झारखंड में 35 से अधिक स्टील कंपनियां हाल में बंद हो चुकी हैं. नतीजतन, लगभग 53 हजार लोग बेरोजगार हो गये हैं. राज्य के लिए इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या हो सकता है कि एक ओर जहां नयी नौकरियां नहीं मिल रही हैं, वहीं इतनी बड़ी संख्या में लोग बेरोजगार हो गये. ऐसा नहीं है कि इसके लिए झारखंड सरकार ही दोषी है. इन बंद कंपनियों में अधिकतर स्पंज आयरन की हैं.
बाजार में मांग घटना भी इसका बड़ा कारण है. अधिक चिंता अभिजीत ग्रुप जैसी कंपनियों में काम बंद होने से है. खरसावां में उसकी तीन कंपनियों में काम बंद है. चंदवा में नयी कंपनी का 95 फीसदी काम हो चुका था. पांच फीसदी काम पूरा हो जाता तो कंपनी चलने लगती. राज्य को बिजली मिलती व लोगों को रोजगार मिलता. अब कोयला उपलब्ध नहीं होने के कारण ये कंपनियां बंद हैं. इन कंपनियों में बैंकों के हजारों करोड़ रुपये फंसे हैं. इतनी बड़ी राशि फंसना बैंकों की आर्थिक सेहत के लिए भी अच्छा नहीं है. झारखंड में पहले से बिजली का संकट है.
सरकार ने इस उम्मीद के साथ एमओयू किया था कि प्लांट बन जाने के बाद राज्य में बिजली संकट दूर हो जायेगा. अब जो प्लांट बन चुका है, वह ठप है. जो प्लांट अधूरा है, वह अधूरा ही रहेगा. ऐसे में राज्य को बिजली कहां से मिलेगी? अगर ये मामले शीघ्र नहीं सुलझते, तो राज्य को अपनी रणनीति बदलनी होगी. सरकार को इसमें हस्तक्षेप करना चाहिए. जो मामला राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है, उसे सुलझाने में विलंब नहीं करना चाहिए. केंद्र से राज्य बात करे, कोई रास्ता निकाले, ताकि लोगों की रोजी-रोटी नहीं खत्म हो.
राज्य में उद्योग के हालात बेहतर तो नहीं ही हैं. उद्योगों को आमंत्रित करने के लिए राज्य सरकार दिल्ली में बैठक कराती है. कोई नया उद्योग आता है या नहीं, यह बाद की बात है, वर्तमान में जो उद्योग हैं, अगर उन पर भी आफत आ जाये तो कहीं न कहीं सरकार की नीति में गड़बड़ी है. अब टाटा मोटर्स के मामले को ही लें, तो पता चलेगा कि एक प्लांट उत्तराखंड जा रहा है. वहां की सरकार ने सुविधा बढ़ा दी है. झारखंड क्यों यहां के उद्योगों को वह सुविधा नहीं दे पा रहा जो अन्य राज्य दे रहे हैं. अगर एक-एक कर सभी उद्योग बंद हो जायें या बाहर जाने लगें, तो झारखंड का क्या होगा?