23.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

नेपाल की कड़वाहट

नेपाली राष्ट्रपति का भारत दौरा स्थगित होने, बुद्ध पूर्णिमा के आयोजन में भारतीय प्रधानमंत्री के शामिल होने की संभावना खत्म होने और और दिल्ली से नेपाली राजदूत को वापस बुलाने जैसी हालिया घटनाएं भारत-नेपाल संबंधों में लगातार बढ़ते खटास को रेखांकित करती हैं. पिछले साल नेपाल की आंतरिक राजनीति में उथल-पुथल, मधेशी आंदोलन और आवश्यक […]

नेपाली राष्ट्रपति का भारत दौरा स्थगित होने, बुद्ध पूर्णिमा के आयोजन में भारतीय प्रधानमंत्री के शामिल होने की संभावना खत्म होने और और दिल्ली से नेपाली राजदूत को वापस बुलाने जैसी हालिया घटनाएं भारत-नेपाल संबंधों में लगातार बढ़ते खटास को रेखांकित करती हैं. पिछले साल नेपाल की आंतरिक राजनीति में उथल-पुथल, मधेशी आंदोलन और आवश्यक वस्तुओं की आवाजाही बाधित होने को लेकर नेपाल ने भारत पर गंभीर आरोप लगाये थे, जिसके कारण दोनों देशों के कूटनीतिक संबंधों में तनाव पैदा हो गया था.

लेकिन, नेपाली प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की हालिया यात्रा के बाद माना जा रहा था कि स्थितियां फिर से बदल रही हैं. लेकिन पिछले दिनों के घटनाक्रम बताते हैं कि हकीकत कुछ और है. नेपाल ने भले सफाई दी हो कि ताजा घटनाक्रम को द्विपक्षीय संबंधों में तनातनी के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, लेकिन इससे इस सवाल का जवाब नहीं मिलता है कि नेपाल के राजनीतिक संकट के मामले में राजदूत को वापस बुलाने का क्या तुक है?

नेपाल का यह कदम उसके अपने आंतरिक संकट के लिए परोक्ष रूप से भारत पर दोष मढ़ने की एक कोशिश है. माओवादी पार्टी और नेपाली कांग्रेस ने ओली सरकार पर मधेशी समुदाय के साथ वादाखिलाफी, भूकंप से तबाह लोगों के पुनर्वास के मामले में लापरवाही, महंगाई और भ्रष्टाचार जैसे गंभीर आरोप लगाये हैं. इन आरोपों का जवाब देने, विपक्ष और सहयोगी दल को तुष्ट करने तथा मधेशी समुदाय को भरोसे में लेने की जिम्मेवारी ओली सरकार की है.
इस पूरे प्रकरण में भारत पर दोष मढ़ कर अपनी नाकामियों से पीछा छुड़ाने की कोशिश बेमतलब है. भारत और नेपाल के संबंध राजनीतिक कारकों के अतिरिक्त आर्थिक, सांस्कृतिक और भावनात्मक आधारों पर भी परस्पर जुड़े हुए हैं. इतिहास साक्षी है कि भारत ने नेपाल को हरसंभव मदद देने में कभी कोताही नहीं बरती है.
ऐसे में ओली सरकार को देश की अंदरूनी खींचतान से परे, दोनों देशों के संबंधों की घनिष्ठता को बहाल करने की दिशा में सकारात्मक रुख के साथ पहल करनी चाहिए. ओली एक संप्रभु राष्ट्र के मुखिया होने के नाते अपनी स्वतंत्र विदेशी नीति का निर्धारण कर सकते हैं, पर ऐसा करने के लिए भारत को बार-बार कटघरे में खड़ा करने की निराधार कोशिश सही नहीं है. भारत को भी द्विपक्षीय बैठकों में और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर नेपाल के बेबुनियाद आरोपों का खंडन करना चाहिए. साथ ही, ध्यान रखना चाहिए कि दोनों देशों के बीच अच्छे संबंध पूरे दक्षिण एशिया में शांति और विकास के लिए महत्वपूर्ण हैं.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें