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हम तो दिमाग से हैं घूसखोर, क्या करें

।। बृजेंद्र दुबे।। (प्रभात खबर, रांची) चली-चली फिर हवा चली, आम आदमी की हवा चली… गुनगुनाता हुआ मैं धूप सेंक रहा था. पत्नी ने आवाज दी.. टीवी पर अच्छी खबर आ रही है. देख लो. मैं टीवी के सामने जाकर बैठ गया. न्यूज क्या थी ‘आज तक’ एक स्टिंग ऑपरेशन चला रहा था.. कैसे दिल्ली […]

।। बृजेंद्र दुबे।।

(प्रभात खबर, रांची)

चली-चली फिर हवा चली, आम आदमी की हवा चली… गुनगुनाता हुआ मैं धूप सेंक रहा था. पत्नी ने आवाज दी.. टीवी पर अच्छी खबर आ रही है. देख लो. मैं टीवी के सामने जाकर बैठ गया. न्यूज क्या थी ‘आज तक’ एक स्टिंग ऑपरेशन चला रहा था.. कैसे दिल्ली में केजरीवाल सरकार की नाक के नीचे सरकारी बाबू से लेकर चपरासी तक घूस की खुलेआम डिमांड कर रहे हैं. कोई पानी का कनेक्शन देने का 1500 तो कोई बिजली बिल ठीक करने का 500 रुपया बेङिझक मांग रहा है.

मजे की बात यह कि बीच-बीच में चैनल अपनी पीठ ठोंकते हुए यह भी बता रहा था कि केजरीवाल एंड कंपनी ने कहा है कि सभी घूसखोरों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई की जायेगी. मैंने पत्नी से कहा, टीवी चैनल वाले भी खूब हैं. जैसी बहे बयार.. पीठ वैसी कर लीजे.. की तर्ज पर अब घूसखोरी के खिलाफ खबरें निकाल रहे हैं. चलो ठीक है.. हो सकता है इसका देशव्यापी असर हो और घूसखोर घूस से तौबा कर लें. खाक तौबा कर लेंगे.. गजोधर भाई ऊंची आवाज में बोले. मैंने कहा, आप कब आये गजोधर भाई? गजोधर बोले- छोड़िए भी.. एक चीज कहे देता हूं कि सब नौटंकी है. कितना भी स्टिंग करवा लो, कितने भी केजरीवाल सत्ता में बिठा दो, इस देश से घूसखोरी नहीं मिटेगी. हां, हो सकता है घूस लेने-देने का तरीका बदल जाये. जैसे परीक्षा में नकल रोकने के लिए एक इंतजाम होता है, तो बच्चे दूसरा तरीका ईजाद कर लेते हैं. ये बदस्तूर जारी है.

मैंने कहा, गजोधर भाई अब एक ही दिन में पूरे देश के सरकारी बाबू-अफसर मुंशी प्रेमचंद के ‘नमक का दारोगा’ की तरह ईमानदार तो होने से रहे. लेकिन केजरीवाल एंड कंपनी अगर घूसखोरी-भ्रष्टाचार के खिलाफ कदम उठाने की बात कह रही है, तो इसकी तारीफ होनी चाहिए. यही नहीं, आज कई अन्य राज्य सरकारें केजरीवाल के नक्शेकदम पर आम आदमी बनने की कोशिश में जुटी हैं. केंद्र के एक मंत्री ने तो यहां तक कह दिया कि अगर कांग्रेस-भाजपा ने केजरीवाल का रास्ता न अपनाया तो ये पार्टियां इतिहास हो जायेंगी. मैं आगे कुछ कहूं, गजोधर भड़क गये. सावन के अंधे को सब हरा-हरा ही दिखता है.. अरे भाई घूस में अंतर करना सीखो. कोई अगर बिना दौड़ाए ईमानदारी से आपका काम कर देता है, तो चाय-पान के लिए थोड़े पैसे देने में क्या बुराई है?

अगर गैस वाले ने आपका सिलिंडर आपके दोमंजिले पर ऊपर चढ़ा दिया और आपने दस रुपये अलग से दे दिये, तो क्या हर्ज है? एक बात और, घूसखोरी-बेईमानी की जड़ें हमारे दिमाग में समा गयी हैं, इसका क्या करें? पहले हमें खुद का दिमाग ठीक करना होगा. वरना आप जानते हैं कि इस देश में घूस तो नहीं रुकेगा.. जिस देश में असली दूध-घी नहीं मिलता.. क्या खाक पैदा होंगे ईमानदार. घूस अब आचरण में समहित हो चुका है. ये जारी रहेगा.. तरीका भले बदल जाये. समङो कि नहीं.

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