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संसद में कामकाज
संसद में कभी-कभार किसी गंभीर मसले पर हंगामे के कारण आम कामकाज का कुछ देर बाधित होना असामान्य बात नहीं है. लेकिन, निरंतर व्यवधानों के चलते पिछले दो सत्रों में संसद में काफी कम कामकाज हो सका था. पिछले मॉनसून सत्र में लोकसभा की उत्पादकता 48 फीसदी और राज्यसभा की उत्पादकता नौ फीसदी ही रही […]
संसद में कभी-कभार किसी गंभीर मसले पर हंगामे के कारण आम कामकाज का कुछ देर बाधित होना असामान्य बात नहीं है. लेकिन, निरंतर व्यवधानों के चलते पिछले दो सत्रों में संसद में काफी कम कामकाज हो सका था. पिछले मॉनसून सत्र में लोकसभा की उत्पादकता 48 फीसदी और राज्यसभा की उत्पादकता नौ फीसदी ही रही थी. कामकाज के लिहाज से लोकसभा ने 45.7 घंटे तथा राज्यसभा ने मात्र 8.5 घंटे काम किया था.
शीतकालीन सत्र अपेक्षाकृत बेहतर रहा था, जिसमें उत्पादकता के मामले में लोकसभा का स्कोर 98 फीसदी और राज्यसभा का स्कोर 50 फीसदी रहा था. उस सत्र में लोकसभा ने 110.6 घंटे काम किया, तो राज्यसभा का स्कोर 59.9 घंटे रहा था. इन आंकड़ों की तुलना में मौजूदा सत्र में नौ मार्च तक लोकसभा की उत्पादकता 107 फीसदी और राज्यसभा की उत्पादकता 93 फीसदी रही है. अब तक लोकसभा में 60.8 घंटे तथा राज्यसभा में 49.5 घंटे काम हुआ है.
स्पष्ट है कि सरकार और विपक्ष तनातनी के माहौल से काफी हद तक बाहर निकलते हुए संसद की गरिमा को स्थापित कर सके हैं. इस सत्र से पूर्व सरकार और विभिन्न दलों के बीच हुई बैठकों में परस्पर सहयोग तथा संसदीय मर्यादा के पालन पर सहमति बनी थी. राष्ट्रपति के अभिभाषण पर राज्यसभा में अपने भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उचित ही यह आह्वान किया है कि इस सकारात्मक माहौल का उपयोग लंबित विधेयकों को पारित कराने में किया जाना चाहिए.
विधेयकों के लंबे समय तक लटके रहने के दुष्परिणाम देश को भुगतना पड़ता है. व्यवधानों के कारण समय और संसाधन भी बरबाद होते हैं तथा बहुधा विधेयकों को बिना चर्चा किये जल्दबाजी में पारित करना पड़ता है. कार्यवाही को सुचारु रूप से चलाने की जिम्मेवारी जितनी सरकार की है, उतनी ही विपक्ष की भी. विपक्ष सिर्फ विरोध के लिए संसद को बाधित नहीं कर सकता है.
विपक्ष को साथ लाने और उसकी आपत्तियों पर गौर करना सरकार का उत्तरदायित्व भी है. राज्यसभा की समुचित कार्यवाही के कारण ही विपक्षी पार्टियां राष्ट्रपति के अभिभाषण में हरियाणा और राजस्थान में चुनाव लड़ने के मौलिक अधिकार से संबंधित संशोधन का प्रस्ताव पारित करा सकीं. संसदीय इतिहास में ऐसे मौके तीन-चार बार ही आये हैं.
पिछले साल कालेधन के मसले पर अभिभाषण में संशोधन पारित हुआ था. बहरहाल, यह सुखद है कि राज्यसभा गत सत्रों की छाया से बाहर आयी है और आशा है कि मौजूदा सत्र के अगले चरण में जरूरी लंबित विधेयक पारित हो सकेंगे.
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