देश के हर नागरिक तक बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंचाना आज भी एक बड़ी चुनौती बना हुआ है. फिलहाल देश में मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा मान्यता प्राप्त 381 मेडिकल कॉलेज हैं, जिनमें करीब 50,000 छात्र लोगों के जीवन को बचाने, उन्हें निरोग रखने के हुनर का प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं. लेकिन, देश की विशाल जनसंख्या को देखते हुए यह संख्या ऊंट के मुंह में जीरे के समान ही कही जा सकती है. करीब दो साल पहले देश में छह लाख डॉक्टर थे. यानी 2000 लोगों पर मात्र एक डॉक्टर उपलब्ध था.
देश में डॉक्टरों की कमी की समस्या से निबटने और डॉक्टर-जनसंख्या अनुपात को घटा कर 1 : 1000 पर लाने के लिए स्वास्थ्य मंत्रलय की तरफ से दिये गये एक प्रस्ताव को आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति ने हरी झंडी दिखा दी है. इसके तहत राज्यों और केंद्र के अधीन आनेवाले मेडिकल कॉलेजों में 10,000 अतिरिक्ट सीट जोड़ने की योजना बनायी गयी है. ठीक एक सप्ताह पहले, समिति ने देश में 58 नये मेडिकल कॉलेज खोलने के प्रस्ताव पर भी अपनी मुहर लगायी थी. इन दोनों फैसलों को देश में स्वास्थ्य सुविधाओं की हालत सुधारने की दिशा में उठाया गया एक बड़ा सकारात्मक कदम माना जा सकता है.
लेकिन, सिर्फ योजनाएं बनाना ही काफी नहीं है. यह एक तथ्य है कि भारत में सरकारी मेडिकल कॉलेजों की कमी के कारण पिछले दो-तीन दशकों में निजी मेडिकल कॉलेजों का एक बड़ा व्यवसाय खड़ा हुआ है. ये निजी कॉलेज आम छात्रों के लिए काफी महंगे तो होते ही हैं, इनकी गुणवत्ता भी संदिग्ध होती है. लेकिन, सरकारी मेडिकल कॉलेजों की स्थिति भी कोई बहुत अच्छी नहीं कही जा सकती. मेडिकल कॉलेजों में बुनियादी सुविधाओं की कमी को दूर करने को एक बड़ी चुनौती माना जा सकता है. दूसरी बड़ी चुनौती योग्य मेडिकल शिक्षकों की बहाली की है. जाहिर है, मौजूदा कॉलेजों में सीटों की संख्या बढ़ाने या जिला अस्पतालों के साथ नये मेडिकल खोलने की योजना को मूर्त रूप देने के लिए मौजूदा बुनियादी ढांचे का उन्नयन और नये ढांचे का निर्माण करना होगा, जिसके लिए बड़े पैमाने पर निवेश की भी दरकार होगी. इस योजना की सफलता, इन चुनौतियों से निपटने की इच्छाशक्ति पर निर्भर करेगी.