डॉ एपीजे अब्दुल कलाम कहते हैं कि हमारे यहां उच्च शिक्षा प्राप्त करनेवालों की कमी है. अगर उच्च शिक्षा का यही हाल रहा तो क्यें कोई इतनी महंगी उच्च शिक्षा प्राप्त करना चाहेगा? राज्य में जारी भाषाई लड़ाई में हम जेटेट उत्तीर्ण कहां गनाहगार हैं? जब यह परीक्षा ली जा रही थी तो हम यही जानते थे कि हमें कड़ी मेहनत कर उत्तीर्ण होना है और जल्द से जल्द हमें नौकरी मिल जायेगी.
लेकिन भाषाई लड़ाई, झारखंड-बिहार के नियम, मेधा सूची जैसी चीजों ने तो हमारी जान निकालने में कोई कसर नहीं छोड़ रखी है. हम आम इनसान आखिर करें तो क्या? कभी चुनाव तो कभी सरकार बदलाव, कभी फार्म भरा कर परीक्षा नहीं लेना तो कभी रिजल्ट रद्द कर देना. आखिर यह सब कब तक चलेगा? कब तक हम इंतजार करें और सिर्फ अखबारों में ख्याली पुलाव खाकर जिंदा रहें?
शिखा रानी, गोड्डा