमसे यह सब क्यों पूछ रहे हैं, जब इनके पास बाबा है. लेकिन इस सरकार में वे इस मुद्दे पर खामोश रहते हैं.
अभी हाल ही में उन्होंने कह भी दिया कि चूंकि कालाधन वापस नहीं आया है, इसलिए इस मामले में वे चुप रहेंगे. इससे मुझे साठ के दशक में आयी एक फिल्म ‘मैं चुप रहूंगी’ याद आती है. कोई निर्माता चाहे तो बाबा के कालेधन की वापसी के मुद्दे पर पहले खूब बोलने और अब एकदम चुप रहने को लेकर ‘मैं चुप रहूंगा’ नाम से फिल्म बना सकता है. कसम से बहुत हिट रहेगी और देशभक्ति की श्रेणी में गिनी जायेगी सो अलग.