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डब्ल्यूटीओ पर पुनर्विचार जरूरी

डॉ भरत झुनझुनवाला अर्थशास्त्री एनडीए सरकार के कार्यकाल के दो वर्ष पूरे होने को हैं. आम चुनाव में ‘अच्छे दिन’ का वादा था, लेकिन आम आदमी का रोजगार चौपट हो रहा है. इस समस्या के कई आयाम है. एक आयाम विश्व व्यापार संगठन यानी डब्ल्यूटीओ द्वारा आरोपित सीमाओं का है. विश्व व्यापार का पहला बिंदु […]

डॉ भरत झुनझुनवाला
अर्थशास्त्री
एनडीए सरकार के कार्यकाल के दो वर्ष पूरे होने को हैं. आम चुनाव में ‘अच्छे दिन’ का वादा था, लेकिन आम आदमी का रोजगार चौपट हो रहा है. इस समस्या के कई आयाम है. एक आयाम विश्व व्यापार संगठन यानी डब्ल्यूटीओ द्वारा आरोपित सीमाओं का है.
विश्व व्यापार का पहला बिंदु माल तथा सेवाओं की खरीद-बेच है. फैक्टरियों में उत्पादित माल के व्यापार में डब्ल्यूटीओ की स्थापना के बाद सरलता आयी है, लेकिन कृषि उत्पादों के व्यापार में गतिरोध बना हुआ है. विकसित देशों ने इन उत्पादों पर निर्यात सब्सिडी को समाप्त कर दिया है, परंतु वस्तुस्थिति इसके विपरीत है. दूसरे माध्यमों से विकसित देशों द्वारा अपने किसानों को कृषि उत्पादन सब्सिडी दी जा रही है. जैसे अमेरिका में किसानों को भूमि को पड़ती छोड़ने के लिए सब्सिडी दी जाती है. इन सब्सिडी से अंततः अमेरिकी किसानों के लिए उत्पादित माल को सस्ता बेचना संभव हो जाता है.
इस प्रकार के तमाम उपायों से विकसित देशों में कृषि उत्पादों की वास्तविक उत्पादन लागत ज्यादा है, लेकिन विश्व बाजार में वे अपने माल को सस्ता बेच रहे हैं. लेकिन, इससे हमारे किसान पस्त हैं. इससे कुछ राहत दिलाने के लिए नैरोबी में तय हुआ है कि विकासशील देश खाद्यान्न का भंडारण कर सकेंगे तथा कम समय के लिए आयात कर लगा सकेंगे. स्पष्ट है कि इनके लागू होने के बावजूद डब्ल्यूटीओ की मूल व्यवस्था के कारण हमारे किसानों पर पड़नेवाला दुष्प्रभाव बना रहेगा.
हमारे किसानों द्वारा कृषि उत्पाद सस्ते उत्पादित किये जा रहे हैं, परंतु विकसित देशों के द्वारा विभिन्न तरीकों से दी जा रही कृषि सब्सिडी के कारण ये देश माल को सस्ता बेच रहे हैं.
इस पर नैरोबी समझौता मौन है. गत वर्ष नैरोबी में डब्ल्यूटीओ की मंत्री स्तरीय वार्ता हुई थी, जिसमें भारत की भी कुछ उपलब्धियां रही हैं. फूड काॅरपोरेशन द्वारा देश की खाद्य सुरक्षा के लिए खाद्यान्न भंडारण को छूट मिली है. खाद्यान्न के आयातों में भारी वृद्धि की स्थिति में अल्प समय के लिए आयात कर बढ़ाने की अनुमति मिली है. विकसित देशों ने कृषि उत्पादों पर निर्यात सब्सिडी हटाना स्वीकार किया है. ये उपलब्धियां महत्वपूर्ण हैं, लेकिन इनका मूल स्वरूप फायर फाइटिंग का है. अमीर देशों द्वारा दी जा रही कृषि सब्सिडियों को हटाने पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है.
विश्व व्यापार का दूसरा बिंदु श्रमिकों के पलायन का है. विश्व व्यापार की वर्तमान व्यवस्था में श्रमशक्ति को माल मंे पैक करके माल का निर्यात किया जाता है. विश्व व्यापार को बढ़ाने के लिए जरूरी है कि भारतीय श्रमिक की श्रमशक्ति को माल में पैक करके निर्यात करने के स्थान पर श्रमशक्ति का सीधे निर्यात किया जाये. श्रमिक के पलायन का रास्ता खोल दिया जाये. भारतीय श्रमिक यूरोप में जाकर कार का निर्माण करे, तो कार की ढुलाई बच जायेगी. श्रमिकों के मुक्त पलायन का यह गंभीर विषय डब्ल्यूटीओ की संधि में नहीं था.
विश्व व्यापार का तीसरा बिंदु पेटेंट कानून का है. 1995 में डब्ल्यूटीओ संधि लागू होने के पूर्व हर देश की अपनी पेटेंट व्यवस्था थी. डबलूटीओ संधि में सभी देशों के पेटेंट कानूनों को समान बना दिया गया है.
इनके उल्लंघन की स्थिति में दूसरे देशों को प्रतिबंध अथवा आयात कर लगाने की छूट दे दी गयी है. वर्तमान में विकसित देशों को राॅयल्टी से भारी आय हो रही है, इसलिए उनके लिए निर्यात करके विदेशी मुद्रा अर्जित करना आवश्यक नहीं रह गया है. जनस्वास्थ प्रभावित होने की स्थिति में पेटेंट कानून को निरस्त करने की व्यवस्था की गयी थी. लेकिन, वर्तमान में पेटेंट कानून में नरमी लाने का रास्ता बंद है. तदानुसार, विकसित देशों द्वारा पेटेंट पर राॅयल्टी के माध्यम से विकसित देशों की आय चूसने का रास्ता प्रशस्त हो गया है.
डब्ल्यूटीओ की सिंगापुर वार्ता में विकसित देशों ने पुरजोर प्रयास किया था कि निवेश, सरकारी खरीद तथा कंपटीशन पाॅलिसी को भी डब्ल्यूटीओ में शामिल किया जाये. नैरोबी में इन्हें पुनः डब्ल्यूटीओ के ऐजेंडे में शामिल कर दिया गया है. इतना जरूर कहा गया है कि इन विषयों पर सर्वसहमति से ही निर्णय लिया जायेगा. परंतु यह व्यर्थ की बात है, चूंकि डब्ल्यूटीओ में सभी फैसले सर्वसहमति से ही दिये जाते हैं.
समय आ गया है कि हम डब्ल्यूटीओ के मूल चरित्र पर पुनर्विचार करें. अमीर देशों द्वारा दी जा रही कृषि सब्सिडी तथा पेटेंट कानून के माध्यम से हो रहे हमारा शोषण पर डब्ल्यूटीओ मौन है. हमारे श्रमिकों के मुक्त पलायन को खोलने पर कोई पहल नही की गयी है. इन समस्याओं के मद्देनजर, मौजूदा एनडीए सरकार को डब्ल्यूटीओ पर सख्त रुख अपना कर इन मूल समस्याओं का हल करना चाहिए.

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