व्यालोक
स्वतंत्र टिप्पणीकार
अभी कुछ ही दिनों पहले अपने केमिस्ट की दुकान पर एक दवा लेने यह लेखक खड़ा था. केमिस्ट अपने स्टॉक से दवा निकलवा रहे थे. वे मेरे पुराने परिचित और बुजुर्ग भी हैं, तो साथ-साथ उनसे बतकही भी चल रही थी. तभी, एक 20-21 साल का लड़का अपने कान में मोबाइल का हैंड्सफ्री (या, ब्लूटूथ) लगाये दाखिल हुआ. उसके हाथ में एक छोटा सा पैकेट था और उसने उस दुकान के मालिक से उनका नाम कंफर्म किया.
उसके तरीके और हाव-भाव बता रहे थे कि वह किसी ऑनलाइन सामान बेचनेवाली कंपनी का डिलीवरी ब्वॉय है. बुजुर्ग को फ्लिपकार्ट का ‘फ’ भी नहीं समझ में आया, तो उन्होंने अपने बेटे (या बेटी) को फोन कर तसल्ली की, फिर पैसे देने के लिए अपनी पत्नी को आवाज दी. वह आयीं, तो लड़का किसी और से हैंड्सफ्री के जरिये बात कर रहा था. आंटीजी ने उसे खुद से बात करते समझ दो-तीन बार जब टोक दिया, तो उस लड़के को कोने में जाना पड़ा.
बहरहाल, लंबी प्रक्रिया के बाद जब पैकेट खुला, तो उसमें सैटिन और पॉलिएस्टर के बीच के धागों से बनी हुई तीन चार लंबी लड़ियां थीं, जिनके ऊपरी सिरे पर तकरीबन दो इंच चौड़ी कपड़े की पट्टी थी. ईमानदारी से कहूं, तो दुकान पर मौजूद हममें से किसी की समझ में नहीं आया कि वह बला क्या है? हमें आखिर डिलीवरी ब्वॉय की शरण में जाना पड़ा, तो उसने बताया यह एक ‘परदा’ है….
हालांकि, वह किसी भी कोण से परदा नहीं लग रहा था. अधिक से अधिक उसे उस झूले की तर्ज पर समझ सकते हैं, जो समुद्री तटों पर पेड़ों के बीच बांध दिया जाता है और सैलानी उसी पर आराम फरमाते हैं.
आंटीजी ने हंसते हुए बताया कि उनका लड़का और लड़की दोनों ही अक्सर ही अपने स्मार्टफोन पर देख कर सामान का ऑर्डर देते हैं और लगभग 70 फीसदी मामलों में वह सामान पसंद नहीं आने पर फिर वापस कर देते हैं.
आंटीजी की बात सुनते ही मुझे ध्यान में आया स्नैपडील का वह वाकया, जब उसके किसी खास ब्रांड एंबेसडर से नाराज लोगों ने बड़ी संख्या में ऑर्डर देना तो शुरू किया, लेकिन उसे फिर लिया नहीं. इस कारण से अभी भी कई ऑनलाइन कंपनियां बिहार और उत्तर प्रदेश की कई जगहों पर अपना सामान नहीं भेजतीं.
‘हाथ कंगन को आरसी क्या…’ जैसी कहावतें क्या इस वर्चुअल दुनिया में काम करती हैं? शायद नहीं. खैर, यह तो महज एक पहलू हुआ. आंकड़ों के मुताबिक, दिल्ली पुलिस ने लगभग 4,000 युगलों की काउंसेलर के साथ बैठक करवा कर उनकी शादी को बचाया. इन सबने तलाक के लिए आवेदन दिया था. वजह इतनी मजेदार कि आप मुस्कुरा पड़ें- ‘पति अपने फेसबुक, मेल या ह्वाॅट्सएप्प का पासवर्ड नहीं बताता, मोबाइल में लॉक लगा कर रखता है… आदि-आदि.’
एक मशहूर विज्ञापन में बॉस अपने सहायक से किसी योजना के बारे में पूछता है, ‘यह प्रोफाइल पिक की तरह तो नहीं होगी, जो सच में कुछ और हो और दिखे कुछ और ही?’ वैसे, आजकल एक नया ट्रेंड भी है, जिस पर शायद आपने गौर किया या नहीं?
चार दोस्त बड़ी साध से मिलने की योजना बनाते हैं, अरसे बाद. इकट्ठा भी होते हैं- किसी एक के घर पर. शुरुआती दो-चार मिनट बातचीत के बाद ही सबकी जेब से स्मार्टफोन हाथ में आ जाता है, कोई कॉल में व्यस्त होता है, तो कोई फेसबुक पर, तो काेई ह्वाॅट्सएप्प पर…
शायद, तकनीक ने भौगोलिक दूरी को कम किया, हार्दिक दूरी को बढ़ा दिया है. यहां वर्चुअल ही रीयल है और रीयल ही वर्चुअल है.