भारत की राजनिति में 2014 एक नया इतिहास रचेगा. ऐसा लगभग सबका मानना है. कांग्रेस तो अपनी करनी का फल भोगेगी ही, पर भाजपा भी दूध की धुली नहीं रहेगी. भ्रष्टाचार और काले धन के सवाल पर जब पूरा देश उबल रहा था, रामदेव रामलीला मैदान में आरजू कर रहे थे, अन्ना अनशन कर रहे थे, तो कांग्रेस लाठी भांज रही थी और भाजपा ठिठोली कर रही थी.
एक को सत्ता का नशा था, तो दूसरे को सत्ता पाने का जुनून. इनकी सोच थी कि बारी-बारी से सत्ता रानी हमारी ही गोद में खेलती रहेगी. जब दिल्ली का चुनाव परिणाम आया तो इनकी घिग्घी बंध गयी. कांग्रेस लगी मिमियाने. भाजपाइयों का तो और भी बुरा हाल हुआ. दिल्ली फतह को निकला मोदी का रथ अचानक थम गया. केजरीवाल को कमतर आंकनेवाले इनके नेताओं को अब अपनी भूल का एहसास हुआ है.
डी कृष्णमोहन, राजधनवार, गिरिडीह