23.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

दबाये जा रहे कुछ बड़े सवाल

उर्मिलेश वरिष्ठ पत्रकार अगस्ता वेस्टलैंड हेलीकाॅप्टर खरीद घोटाले को लेकर उठे सियासी तूफान में सभी प्रमुख पक्ष कुछ बड़े सवालों को छुपा रहे हैं. गवर्नेंस और संसदीय मामलों के बड़े-बड़े जानकारों, मीडिया के रक्षा-विशेषज्ञों और सेना से रिटायर टीवी स्टूडियो में गरजनेवाले सामरिक टिप्पणीकारों से ये सवाल छुपे नहीं हैं. फिर भी आज वे बहस […]

उर्मिलेश
वरिष्ठ पत्रकार
अगस्ता वेस्टलैंड हेलीकाॅप्टर खरीद घोटाले को लेकर उठे सियासी तूफान में सभी प्रमुख पक्ष कुछ बड़े सवालों को छुपा रहे हैं. गवर्नेंस और संसदीय मामलों के बड़े-बड़े जानकारों, मीडिया के रक्षा-विशेषज्ञों और सेना से रिटायर टीवी स्टूडियो में गरजनेवाले सामरिक टिप्पणीकारों से ये सवाल छुपे नहीं हैं.
फिर भी आज वे बहस के केंद्र में क्यों नहीं हैं? हथियारों या अन्य रक्षा सामग्री की खरीद में जब भी किसी घोटाले या कमीशनखोरी की बात उठती है, वह सिर्फ हमला-बचाव की उत्तेजक नोंकझोंक या फिर परिणामविहीन जांच में उलझ कर खत्म हो जाती है. न तो आरोप पुष्ट हो पाते हैं और न ही रक्षा उपकरण-खरीद नीति में कोई गुणात्मक बदलाव हो पाता है.
देश के एक प्रमुख टीवी चैनल की सांध्यकालीन बहस में दो दिन पहले मैंने यह सवाल कांग्रेस, भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ताओं और सैन्य विशेषज्ञों की मौजूदगी में उठाया. पर सबने सवाल को नजरंदाज करने में ही भलाई समझी. सवाल है- बीते कई दशकों से रक्षा उपकरण और अन्य सामग्रियों की खरीद में अगर बड़े पैमाने पर कमीशनखोरी, घोटाले या अनियमितता के गंभीर मामले लगातार सामने आ रहे हैं, तो देश की किसी सरकार ने अब तक सैन्य-सामग्रियों की खरीद की पूरी प्रक्रिया को गुणात्मक रूप से बदलने की पहल क्यों नहीं की? इसे पूरी तरह पारदर्शी क्यों नहीं कर दिया जाता? सवाल उठ सकता है कि कैसे.
खरीद के ऐसे तमाम फैसले क्यों नहीं एक ऐसी उच्चस्तरीय कमेटी पूरे पारदर्शी ढंग से करे, जिसमें सरकार का मुखिया (प्रधानमंत्री), रक्षा मंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता, रक्षा मामलों से संबद्ध संसदीय समिति के अध्यक्ष, तीनों सेनाओं के प्रमुख, सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नामित कोई न्यायाधीश और लोकपाल की गैरमौजूदगी में देश के मुख्य सतर्कता अधिकारी बाकायदा सदस्य हों. इस तरह की उच्चस्तरीय कमेटी को सरकार पर किसी तरह के अविश्वास का सबूत नहीं माना जाना चाहिए. दुनिया के कई देशों में रक्षा खरीद के लिए उच्चस्तरीय कमेटियां बनी हुई हैं. फिर हमारे नेता और सरकारें ऐसे कारगर तंत्र (मेकेनिज्म) को लेकर क्यों उदासीन हैं?
सैन्य मामलों पर खर्च के मामले में भारत इस वक्त दुनिया में छठें स्थान पर है. मशहूर रक्षा शोध संस्थान ‘स्टाकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट’(सिप्री) के ताजा आकड़े के मुताबिक, भारत इस वक्त सैन्य मामलों पर कुल 51.3 बिलियन अमेरिकी डाॅलर खर्च कर रहा है. पांचवें स्थान पर इंगलैंड है, जो 55.5 बिलियन और चौथे स्थान पर रूस 66.4 बिलियन डाॅलर खर्च कर रहा है.
तीसरे स्थान पर सऊदी अरब, जो कुल 87.2 बिलियन डाॅलर खर्च कर रहा है. पहले नंबर पर अमेरिका और दूसरे नंबर पर चीन है, जिनका सैन्य खर्च क्रमशः 596 बिलियन डाॅलर और 215 बिलियन डाॅलर है. ‘सिप्री’ के मुताबिक, पाकिस्तान का सैन्य खर्च मात्र 9.5 बिलियन डाॅलर है.
भारत जैसा विकासशील देश, जहां पीने के पानी जैसी बुनियादी मानवीय सुविधा भी उसके सभी नागरिकों को मयस्सर नहीं, जब सैन्य मामलों में इतनी बड़ी रकम खर्च कर रहा है, तो हथियारों और अन्य सैन्य सामग्रियों की खरीद में कमीशनखोरी और अनियमितता के आरोप भला क्यों न लगें! जिस देश में घरों के अंदर स्वच्छ पेय जल-आपूर्ति नहीं होती और तरह-तरह के वाटर-फिल्टर्स एवं बोतलबंद पानी के धंधे में भारी कमाई और कमीशनखोरी हो, वहां बंदूक से लेकर जहाज और हेलीकाॅप्टर की खरीद भला ईमानदारी से कैसे होगी?
अचरज की बात है कि यह सब जानते हुए भी सैन्य सामग्रियों की खरीद की पूरी प्रणाली को बदलने के लिए सत्ता के स्तर पर कोई नयी पहल नहीं होती! दूसरी बात यह कि सैन्य मामलों की खरीद में वीवीआइपी उपयोग वाले हेलीकाॅप्टर की खरीद के प्रस्ताव कैसे शुमार हो जाते हैं?
अगस्ता वेस्टलैंड मामले में अब तक यह सवाल क्यों नहीं उठा कि 2003 में एनडीए की तत्कालीन वाजपेयी सरकार ने बेहद कारगर एमआइ-17 और अन्य कई हेलीकाॅप्टरों की अच्छी संख्या में मौजूदगी के बावजूद बेहद महंगे अगस्ता वेस्टलैंड हेलीकाॅप्टरों को खरीदने का फैसला किस आधार पर किया? यह भी कम रहस्यमय नहीं कि एनडीए के फैसले को यूपीए की नयी सरकार ने 2005-06 में बरकरार क्यों रखा? इस सौदे में भ्रष्टाचार का सवाल तो अहम है ही, औचित्य का सवाल भी कम महत्वपूर्ण नहीं. अगर खरीद प्रस्तावों के लिए देश के पास उच्चस्तरीय कमेटी होती, तो शायद सरकारों और उनके अफसरों को ऐसी मनमानी की छूट नहीं मिलती. अब मौका है, ‘न खायेंगे, न खाने देंगे’ के उद्घोषकों को आगे आकर सैन्य सामग्रियों की खरीद की प्रणाली को पूरी तरह बदलने का. क्या वे ऐसा करेंगे?

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें